ऊजल कविकृत
शिवपुर(शिरोही) मंडण आदिनाथ चतुर्मुखप्रासाद स्तवन
गणि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी
कुल ८४ पद्योमां गूंथायेल प्रस्तुत रचना सिरोही नगरना आदिनाथ प्रभुना चौमुख जिनालयनी प्रतिष्ठाने वर्णवती ऐतिहासिक रचना छे। कृतिकारे अहीं भाषा तथा वस्तु ए बे ज छंदना बंधारणमां संपूर्ण काव्य गूंथ्युं छे। जेमांना भाषाछंद(?)ना पद्यमां कृतिगत पदार्थो वर्णवाया छे, तो वस्तुछंदना पद्यमां तेने ज संक्षेपमां दर्शाव्या छे। आ विगतो जो पद्यानुक्रमे जोईए तो कृतिकारे अहीं भाषाना प्रथम ९ पद्योमां शिवपुरी (सिरोही) नगरनां स्थापत्योनी, जिनालयोनी, राज्यव्यवस्थानी तथा जनसमुदायनी वर्णना आलेखी शेष ३ पद्यो द्वारा त्यां बिराजमान पू. हीरविजयसूरिजीनी तथा ते नगरना शेठ सदराजनी वर्णना प्रारंभी छे। आ ज वर्णनानो त्यार पछीना वस्तुपद्यमां फरी अछडतो उल्लेख करी कृतिकारे कृतिना १५मां पद्यथी सदराजना परिवारजनोनी विगतो टांकी छे। जेमां सदराजनी पत्नी तथा चार पुत्रोनां नामो तेमज तेमना गुणोनी वातो छे, ज्यारे त्यार पछीनुं वस्तुपद्य उपरोक्त पद्योनो संक्षेप छे।
वळी त्यार पछीनां भाषापद्योमां सीपिगना सासु, ससरा, पत्नी, पुत्रो तथा पुत्रवधूओनो परिचय आलेखी कृतिकारे अनुक्रमनां वस्तु तथा भाषाना (३३ थी ४१ नं.नां) ९ पद्योमां सीपिगना गुरुवंदनना मनोरथनी, वंदनार्थे गयेला सीपिगने गुरुनी धर्मदेशनाथी प्रगटेला सद्विचारनी तथा तेनी पूर्ति माटे चारे बाळको साथे सीपिगे करेली विचारणानी विगतो आलेखी छे। खास आ पद्योमां वणायेली सीपिगनी बाळको साथे करायेली विचारणावाळी बाबत सीपिगना नायक होवा साथे कुशळ व्यवहारुपणाने सूचवे छे, तो ते ज रीते पूर्वना वस्तुपालादि श्रावकोनी पुण्यकरणीनी आलेखना सीपिगना इतिहासबोध साथे चैत्यनिर्माणना दृढ मनोभावोने सूचवे छे, तेमज वडवाओ द्वारा २ चैत्यो स्थपायानी विगत आडकतरी रीते सीपिगना गर्भश्रीमंतपणानुं सूचन करे छे।
उपरोक्त वातोनो संक्षेप फरी वस्तुपद्यमां आलेखी त्यार पछीना भाषा-वस्तुनां ६ पद्योमां कृतिकारे सीपिग वडे करावाती प्रभु ऋषभदेवना प्रासाद निर्माणनी तैयारीओने वर्णवी छे। आ विगतोमां प्रासादभूमिनुं संपादन कई रीते करायुं? कई जग्याए ते प्रासाद रचायो? तेना निर्माण माटे सौ प्रथम शेनुं मुहूर्त जोवायुं? कया सूत्रधारने प्रासाद निर्माणनी जवाबदारीओ सोंपाई? जिनालयने कई रीते शणगारायुं? इत्यादि घणी विगतो कवि वडे सुंदर रीते आलेखाई छे। तेमां पण जिनालयनी पीठ रचतां पूर्वे अंबिकानो नैवेद्य करायानी तथा माँ चक्रेश्वरीना सांनिध्यमां तोरण स्तंभ मंडायानी जे विगतो अहीं आलेखाई छे ते विगतो ते समये कराता कोई पारंपरिक विधान तरफ आपणुं ध्यान दोरे छे।
कृतिना हवे पछीना भाषा तथा वस्तुछंदनां १९ पद्यो मुख्यतया बादशाह अकबर परना हीरविजयसूरिजीना प्रभावनी वर्णना दर्शावे छे। आ वर्णनानी शरूआत कविए सम्राट अकबरना साम्राज्य-विस्तारनी वातोथी करी अनुक्रमनां पद्योमां श्राविका चंपाना छ मासी तपना वरघोडानी, तेनाथी प्रेराईने पू. हीरविजयसूरिजीने तेडावता अकबरनी तथा सूरिजीना चारित्रथी अंजाईने सम्राट् अकबर वडे करावाता जीवदयानां सत्कार्योंनी विगतो टांकी छे। आम कृतिना १५ थी ६१ नं.नां पद्योमां सीपिगना जन्मनी वर्णनाथी मांडी गुरुभगवंतनी पधरामणी सुधीनी विगतो आलेखी त्यार पछीनां २० पद्योमां कृतिकारे जिनालयनी प्रतिष्ठा संबंधी वर्णना संदृब्ध करी छे। आ वर्णनामां कविए प्रतिष्ठा माटे करायेल तैयारीओनी, प्रतिष्ठा दिवसनी, प्रतिष्ठामां पधारेल मुनिभगवंतोनां नामनी तथा जिनालयमां बिराजमान जिनबिंबोनी वर्णना अनुक्रमे आलेखी कृतिनां अंत्य पद्योमां स्वनामोल्लेख करवापूर्वक कृति रचनासंवत दर्शावतां कृतिनुं समापन कर्युं छे। खास अहीं भाषापद्योमां जोवा मळती विविध पुष्पोनां तथा वाद्योनां नामोनी यादी ध्यानार्ह छे।
कृतिकार परिचय-कृतिनां अंत्य २ पद्योमां नोंधाया मुजब प्रस्तुत कृति कवि ऊजलनी रचना छे। हस्तप्रतमां कर्ताए पोते नोंध्युं छे ते मुजब तेओनी अटक संघवी छे। पोताना २ पुत्रो रतना तथा केशव ए बेना अभ्यासार्थे आ प्रत लखी होई तेओ २ संतानना पिता तथा प्रत अजारा स्थाने लखाई होवाथी कर्तानुं रहेठाण अजारा जणाय छे। बाकी रचना शैली जोतां कृतिकारश्रीनी भाषा रसाळ छे। टूंका वाक्यो’ने सरळ अनुप्रासो तेमना काव्यने वधु जीवंत बनावे छे। वधुमां काव्यमां प्रयोजायेल प्राकृत-संस्कृत भाषा सिवायना डीली, भ्रग, विछार, आलोछि, दिविसि, जिमि, निवि, इविचल जेवा बोलचालनी भाषाना शब्दप्रयोगो कृतिकारश्री पर पथरायेल समकालीन भाषाना प्रभावने दर्शावे छे। जोके कृतिगत तेवा शब्दोमांथी थोडा न समजाय तेवा पाठोने अमे वाचकोने समजाय ते रीते त्यां कौंसमां ज स्पष्ट कर्या छे जे बाबत वाचको खास ध्यानमां ले।
प्रति परिचय- कर्ता द्वारा ज लखाई होवाथी प्रस्तुत हस्तप्रत कृतिनी एक मात्र आदर्श प्रत छे। जोके काचा खरडामांथी आदर्श प्रत लखती वखते थयेला अनुपयोगने कारणे कृतिमां थोडी पाठ अशुद्धि, अक्षरो पडी जवा, पद्यांक खोटो अपावो वगेरे लेखनदोषो सर्जाया छे। बाकी हस्तप्रतनी स्थिति जोता कृति मूळ आदर्श प्रतनी नकल तो नथी ज। खास संपादनार्थे कृतिनी हस्तप्रत नकल आपवा बदल श्री लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिरना व्यवस्थापकोनो खूब खूब आभार…
शिवपुर मंडण आदिनाथ चतुर्मुखप्रासाद स्तवन
।। श्रीविजयसेनगरू(गुरु)भ्यो नमः ।।
प्रथम जिणेसरराय, पाय नमी मन रंगसिउ१ ए ।
समरीय सरसि[ति] माया(य), ऊलट२ आंणी हरखसिउं ए ।।१।।
अंजलि भगति करेवि, श्रीसहगुर३ पय लागीइ ए ।
चउमुक्ख तवन४ रचेसु, श्रीसारद मति मागीइ ए ।।२।।
नयर सीरोही सार, तिहां ओपम सोहि घणी ए ।
रतन चिंतामिणि जेम, कल्पवेलि ति(त)रूअरतणी ए ।।३।।
गढ मढ मंदिर पोलि५, तलीयाते(तो)रण६ पूतली ए ।
सपतभूमि आवास, कूआ वावि वाडी भली ए ।।४।।
चऊटे७ नाणावट८, नव नव पारिखि९ पेखीइ ए ।
नगरतणा मंडाण१०, गोखे जाली देखीइ ए ।।५।।
राज-लोक अभिराम, तिहां मिं(मं)दिर दिसइ घणां ए ।
न्याइं पालिइ राज, राय सुरताण सोहामणा ए ।।६।।
वर्ण अढारि लोक, सुख संपति लिखमी जिसी ए ।
घरि घरि रंभा नारि, अमृतवयण बोलिइं हसी ए ।।७।।
सोहिइ आठ प्रसाद, पोढी प्रतिमा गहगहिइं ए ।
दंड कलस सोवन्न, धर्म-धजा तिहां लहलहिइं ए ।।८।।
जांणे इंद्रविमान, धन धन जेणि करावीया ए ।
खरची धन सोवन्न, कलयुगि नाम रहावीया११ ए ।।९।।
पोढी पोषदसाल१२, तपगछनायक जांणीइ ए ।
श्रीहीरविजयसूरिंद, वांदी सुख सामाणीइ१३ ए ।।१०।।
श्रीविजयदान गुरुराय, तास सीस सोहंकरू ए ।
श्रीगौतम अवत्ता(ता)रि, वंदी जन[म] सफल करू ए ।।११।।
प्रागवंस- सिणगार, संघ सकल मुखि जाणीइ ए ।
सुप्रसिद्धि(द्ध) संसारि, श्रीसदराज वखाणीइ ए ।।१३।।[1]*
वस्तु- प्रथम प्रणमी प्रथम प्रणमी प्रथम जिनराज,
सरसिति सहगुर पय नमी जिनह तवन बोलिसु विचारी[य?],
नयर सीरोही जांणीइ जिनह भवन प्रतिमा सुसारीय ।
भगति करिइं श्रावक बहू संघ सकल मुख-राज,
प्रागवंश कुल प्रगट-मल१४ श्रीसंघवी सदराज ।।१४।।
भाषा- धर्म-धुरंधर धवल१५, जेम सदराज सुणीजि ।
धन्न धनी नामिइं सती ए, तस घरिणि१६ भणीजि ।।१५।।
अमर परिइं सुख भोगविइं ए, करिइं लीलविलास ।
च्यारि पुत्र अ[नु]क्रमि थया ए, पूगी मनि[नी] आस ।।१६।।
जयवंतो जयवंत तेम, सिरिवंत सिणगार ।
सीपिगि(ग) श्र(स)ब गुण आगला ए, सुरताण सुजांण ।।१७।।
सपत खेत्र धन वावरिइ ए, जिन-पूज प्रकार ।
पंच प्रमिष्ट सदा जपिइं ए, भरिइं पुण्य-भां(भं)डार ।।१८।।
पौषधि पडिक्कमणउं करइं ए, व्रत धरिइं समाई१७ ।
पर-उपगार दया करिइं ए, तिमि(म) वधिइं सगाई ।।१९।।
च्यार पूत्र परिवारसिउं ए, करिइं लील अपार ।
सीपिग छइ ति(ते?)मि कुलि त(ति)लु१८ ए, ते तो थयु उदार ।।२०।।
वस्तु- दान दीजि दान दीजि धरी सुभ भाव,
पात्र भली परि पोषीइ चिति विति१९ तीहां लाह लीजि,
साहामीवछल भगतिसिउं अभयदान करुणा करीजइ ।
अनंत बत्रीसे टालीइ अंगि गुण एकवीस,
सीपराज कुलचंदलु पूरि सहू जगीस२० ।।२१।।
भाषा- कुलमंडण कुलतिलक कीरतधर, कुल-आचार-वहंत वृषभधर ।
सीपिग सवे सुजाण तु जयु जयु।।२२।।
सकल-कलागुण केरो सागर, बहू बुधिवंत लखणनो आगर ।
सागर जेमि(म) गंभीर तु जयु जयु ।।२३।।
धरणिग-कुल रामिग अवतार, तास घरिणि गौरादे सार ।
प्रीय-भगनी(ती?) सुविचार तु जयु जयु ।।२४।।
बेटी तास अछइ सुकमाल, नामि सरूपदे रंगरसाल ।
नवयोवनभरि बाल तु जयु जयु ।।२५।।
सा(सी)पिगि ते परणी छइ राणी, सीअलगुणे करि सीत समाणी२१ ।
प्रीयसिउं प्रेम अपार तु जयु जयु ।।२६।।
अन्न दिवि(व)सि सुख विषय रमंती, सयल-कला-मुखि अमृत जपंति ।
देखि सुपन उदार तु जयु जयु ।।२७।।
सुणीअ सुपन तव किउ विछा(चा)र, अम्हां२२ कुलि होसि पुत्र उदार ।
जिणि(ण)सासिणि सिणगार तु जयु जयु ।।२८।।
उत्तम पुरुष ऊअरि२३ तस आया, त्रिणि पुत्र अनुक्रमि तिणि जाया ।
रूपि सुर-अवतार तु जयु जयु ।।२९।।
विनयवंत नामिइं आसपाल, वीरपाल सच्चवीर रसाल ।
सहजि ते सुकमाल तु जयु जयु ।।३०।।
रूपि जिसी सुरसुंदिरि नारी, परणाव्या ताति सुविचारी ।
जयवंतदे जयकार तु जयु जयु ।।३१।।
सुख विलसि सिणगारदे तास, अरिति(?)२४ वाणी वयण-विलास ।
लाछितणो आवास तु जयु जयु ।।३२।।
वस्तु- सीपिग सम[र]थ सीपिग सम[र]थ सवे गुण जांण,
पुत्र कलत्र परिवारसिउं सुख-रंगि लीला करंतो,
धर्मध्यां[न] भावि धरि जिनह भगति सेवा करंतो ।
घरि लिखमी अछइ घणी पूरि सजनह आस,
गुरु वांदिणि ऊमाहीउ२५ वाणि सुणेवा तास ।।३३।।
भाषा- हरखिउ साह सीपिग पूत्र कलत्र परिवार,
गुरु वंदिणि आविइं ऊलट धरी अपार ।
गुरू(रु) वंदी भगतिइं मागि वयण विचार,
गुरु जां(जं)पि अमि(म)रिति वाणी सुणो सुसार ।।३४।।
जिनभवण करावि बिंब प्रतिष्ठा सार,
ते दुख नि(न)वि पामि भवीयां सुणो विचार ।
दालिद्र२६ दोभागी२७ भुंड२८ सरीर न पावि,
भुंडी मति जे गति रोग सोग नि(न)वि आवि ।।३४।।[2]*
जस कीरिति वाधि लोक दीइं बहूमान,
महिमा सुखे प्रापति लहीइ अमरविमान ।
गणधर तीर्थंकर पदवी लाही प्रधान,
केवल पामीने पुहुचिइ मुगु(ग)तिनि धा(था)न ।।३५।।
घरि आव्या सीपिग वाणि सुणी गुरुराज,
आलोचिइं बेटा तिहां सरिसउ सीपराज ।
इम बेटा आगलि ब(बो)लिइं सीपिग छेक२९,
आगे पिणि करणी कीधी अच्छ(छ)इं अनेक ।।३६।।
भावड-सुत जावड प्रागवंश-सिणगार,
धन लाहु३० लीधउ शेत्रुंजि कउ३१ उध्धार ।
छाहड बाहड पेथड झंझण परधान३२,
रेविगिरि३३ खरची त्रेसठि लाख सोवन्न ।।३७।।
वस्तिगि तेजपालि अर्बदि वसी३४ करावी,
जगडू सोलारि रायां हाथ उडावी ।
भीमसी निभ सुभडसी विमल नरिंद,
करि अर्बदि वसही थाप्या आदिजिणंद ।।३८।।
धन संघवी धरणिग चउमुखि रोपी पाया,
थापी रसहेसर महिमा प्रगट कराया ।
गढि आगे वसंतपुरि आपिणि वडा वडेरा,
जिनभवन कराया श्रीसंतीसर केरा ।।३९।।
संघ आविइं जात्रि लेई भोग भलेरा,पूजिइं शंतीसर अरिहंत ठाकुर मेरा ।
लीउ लिखमी लाहो कीजि उत्तम काम, प्रासाद मंडावो होसी अविछ(च)ल नाम ।।४०।।
वस्तु- सुगुरु वंदी सुगुरु वंदी सुणी गुरुवाणि,
जिनह भवन उ[प]देस सुणि हरख चित्त तिहां घरे आविइं,
आलोछि(च)इं बेटा बहू कही वात मनि सहू भाविइं ।
हे(ह)विइं महुरुत३५ जोई भलुं मंडावो प्रासाद,
ऋषभ जिणेसर थापीइ लीजिइ पुण्य-सवाद३६ ।।४१।।
भाषा- हे(ह)विइं महुरुत जोई भलुं सा भमरुली, तेडीअ संघ अपार तु,
राय प्रतिइं जई वीनविउं सा भमरुली, कीधीअ भेटी सुसार तु ।
जिनह भवण मंडावीइ सा भमरुली, आलोनि३७ भूमि उदार तु,
राइ पसाइ३८ तिहां करी सा भमरुली, जे जोईइ लिउ सार तु ।।४२।।
गढ सरणूआ कडिणि३९ अछइ सा भमरुली, शंति जिणेसर पासि तु,
भूमि भली तिहां छइ घणी सा भमरुली, श्रीय संघ आवीय दाइ४० तु ।
मुहुरुत साधी४१ रांगनुं४२ सा भमरुली, श्रीय संघ दीआई४३ तंबोल४४ तु,
तिलक वधावी४५ छांटीइ सा भमरुली, केसर केरा घोल४६ तु ।।४३।।
सूत्रधार सासि(स)त्र४७ धरिइं सा भमरुली, ते तेडिया पंचास तु,
सात पुरुष४८ ति(त)लि तिहां खणी सा भमरुली, रोपीअ पायु तास तु ।
सेलावट पहिरावीया४९ सा भमरुली, वेलिग प्रमुख वखाणि तु,
काम करिइं मनि हरखीया सा भमरुली, सासि(स)त्रतणइं बंधाणि५० तु ।।४४।।
जोतरीया५१ रह कल५२ वहिइ सा भमरुली, भिड५३ पूरिइं एक चीति तु,
अंबाई नेवज५४ करिइं सा भमरुली, आगे एहजि रीति तु ।
पीठ५५ बंधावी परिकरी५६ सा भमरुली, मांडिउ चउमुख सार तु,
माखण पिंड समु भणउं सा भमरुली, कोरणीए अवतार५७ तु ।।४५।।
चिहुं पासे चउमुखतणे सा भमरुली, तलीयातोरण बार तु,
थांभि५८ थांभि तिहां पूतली सा भमरुली, नाटक नाछि(चि) तारि५९ तु ।
उपमा सोहि इति घणी६० सा भमरुली, इंद्रभवन उदार तु,
चउमुख चिहुं पखि नीपजि६१ सा भमरुली, धन सीपिग अवतार तु ।।४६।।
वस्तु- जोई मुहुरुत जोई मुहुरुत सुपरि सुविछा(चा)र,
संघ सहू तेडी करी दान मान फोफल-पान६२ आपी,
सात पुरुस पायु करी निहिचल६३ करी प्रासाद थापी ।
चकेसरि सांनिधि६४ करि मांडिआ तोरण थंभ,
चउमुख चिहुं पखि पेखीइ नव नव सोभा रंभ ।।४७।।
भाषा- इणि अवसिरि डीली-धणी६५ ए, पतसाह अकबर परि घणी ए ।
जाति मुगुल छइ तस तणी ए, बहू चतुरंगद-६६ सेनाधणी ए ।।४८।।
गौड देस मालव लही ए, बहू देस दसारण६७ ते सही ए ।
खान देस भ्रग६८ देसू ए, वले कूंकण देस नरेसू ए ।।४९।।
कानम(ड)६९गूजर जाणी ए, मारू नवकोट वखाणी ए ।
सिंघि(घ) देस खुरसाणू ए, लाहोर नील मूलताणू ए ।।५०।।
काबि(बू)ल गंगा पारू ए, जमनाट कुरुदेसारू ए ।
कामरू मुगुध कसमीरू ए, कासी कोसल कातीरू(?) ए ।।५१।।
चित्रकोट मेवातू ए, बहू देस अनेक विख्यातू ए ।
ठकुराई छइ असेसू ए, पतसाह दनी(ल्ली)को नरेसू ए ।।५२।।
अन्न दिवि७० श्रीआगरि ए, पतसाह रमिलि७१ रंगि करि ए ।
ध्रुमसी पंडिति(त) मुनि जती ए, तिहां चांपवती आवी सती ए ।।५३।।
षट-मासी तिणि तप करी ए, गुरु वांदिणि वेगि संचरी७२ ए ।
बिसी आडंबरि पालखी ए, पतसाह नजि(ज)रि आवी सखी ए ।।५४।।
तव ह(हिं)दुनी-पति७३ पूछीया ए, षटमासी रोजा७४ किउं कीया ए ।
वात सहू नृपनि कही ए, श्रीवीरहीर महिमा सही ए ।।५५।।
साह थानसींग आवीआ ए, षट दरसण(णी) वेगि बोलावीआ ए ।
धर्म-मर्म पतसा सुणी ए, ते तो(बो)लो हिंसा भाखिइं घणी ए ।।५६।।
जिनधर्म खूब७५ पिं(पं)डित कही ए, तपगछि निरलोभी मुनि सही ए ।
श्रीहीरविजय गुरु तस सुणी ए, हरखिउ पतसा परीक्षा भणी७६ ए ।।५७।।+
तब मेवाडा७७ पठाईया७८ ए,[3]*{ते तो गूजरदेसइ आइया ए(?) ।
भगति नमि गुर………….., …………………. पतसाऊ ए ।।५७।।
गूजर ……… सारू ए, गुरु आविइं बहू परिवारू ए ।
करिइं उछव संघ सारू ए, गुरु वंदि वर्ण अढारू ए ।।५८।।[4]+
गजगति चालि गणधरू ए, गुरु साम्हा आए अ[कब]रू ए ।
था[ल] भरी [मोती] वरू ए, [प]तसा [व]धावि सगरू७९ ए ।।५९।।+
कु(क)रूणासागर दिठि करू(रु) ए, नृप नाम दीउ तिहां जगगुरु ए ।
संवत सोल सोहंकरू ए, उगणालि(१६३९) …………………….। ।।५९।।
ते वाणि सगुर कहिइं ए, सांभि(भ)लि पतसा मनि गहिगहि ए ।
वरसि वरसि दिन बारू ए, करि गुरु-उपदेस अमारू८० ए ।।५९।।
चिहूं दिसि दूत चलाईया ए}, मत मारो जीव करी दया ए ।
पंच चउमासा विविद्धि(धि?) रहिइं ए, गुरु-आण मुगुल पतसा वहिइं८१ ए ।।५८।।
दिनि दिनि खरच मंडाणू ए, गुरु तपगछि उदया भाणू ए ।
साचउ जगतगुरु ब्रिदु धरी ए, मरू देसि पहुता जस वरी ए ।।५९।।
संघतणा नही पारू ए, गुरु वंदिइं विनय विछा(चा)रू ए ।
आसपाल सचवीर भणिइं ए, सहू फल्या मनोरथ आपणिइं ए ।।६०।।
वस्तु- हीरविजय गुरु हीरविजय गुरु सुणी पतसाह,
मुनिवर-महिमा सांभली नाम सहगुरु वेगिइ तेडाविइं,
कर जोडी पाए नमिइं भगति भावन हृदि सुध भाविइं ।
पुण्य-पुरुष देखी करी दीया जगतगुरु नाम,
मारूआडि गुरु आवीया बिरुद लहीनि ताम ।।६१।।
भाषा- आसपाल-बंधव भणइ सचवीर सुणीजि[इ],
मूलनायक श्रीप्रथम नाथ प्रतिष्ठ करीजिइ ।
चउरी बांधी चउवडी८२ ए महुरुत मंगल गाइ,
[श्री]सगुरु प्रतिष्ठा तिहां करिइं ए निरमालडी ए श्रीहीरविजयसूरिराय ।।६२।।[मणो][5]*
फागण वि(व)दि बुध तेरसी भल महुरुत जोई,
सुभ लगन वरतिइं तिहां श्रीनाभि सीरोही ।
+[6]चउरी बांधी चउक(व)डी ए महुरुत मंगल गाइ,
श्रीसगुरु प्रतिष्ठा तिहां करिइं ए निरमालडी ए श्रीहीरविजयसूरिराय ।।63।। मणो…
पंचसबद८३ वाजिइं निनाद८४ गोरी गुण गाइं,
भोजिग८५ गांधर्व मिली भाट मनवांछित पाइं ।
साहामी भगति भली करिइं ए खरची वित(त्त) अपार,
जिनवर तिहां प्रतिष्ठीया ए निरमालडी ए बिंबतणा नही पार ।।६४।। मणो…
श्रीहीरविजयसूरि सगुरुराय जस नामि तरीइ,
श्रीविजयसेनसूरि तास सीस वंदी सुख वरीइ ।
श्रीधर्मसागर वाचकवरू८६ ए श्रीकि(क)ल्याणविजय उवझाय ।
श्रीविमलहरख भगति नमुं ए निरमालडी ए श्रीय संतिचंद लागुं पाय ।।६५।। मनो…
श्रीसोमविजय पंडित गणी लाभविजय वांदीजि,
धनविजयभाणविजय प्रमुख वांदी फल लीजि ।
तिहां मुनिवर मिलीया घणा ए श्रीसंघ चतुरविधि जांण,
जिनवर चउमुखि थापीया ए निरमालडी ए जिम उदयाचल भाण ।।६६।। मनो…
वस्तु- चुमुख थापी चुमुख थापी अचल श्रीआदि,
उछव-रंग घणा करी तास महिमा पुहुविइं प्रसिधी,
संवत सोल-चोमाल (१६४४) तिहां वर प्रतिष्ठ सुभ लगिनि कीधी ।
दंड कलस धज लहलहइं उछव मेर समानि,
मूलनायक थिर थापीया जिमि(म) उदयचलि भाण ।।६७।।
भाषा- चउमुख सोहि सिवपुरी महिमा-भां(भं)डार,
आविइं संघ तिहां घणा जात्रिइ८७ सुविछा(चा)र ।
निरमल नीर नह(न्ह)वण करइं धरिइं धोति उदार,
केसर अगर कपूर-चूर जक्षकर्दम८८ सार ।।६८।।
रसहेसर पूजा रचिइं नव तिलि(ल)क विचार,
वर पुप्फे आंगी भरिइ८९ ते तो विविध प्रकार ।
चांपो मरूउ९० मोगरो सेवांत्रा(वंत्री)९१ सार,
पाडल९२ परिमल महमहइ९३ मचकुंद९४ मलार९५ ।।६९।।
करणी केवड केतकी जासूल९६ सुसार,
जाइ जूई वासंतिवेलि९७ करी तोडर-हार९८ ।
जिनवर कंठि चडावीइ दीइ मुगु(ग)ति अपार,
भावसहिति पूजा करिइं वली अष्ट-प्रकार ।।७०।।
धूप ऊखेविइं९९ आरती मंगलेवोकार१००,
ढोल दद्दा(दा)मा१०१ दुडदुडी१०२ झलर१०३ झणकार ।
वाजि(ज)इं भुंगल१०४ तिविलभेर१०५ नादिइं गुण गाविइं,
श्रीरसहेसर पूजा करिइं सुभ भावना भावइं ।।७१।।
वस्तु- आदि जिनवर आदि जिनवर चउमुख प्रासाद,
पूजा भगिति भली करिइं पुहुप्फ(प)१०६ धूप आरती ऊतारिइं,
मंगलेवो विधि साचविइं वंदन भाव परि भली कारिइं ।
पडह१०७ भेर१०८ झलरतणा होइंसं(सइं?) घणा निनाद,
ऋषभजिणंद पूजा करिइं लीजिइं जगि जस-वाद ।।७२।।
भाषा-सिहि(ह)रि संमेत अष्टापदिइं ए माल्हंतडे, अर्बदि श्रीगिरिनारि सुणि सुंदरे ।
श्रीसिद्धिखेत्र जुहारीइ ए माल्हंतडे, ते फल चउमुखि जाणि सुणि सुंदरे ।।७३।।
एक मन आदिजिनि(न) उलगिइं१०९ ए…, नाम जपिइं निसि-दीस सुणि…।
सांनिधि करिइं चके(क्के?)सरी ए…, पूरवि संघ जगीस सुणि… ।।७४।।
सिवपुरी नाम साछ(च)उं कीउं ए…, ऋषभजिनि(न) प्रमुख प्रासाद सुणि…।
आदि अजिति(त)जिनि(न) पूजीइ ए…, पांमीइ मुगति-आवास सुणि… ।।७५।।
प्रणमीइ संति जिणेसरू ए…, भवभय-भांजण एह सुणि…।
राखीउ सरि(र)णि पारेवडउ११० ए…, भवि भवि वंदीइ तअ(तेह?) सुणि… ।।७६।।
शीतल कुंथ जिणेसरू ए…, वंदीए नव निधि थाइ जाणि सुणि…।
तुम्ह दरिसिणि दुख छूटीइ ए…, पामीइ पुन्नि पसाइ जाणि सुणि… ।।७७।।
वीर जिणेसर तुं जयु ए…, त्रिसलानंदन धीर सुणि…।
चरम तीथंक[र] जांणीइ ए…, वंदीइ श्रीमहावीर सुणि… ।।७८।।
सहसु मनराज वुहुरा वली ए…, प्रागवंस परधान सुणि…।
चुमुखिइ सुपि(प)रि१११ सेवा करी ए…, कीधलुं इविचल११२ नाम सुणि… ।।७९।।
भोलीय भगति मिइं थुणिउ११३ ए…, ऋषभ जिणेसर देव सुणि…।
सुख संपति हिति(त)कारणी ए…, होजी(ज)उ भवि भवि सेव सुणि… ।।८०।।
संवत सोलसइं जांणीइ ए…, सम[व]त्सर चउमाल११४(१६४४) सुणि…।
आसू वि(व)दि तेरि(र)सि गरू११५ ए…, तवन रचिउं सुविसाल सुणि… ।।८१।।
कर जोडी ऊजल भणइ ए…, वीनतडी अवधारि सुणि…।
देव दया मझ करि मया ए…, सेवकनि सुखकार सुणि… ।।८२।।
कलस- श्रीतपगच्छमंडण दुरिय-विहंडण११६ श्रीविजयदानसूरि ज(जु)गपवरो११७,
तस पट्ट-धुरंधर प्रणत-पुरंदर श्रीहीरविजयसूरि जगतगुरो ।
तस गुरुगुण भगतिइं नव नव युगति थुणिउ युगादि जिणेस्वरो,
जे भणि सुणि बहू भाविइं,
तस घरि नव निद्धि((धि) आविइं ऋद्धि वृद्धि कि(क)ल्याण करो ।।८३।।
।। इति श्रीसिवपुरमंडण चतुरमुखप्रासाद श्रीआदिनाथ[स्तवन] संपूर्णः।।
संवत १६५४ वि(व)र्षे माहि(ह) सुदि ५ दिने अजारास्थाने संघवी ऊजल पुत्र-रतना केसव पठणार्थः(म्) श्रीरस्तुः।। श्रीहीरविजयसूरिगुरुभ्यो नमः ।। श्री विजयसेनसूरिगुरुभ्यो नमः।। सं. ऊजल लिखितं ।। [श्री]ःरस्तु ।।
शब्दार्थ
१. आनंदथी, २. होंश, ३.सद्गुरु,४. स्तवन, ५. नगरनो दरवाजो, ६. तोरण विशेष, ७. चोकमां, ८. नाणा बजार, ९. झवेरीओ(?), १०. रचना, ११. राख्या, १२. श्रावको माटेनी पौषध करवानी जग्या, १३. ?, १४. प्रत्यक्ष योद्धा जेवो, १५. बळद, १६. पत्नी, १७. सामायिक(?), १८. तिलक, १९. संपत्तिथी, २०. इच्छा, २१. समान, २२. अमारा, २३. उदरमां, २४. नाम छे (?), २५. उत्साहित थयां, २६. गरीबी, २७. दौर्भाग्य, २८. अशुभ, २९. अंते, ३०. लाभ, ३१. कर्यो, ३२. प्रधान, ३३. रैवतगरि, ३४. चैत्य, ३५. मुहूर्त, ३६. आस्वाद, ३७. आपोने, ३८. कृपा, ३९. पासे, ४०. लागमां आवे तेवुं, ४१. पार पाडी, ४२. कोटनी दीवाल, ४३. दीधां, ४४. पान-बीडां, ४५. स्वीकारी, ४६. घट्ट प्रवाही, ४७. शास्त्र, ४८. एक पुरुष जेटलुं ऊंडुं माप, ४९. भेट आपे, ५०. नियमानुसार, ५१. जोड्या, ५२. कादव(?), ५३. दुःख, ५४. नैवेद्य, ५५. पीठिका, ५६. ?, ५७. ?, ५८. स्तंभे, ५९. मनोहर, ६०. अतिशय, ६१. उत्पन्न थयुं, ६२. सोपारी तथा पान, ६३. निश्चय, ६४. सान्निध्यमां, ६५. दिल्हीपति, ६६. चार अंगवाळी०, ६७. दसार्ण, ६८. भृगुकच्छ, ६९. कान्हड, ७०. दिवसे, ७१. क्रीडा, ७२. चाली, ७३. बादशाहे, ७४. उपवास, ७५. सुंदर, ७६. माटे, ७७. दूत, ७८. मोकल्या, ७९. सुगुरु, ८०. अमारी, जीव-दया, ८१. धारण करे छे, ८२. झडपथी(?), ८३. पांच प्रकारना वाद्योनो मंगल सूचक ध्वनि, ८४. अवाज, ८५. प्रशस्ति गानार, ८६. उपाध्याय श्रेष्ठ, ८७. यात्रिक, ८८. केसर विगेरे द्रव्योथी बनावेल सुगंधीदार अंगलेप, ८९. करीए, ९०. मरवो, ९१. सफेद रंगना फूलनुं एक झाड, ९२. राता रंगना फूलनुं एक झाड, ९३. महेके छे, ९४. पुष्पविशेष, ९५. पुष्पविशेष(?), ९६. जासूद(पुष्प विशेष), ९७. जूई (पुष्पविशेष), ९८. डमरानी माळा , ९९. धरे, १००. मंगलदीवो करे (?), १०१. नगारुं, १०२. एक प्रकारनुं ढोलक, १०३. झालर, १०४. एक प्रकारनुं वाद्य, १०५. संभवतः ढोलक, एक प्रकारनुं वाद्य, १०६. पुष्प, १०७. ढोल, १०८. एक प्रकारनुं वाद्य, १०९. सेवा करे, ११०. कबूतर, १११. सारी रीते, ११२. निश्चिल, ११३. स्तव्या, ११४. चुम्मालीस, ११५. गुरु(वार), ११६. दूर करनार, ११७. युगश्रेष्ठ।
[1] *अहीं हस्तप्रतमां पद्यांक ११ पछी सीधो १३ आपायेल छे, जेने अमे यथावत् राखेल छे।
[2] *हस्तप्रतमां आ पद्यांक २ वार अपायो छे।
[3] *{ } छगडिया कौंसमां लखाएल पाठ हस्तप्रतमां पाछळथी उमेरायो होवानुं जणाय छे।
[4] + हस्तप्रतमां आ पद्यांको २ थी वधारे वार अपाया छे।
[5] *अहीं हस्तप्रतमां आंकणीनी पंक्ति लखवानी रही गई छे।
[6] +आ बन्ने पंक्तिओनी अहीं करायेल पुनरुक्ति प्रतिलेखकनो लेखनदोष जणाय छे।