‘नवधा भक्ति’ आ शब्दथी आपणे परिचित छीए। मूळे वैदिक परंपरामां वपरातो आ शब्द प्रभुनी नव प्रकारे भक्ति सूचवे छे। जेमानां श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, वंदन तथा आत्मनिवेदन ए ७ गुणो भक्तिना प्रकारो छे, ज्यारे सख्य तथा दास्य ए २ अवस्थाओ भक्तनो भगवाननी साथेनो संबंध जणावे छे। आ ज श्रेणीमां प्रस्तुत कृतिकारे भगवाननो भक्तनी साथे जोडायेलो ‘पाहुणो’ एटले के महेमान तरीकेनो भाव अहीं कृतिना माध्यमे वर्णव्यो छे। जेम पूर्वे जीरण शेठे चोमासी तपने पारणे प्रभुजीने पोताने त्यां गोचरी पधारवा विनंति करी त्यारे पोते प्रभुनी कई कई रीते भक्ति करशे तेना मनोरथो सेव्यां हतां, बराबर ते ज रीते प्रस्तुत कृतिमां कृतिकारे प्रभुजी ज्यारे आत्माने त्यां महेमान बनी पधारशे, त्यारे पोतानी सुमति रूपी पत्निनी साथे प्रभुनी कई रीते भक्ति करशे तेनुं सुंदर चित्रण अहीं उपसाव्युं छे। चालो हवे आपणे तेनो रसास्वाद माणीए।
कृति परिचय
अहीं कृतिनी शरूआत जीवनी समकित पाम्या पूर्वेनी अवस्थानी वर्णनाथी कराय छे। अनंता भवभ्रमण पछी कोई उत्तम पुण्यना योगे जीव मनुष्य भव पाम्यो, तेमांय तेने आर्यक्षेत्र, निर्मल कुल तथा सुदेव-सुगुरुनो संयोग थयो। अहीं सुगुरुनी देशनाथी बोध पामी कषायादिकथी निवृत्त थयेलो ते पोताना आत्माना घरे स्थिर थयो, वळी समकित, समतादि गुणोने आदरी, कुमतिनो त्याग करी सुमति-नारीने परण्यो। आत्माए अहीं देव-गुरु-धर्मनी साची ओळख पण मेळवी।
आम साचुं तत्त्व पामी जीवने प्रभु पर आदर थयो। तेणे प्रभुने पोताने त्यां बोलाववा विचार्युं। आ वात ज्यारे तेणे सुमति(पत्नी)ने करी त्यारे आनंदित थई छती सुमतिए तेने कह्युं के तमे कहो छो ते बराबर, परंतु आपणा मोटा भाग्य होय तो ज आवा महेमान आपणे त्यां पधारे माटे तमे तेमने झट तेडी लावो। पत्नीनुं आवुं वचन सांभळी वळी जीवने प्रश्न थयो के त्रणे भुवन जेना पर रागी होय तेवा महापुरुषो शुं आपणे त्यां पधारे ? पतिना आ प्रश्नना प्रत्युत्तरमां सुमतिए जवाब आप्यो के महापुरुषोने वळी शी मोटाई ? तेओ तो जेओ गाढ प्रीतिवाळा होय तेमने त्यां पधारे। पत्नीनी आवी वात सांभळी वळी जीवे कह्युं के तेओ कदाच आपणे त्यां पधारे तो आपणे तेमनी भक्ति कई रीते करीशुं ? तेमनी साचवण पण सारी रीते करवी पडशेने अने हा, तेमने पधराववा ज होय तो तुं तेमनी खराब मनथी भक्ति न करीश। तारा अवगुणोनो त्याग करजे। मननी चंचळता छोडी घणी चोकसाई करजे।
वळी जे तारुं घर छेने ते तो घणा अवगुणोनुं स्थान छे। अहीं रीसाळवी, कलहकारी, वांकुं चालनारी, जेम-तेम बोली पुरुषोने शरमावनारी क्रोधरूपी पडोसण छे। स्वच्छंदताथी चालनारी, बीजाने निंदनारी, पोताने वखाणनारी, बीजाना गुण न जोनारी मानरूपी नारी छे। छळथी के विश्वास देखाडी मनरूपी मृगने फसावनारी, अछता भावो देखाडनारी मायारूपी शिकारण छे। घणा बुद्धि-विज्ञानथी घडायेली एवी मोटी मनोरथरूपी जाळने पाथरनारी, एक क्षण पण रूडुं ध्यान न करनारी चिंतारूपी माछण छे। क्यारेय तृप्त न थाय तेवी, सदाय धसमसती, सघळे स्थाने भमी अन्यने अभडावती एवी तृष्णारूपी दासी छे। अध उडी (?) उपर रागवाळो, सदा अपवित्र, साते धातुए(संपूर्ण रीते) अशुचीवाळो कामरूपी चमार छे। जेम गंदकी पर भमती माखी सारुं के नरसुं जोती नथी तेम बंधायेली होवा छता सखणी न रहेती मनरूपी आंधळी मांकडी(वांदरी) छे। पापना निधान जेवी आर्तध्यान तथा रौद्रध्यान रूपी बे शिकारणो छे। रात ने दिवस जेने न रोकी शकाय तेवी, माया चेजमां(?) मस्त रहेनारी, छ-कायना वधमां आसक्त एवी हिंसारूपी स्त्री छे (?)। बीजाना घरनुं काम -तेमाय पण विशेषे लोकोने इच्छवा योग्य रसोई करनारी, जेनी(?) खानदानी कोईए जोई नथी तेवी, रात दिवस बोलनारी पर–निंदारूपी रसोयण छे। घरमां थूकनारी ने क्षण मात्र अळगी न थनार जुगुप्सारूपी सुं(सं)खिणि स्त्री छे। जेना आववाथी चित्र शून्य थाय, जे झलफलती (दोडती?) चारे दिशामां फेलाय छे तेवी निद्रासमान मदिराने पात्र छे। त्यजवा योग्य पापने आचरीने फेलावनारी रतिरूप दासी छे। सारी संगतने छोडनारी तथा पापरूपी कचराने दूर न करी विरति-मंदिर उखेडनारी अरतिरूपी कुंवरी छे। आवुं ज्यां होय त्यां वळी परोणो केम आवशे?
आ वातना जवाबमां फरी सुमति बोली के- “हे कंत ! तुं तेनी चिंता न कर, कारण के प्रभु तो बधाने समदृष्टिथी जोवावाळा छे। जेम मेघ ठाम- कुठाम, आंबो-धतूरो, खाली-भरेलुं एम जोतो नथी, तेम मोटाओ पण मेघ समान होय छे। वळी जेम कुसुमने हाथ सुवासित करवामां, चंद्रने के सूर्यने प्रकाश पाथरवामां, अमृतने जिवाडवामां कोई अंतर नथी तेम मोटाओने स्वीकारेलुं पाळवामां कोई अंतर होतुं नथी। अने बीजी वात ए के मारे सघळां सारां लक्षणोथी पूरी, साची मतिवाळी, पापविरतिनी प्रीतिवाळी पाडोसण छे। गुप्ति मारा आंगणने चोक्खुं करे छे। सत्य घरनो कचरो दूर करे छे। करुणा रसोई करे छे। ज्ञानरूपी स्नान दोष निवारे छे। वळी कुमतिनो संग के मायारूपी चांडालिनी मने गमती नथी। माटे तमे चिंता कर्या वगर परोणो नोतरो।”
आम सुमतिनी वात सांभळी आनंदित थई जीवे परमात्माने पोताने त्यां पधारवा विनंति करी। भक्तनी विनंती सांभळी छत्र, चामर, भामंडल, धर्मचक्र, अशोकवृक्ष, देवदुंदुभि, स्वर्णकमल, [पुष्पवृष्टि?] ए आठ प्रातिहार्योथी शोभतां तेने त्यां प्रभु पधार्या। प्रभुने पोताने त्यां पधारेला जोई सुमतिए प्रभुने बेसवा योगसमाधिरूपी आसन, भक्तिरूपी शैया, गीत कवित्तादि रूपी रसोई, सद्भावरूपी जळ, विरतिरूपी गोरस, विनयरूपी चलू-जळ, प्रभुभक्तिरूपी पान, वैयावच्चरूपी शृंगार, शुभ भावनारूपी वस्त्रादिथी अनेक प्रकारे भक्ति करी। भक्तनी आवी सुंदर भक्तिथी खुश थई प्रभुए भक्तने समकितनुं मूळ एवी क्रिया आपवानी कृपा करी, तो जीवे पण प्रभुनी पासे शाश्वत सुख न मळे त्यां सुधी तेमना संगनी मांगणी करी जेने प्रभुए स्वीकारी।
आम कृतिकारे कृतिमां जीवनी पूर्वावस्थाथी मांडी तेना परम तत्त्वना अनुसंधान सुधीनी वात क्रमबद्ध आलेखी स्तवनाना अंते स्वनामोल्लेखपूर्वक कृतिनुं समापन कर्युं छे।
कृतिकार परिचय
प्रस्तुत कृति कवि ब्रह्मर्षिनी गुर्जर भाषानी लघु रचना छे। कृतिनी शैली प्रासादिक छे। कृतिमां प्रयोजायेला शब्दो कृतिकारनी भाषा समृद्धि दर्शावे छे। संपादित कृति सिवाय कृतिकारे जंबुद्वीपप्रज्ञप्ति, दशाश्रुतस्कंध तथा पक्खीसूत्रनी वृत्तिनी रचना कर्यानी नोंध मळे छे।
प्रत परिचय
कवि श्रीब्रह्मना शिष्य विनयकीर्तिसूरिजीए पोते पोतानी विद्यार्थीनी नान्ही वहु माटे लखेली, कोबा श्री कैलाससागरसूरिजी ज्ञानभंडारनी ५३७१३ नं. नी हस्तप्रतने आधारे प्रस्तुत कृतिनुं संपादन करायुं छे। कृतिनुं लेखन एकंदरे सुंदर छे। कृतिनी पाठांतरनी १५३५७ नं. नी प्रत लालाभाई दलपतभाई विद्यामंदिरनी छे। जो के बन्ने प्रतोनुं आलेखन एक ज प्रतना आधारे थयुं होइ बन्नेनी अशुद्धिओ तद्दन एक सरखी छे। खास संपादनार्थे कृतिनी नकल आपवा बदल बन्ने ज्ञानभंडारोना व्यवस्थापकोनो तथा कृतिनो भाव आलेखवामां मदद करवा बदल प. पू. आ. श्री कल्याणहेमसूरिजीनो खूब खूब आभार..
परमेश्वर प्राघूर्णक स्तवन
।। ।। श्री वीतरागाय नमः ।। ढाल–१।। पुर इखुकारइं०– ए ढाल ।।
त्रिभुवनतारक जिनवर परहुणउ१, रंगइं गाऊं धरि ऊलट२ घणउ ।।
धरि घणउ ऊलट रंगि गाउं जीवनी नहीं आदि ए,
संसारना अवतार३ कीधां जीवि पड्यइ प्रमादि ए ।
अति पुन्ययोगइं मानुषइ भवि खेत्र आरिजि४ अवतर्यउ,
कुल विमल पामी सुगुरु संगइं धर्म-भाव हियइ५ धर्यउ ।।१।।
श्रीगुरू साचउ द्यइ उपदेस ए, समझावइ नवतत्व विसेस ए ।।
सविसेस तेणइं न्याननइ६ बलि समइ७ मारगि आणियउ,
जे कुमति-रमणी रंगि रातउ८ हुतउ अति घण प्राणियउ ।
बहु पाप व्याप कषाय करणी तेहथी मन वालियूं(यउ),
तव सहजनइ९ घरि जीव आव्यउ प्रकृति-दूषण टालियउ ।।२।।
समकित समतानइ गुणि आदरी, कुमति कुनारी दूरइं परिहरी ।।
मनि धरी वर गुण सुमति-घरणी१० पाणिग्रहण११ करावियउ,
त्रिणि तत्व साचां ओ(उ?)लखी जिनराज पासइं आवियउ ।
मनि चींतव्यउं ए देव गुरुउ१२ नूंतरूं१३ करि परहुणउ,
प्राणियउ पूछइ सुमतिनइं तव करी आदर अति घणउ ।।३।।
आपणडइ१४ घरि तेडउं१५ परहुणउ, जगमाहइं छइं महिमा ते[ह?] तणउ ।।
तेह तणउ महियलि घणउ महिमा न्यान पार न जाणीइ,
नरराज सुरपति चंद्र सुरिजि(ज?) तासु गुण वखाणीइ ।
ते निरंजन ब्रह्मचारी [नारि?] संग रंगइ नवि रमइ,
सवि जाण जोगीसर विद्याधर तेहनइ अह निसि नमइ ।।४।।
तेह तणा गुण को न सकइ१६ कही, तेह तणइ मनि माया मल नहीं ।
मल नहीं पुरुष पुराण१७ माटिइं१८ राग रोस न दीसए,
निद्रा न निंदा लोभ परिग्रह रहित ते जगदीस ए ।
संसारना अवतार जसु नहीं वैर कलि कलिमल१९ नहीं,
वलि विषय पंच विकार वार्या२० देव उत्तम ते सही ।।५।।
छेदी तिणि भव-तृष्णा-वेलडी, तजी रसाली२१ माया-सेलडी ।।
जिणि नडी२२ क्रोध-पिशाचनी गति लोभ-पसर२३ निवारए,
वलि कुमति-मति-कंथेरि २४ मरदी पाप-कंद विदारए ।
मुगति नगरइं वास अविचल दोष तजइ अढार ए,
त्रिणि-भुवन-दीपक मोह- तम-हर नहीं जसु अहंकार ए ।।६।।
।। ढाल–२ ।। जीव अनइं अजीव प्रकार रे०–ए ढाल ।।
ए जिणवर-गुण वखाण्या रे, जीवइं जिम सूत्रइं जाण्या ।
संभलिया२५ मन-सु(सू?)धि सुमतिइं रे, अति राग धरइ गुण विगतइं२६ ।।७।।
तव सुमति सोभागिणि हरखी रे, जिन-परहुणडा गुण परखी ।
कहइ प्राणनाथनइं वाणी रे, प्रिय भाग्यदशा सपराणी२७ ।।८।।
परहुणडउ ए छइ सारउ रे, नूंतरिवा विलंब निवारउ ।
आपणडइ मंदिर तेडउ रे, इणि वातइं कंत म जेडउ२८ ।।९।।
एहनउ छइ दुरलभ संग रे, जिम आलसू माहइं गंग ।
रतनाकरमाहि रतन्न रे, किम लहियइ विणु जतन्न२९ ।।१०।।
अमृत किम पीवा लहियइ३० रे, प्रिय वार वार सूं कही(हिय?)इ।
रखे३१ ए परहुणडउ जाइ रे, करउ आदर लागी पाइ ।।११।।
तव कंत कहइ सुणि नारी रे, जोज्यो एक वात विचारी ।
परहुणडउ अति सोभागी रे, त्रिभु[व]न छइ तेहनूं रागी ।।१२।।
किम आपणडइ वशि थास्यइ रे, मोटांनइ मंदिरि३२ जास्यइ ।
कामिणि कहइ कंत म डोलउ३३ रे, ए उ(ओ?)छउ३४ बोल म बोलउ ।।१३।।
मनमाहइं चिंता म(मा?)-ऽऽणउ३५ रे, ए पुरुष-शिरोमणि जाणउ ।
ए मोटा नाह्ना न गणइ३६ रे, आघउ-पाछउ३७ को न भणइ ।।१४।।
समता-परिणामि३८ निहालइ रे, राय रंक सम इमनि३९ पालइ ।
जिह४० अविहड४१ रंग विचारइ रे, तिहनइ मंदिरि पउधारइ४२ ।।१५।।
इम सुमतितणउं मन जाणी रे, कहइ प्राणनाथ ए वाणी ।
तउ४३ भगति करिसि४४ किम तिहनी रे, छइ अलख अकल४५ परि एहनी ।।१६।।
साचवण भली परि कीजइ रे, तउ ए परहुणडउ रीझइ ।
सुणि सीख कहउं ते सारी रे, जोज्ये मनमाहि विचारी ।।१७।।
कूडइ४६ मनि भगति [म] मंडे४७ रे, अवगुण पोताना छंडे ।
तूं करिज्ये घणी चोखाई४८ रे, परिहरि मननी चपलाई ।।१८।।
तुझ पाडोसिणि चंडाली रे, छइ रीसडली४९ विकराली ।
ते करती कलह न सांकइ५० रे, नितु हींडइ५१ वदनइं वांकइ ।।१९।।
जिम तिम नितु वाणी जंपइ रे, ते संभलि नर ओझंपइ५२ ।
मान-मतवाली५३ पर निंदइ रे, हींडइ आपणडइ छंदइ५४ ।।२०।।
आपणपउं घणूं(?) वखाणइ रे, परना गुण चित्ति न आणइ ।
माया वागरणी५५ वास५६ रे, ऊपाअइ५७ छल वेसास५८ ।।२१।।
कूड पासइं५९ मन-मृग पाडइ६० रे, अणहूंता६१ भाव देखाडइ ।
चिंता माछिणि६२ अति खोटी रे, मनोरथ-जाली मोटी ।।२२।।
गुं(गूं?)थइ बहुलइ विन्यानइं रे, खिण एक न रूडइ ध्यानइं ।
तृष्णा लूंडिणि६३ ऊजाइ६४ रे, कइयइं नवि पूरी थाइ ।।२३।।
ते आभडछेटि६५ करंती रे, घरि सघलइ रहइ भमंती ।
वलि काम चमार कुसंगी रे, अध६६ उडी६७ ऊपरि रंगी ।।२४।।
ते कइयइं पवित्र न थाइ रे, सातइ धातइं खरडाइ६८ ।
मन मंकडली६९ छइ आंधी रे, ते सखणी न रहइ बांधी ।।२५।।
रूडउं वी(वि?)रूउं७० न विमासइ७१ रे, माखी जिम कसमल७२ पासइ ।
आरति नइं रौद्र बि ध्यान रे, आहेडी पाप-निधान ।।२६।।
करइ हिंसा मारि विलाई७३ रे, दिन राति न वारी७४ जाई ।
छक्काय वधइ ते राती रे, माया चेजइ७५ रहइ माती७६ ।।२७।।
पर-ताति७७ करइ घर-काम रे, तसु परठ्यउं७८ रांधिणि७९ नाम ।
केलवइ८० विशेषि रसोई रे, वंछइ जिमवा सहु कोई ।।२८।।
जोई नहीं तासु बुन्यादि८१ रे, ते अहनिशि राती वादि८२ ।
सूग८३ सूं(सं?)खिणि घरमाहिं(ह)इं थूंकइ रे, खित्र मात्र न पासूं८४ मूंकइ ।।२९।।
तुझ पासइं मदिरा-कूंडी रे, ते निद्रा रूपइं भूंडी ।
तिणि आव्यइ सूनी८५ थाइ रे, झलफलती८६ चिहुं दिशि जाइ ।।३०।।
परिहरिवां८७ जे कह्यां पाप रे, रति-दासी तिहां करइ व्याप ।
वलि जे छइ अरतिकूंआरि रे, तिणि रूडी संगति वारी ।।३१।।
ते विरति-मंदिर ऊखेडइ रे, वासीधू(दुं?)८८ पाप न फेडइ८९ ।
इम तुझ घर उजीसालूं९० रे अवगुण सघलानूं थालूं९१ ।।३२।।
तिणि तुझ घरि कहि किम आवइ रे, सो परहुणडउ मन भावइ ।
तव सुमति कहइ सुणि कंता रे, तुझनइं एवडी सी चिंता ।।३३।।
गुरुआ गुण जाण वखाणइ रे, तिहनी तूं रीति न जाणइ ।
जलधर९२ वरसइ थलि९३ नीचइ रे, सहकार९४ धनू(तू)रा सींचइ ।।३४।।
भरियां ठालां९५ सम लेखइ९६ रे, दुरबल देखी न ऊवेखइ९७ ।
डावा जिमणा दुइ हाथ रे, वासइ९८ वर कुसुम सनाथ ।।३५।।
ससिहर९९ सघलइ विस्तारइ रे, निज किरण अनेक प्रकारइं ।
सघलइ करइ सूर प्रकास रे, संपूरण तेज-निवास ।।३६।।
अमृत सहूनइं उपगारी रे, अंतरनी भ्रांति निवारी ।
ए सयल पदारथ जोई रे, सविहूं साधारण होई ।।३७।।
तिम मोटा अंतर नाणइ रे, निज भगततणूं मन जाणइ ।
ए सम परिणामि निहालइ रे, पडिवन्नूं१०० अविचल१०१ पालइ ।।३८।।
।। ढाल–३ ।। थंभणपुर सिरि०–ए ढाल ।।
सुमति कहइ माहरी पाडोसिणि, सकल सुलक्षण पूरी छइ गुणि,
सुणिज्ये कंत विचारी ।
साची मति धर्म-काजि मनावी, पाप-विरतिसूं प्रीति वणावी१०२,
भावी समिति सलूणी१०३ ।। ३९।।
गुपिति१०४ करइ घर-अंगण रूडउं, सत्यवाणी सवि टालइ कूडउं,
भू(भूं)डउं तसु न सुहाइ१०५ ।
करुणा नितु न वहडइ१०६ र(रं)धइ, न्यान सनान चोखई संधइ१०७,
धंधइ१०८ दोष निवारइ ।।४०।।
एह तणइ हूं रंगइं रातूं, वीसइ वि(वी?)सा१०९ वचन ए साचूं,
काचूं कंत म जाणउं ।
ए माहरइ सहियरनी टोली, रंग-रसाली भंभरभोली११०,
उ(ओ?)ली१११ बइठी सोहइ ।।४१।।
कुमति कुसंग न मुझनइं भावइ, माया-मातंगी११२ न सुहावइ,
आवइ नहीं समीपइं ।
तिणि कंता चिंता म करेज्यो, परहुणडानइं आदर देज्यो,
लेज्यो नूंतरि लाहउ११३ ।।४२।।
।। ढाल–४ ।।
कंत सुणी कामिनि-वाणी, मनि आणंद आणी रे(ए?),
जाणीनइं, धर्म-राग हियडइ धरी ए ।
विनय करी चरणइं लागी, करूं वीनती स्वामी रे(ए?),
पामीनइं, भगति करूं प्रभु ताहरी ए ।।४३।।
मझ मनमंदिर पउधारउ, तव भगवंत आवइ रे(ए?),
भावइ ए, भगततणी करुणा घणी ए ।
त्रिणि छत्र मस्तकि सोहइ, चामर बिहूं पासइं ए,
भासइ११४ ए, भामंडल पूठिइं वली ए ।।४४।।
धर्मचक्र आगलि झलकइ११५, करइ छांह११६ अशोक ए,
शोक ए, नासइ नयणइं जोवतां ए ।
वाजइ दुंदुभि देवनी, जय जय सुर जंपइ ए,
कंपइ ए, मिथ्या-मति जिन दरसणइं ए ।।४५।।
कनक-कमलि पगलां ठवइ११७, शोभा गुणइं दीपइ ए,
जीपइ११८ ए, त्रिभुवन रूपइं आपणइ११९ ए ।
योजन-भूमि समोसरण, त्रिगढइ१२० बइठा राज[इ?]१२१ ए,
भाजइ१२२ ए, भव-भय-संकट भगतनां ए ।।४६।।
साथि महारिषि केवली, गुण-[सं?]पूरण दीस[इ] ए,
हींसइ१२३ ए, हियडूं जोतां जे वली ए ।
रिद्धि अनंती जिनतणी, कोइ पार न पामइ ए,
नामइ१२४ ए, मस्तक त्रिभुवनजन सहू ए ।।४७।।
।। ढाल–५ ।। एहवुं रूयडउ रे नारिंगपुरवर०–ए ढाल ।।
सुमतिइं रे आव्यउ दीठउ परहुणउ रे, आणइ प्रीति अपार ।
रूडी रे रूडी रे भगति करइं भावइं करी रे, सुविवेकइ स(सु?)विचार ।।४८।।
*[1]जिनजी रे जिनजी रे आव्या मझ मनमंदिरइं रे, धन धन ए अवतार ।
त्रिभुवन रे त्रिभुवन रे नायक नयणइं निरखियउ रे, मोहन-मूरति सार (आंकणी)
आसन रे मंड्यउं१२५ योग-समाधिनूं रे, बइठा श्रीजिनराज ।
हरखइ रे हरखइ रे भगति सजाई१२६ नीपजइ रे, दिवस सफल गिणउं आज ।।४९।। जि..
सहियर रे पाडोसिणि तेडी सहू रे, त्रेवड१२७ करइ अनेक ।
सोहइ रे सोहइ रे मोहइ मन मुनिवरतणां रे, सुकुलीणी स(सु?)विवेक ।।५०।। जि..
बहु परि रे गीत कवित तवनइं१२८ करी रे, नव नव छंद रसाल ।
कीधी रे कीधी रे सरस सकोमल रसवती१२९ रे, मांड्यउं गुणमणि-थाल ।।५१।। जि..
रूडइ रे भाव-जलिइं न्हवराविया रे, भोजन-भगति सुचंग ।
अति घण रे अति घण रे परहुणडानी साचवी रे, सहियरि राख्यउ रंग ।।५२।। जि..
जाणी रे भगति भली सेवकतणी रे, गोरस१३० विरति-कलोल ।
शीतल रे शीतल रे वचन विनय पाणी चलू१३१ रे, पूजा भगति तंबोल ।।५३।। जि..
अंगइं रे विविध वेयावच अति भला रे, पहिराव्या शृंगार१३२।
वारू रे वारू रे भावन-वस्त्र समोपियां१३३ रे, शोभा धरइ अपार ।।५४।। जि..
देखी रे भगति घणी सेवकतणी रे, तूठा१३४ त्रिभुवनराय ।
आपइ रे आपइ रे समकितमूल-क्रिया भली रे, अविचल राज पसाय ।।५५।। जि..
सुखवटि१३५ रे परहुणडासूं थई घणी रे, माग्यउ एक पसाउ ।
अविहड रे अविहड रे संगइं स्वामी तम्हे रहउ रे, मझ मनथी म म जाउ ।।५६।। जि..
अविचल रे संगम मान्यउ परहुणइ रे, करी सेवकनी धणियाप१३६ ।
हियडइ रे हियडइ रे माहरइ वास वस्यउ सही रे, वास्य(र्य?)उ दुखनउ व्याप ।।५७।। जि..
जिनजी रे परहुणउ जगवा[ल]हउ रे, श्रीब्रह्म भगत आधार ।
सेवउ रे सेवउ रे साजण सुंदर भगतिसूं रे, अविचल सुखदातार ।।५८।। जि..
।। इति श्रीपरमेश्वर प्राघूर्णक स्तवन ।।
शब्दार्थ
१. महेमान, २. होंश, ३. जन्म-मरणादि, ४. आर्य, ५. हृदयमां, ६ ज्ञानना, ७. समये(?), ८. आसक्त, ९. आत्माने, १०. सुमतिरूपी पत्नी, ११. लग्न, १२ गरवा, मोटा, १३. बोलावुं, १४. आपणां, १५. बोलावो, १६. शके = समर्थ थाय, १७. परमेश्वरमां(?), १८. माटे(?), १९. मेल, २०. रोक्या छे (ते), २१. रसाळ, २२. पीडी, दुःखी करी, २३. लोभनो फेलावो, २४. एक हलकी कांटाळी वनस्पति, २५. सांभळ्या, २६. विस्तारपूर्वक, २७. बळवान, २८. विलंब, २९. प्रयत्न, ३०. पामीए, ३१. कदाच, ३२. घरे, ३३. डहोळो, ३४. नबळो, ३५. न करो, ३६. गणकारे, ३७. आगळ-पाछळनुं, ३८. सम दृष्टिथी(?), ३९. एमने, ४०. जे, ४१. गाढ, ४२. पधारे, ४३. तो, ४४. करीश, ४५. न जणाय एवी, ४६. खराब, ४७. आरंभे, ४८. शुद्धि, ४९. रोषिली, ५०. संकोच पामे, ५१. चाले, ५२. संकोच अनुभववो, ५३. गर्विष्ठ, ५४. इच्छा प्रमाणे, ५५. वाघरण(?), ५६. रहेठाण, ५७. उपजावे छे, ५८. विश्वास, ५९. जाळमां, ६०. फसावे छे, ६१. न होवा छतां, ६२. माछीमारनी स्त्री, ६३. दासी, ६४. घसमसे छे, ६५. अभडाववानी क्रिया, ६६. ?, ६७. ?, ६८. बगडेली, ६९. मांकडी, वांदरी, ७०. खराब, ७१. विचारे, ७२. कचरानी, ७३. वळगी(?), ७४. अटकावी शकाय, ७५. ?, ७६. आसक्त, ७७. पर-निंदा, ७८. स्थाप्युं, ७९. रसोयण(?), ८०. बनावे छे, ८१. खानदानी, ८२. ?, ८३. जुगुप्सा, ८४. पडखुं, ८५. शून्य(?), ८६. दोडती, ८७. त्यजवा योग्य, ८८. कचरो, ८९. दूर करे, ९०. ?, ९१. स्थान, ९२. मेघ, ९३. स्थळे, ९४. आंबो, ९५. खाली, ९६. लक्ष्यमां ले, ९७. उपेक्षा करे, ९८. सुवासित करे, ९९. चंद्र, १००. स्वीकारेल, १०१. निश्चल, १०२. करी, १०३. सुंदर, १०४. गुप्ति, १०५. शोभे, १०६. ?, १०७. लक्ष्यमां राखे, १०८. धांधल, १०९. निश्चितपणे, ११०. साव भोळी, १११. श्रेणीमां(?), ११२. मायारूपी चंडालिनी, ११३. लाभ, ११४. शोभे छे, ११५. प्रकाशे छे, ११६. छाया, ११७. मूके छे, ११८. जीते छे, ११९. पोताना, १२०. समोवसरणमां, १२१. शोभे छे, १२२. भांगे छे, १२३. हर्ष पामे छे, १२४. नमावे छे, १२५. शरू कर्युं, १२६. तैयारी, १२७. गोठवण, १२८. स्तवने, १२९. भोजन, १३०. दूध, दहीं विगेरे, १३१. जम्या पछी हथेळीमां पाणी लई मों चोक्खुं करवुं ते, १३२. शणगार, १३३. आप्या, १३४. खुश थया, १३५. सुखवार्ता, १३६. ?.
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[1] *अहीं जि.. थी जिनजी रे…ए पद्य आंकणी रूपे लेवुं