विवाहलो एटले ज व्याहलो। तेनो अर्थ थाय विवाह संबंधी काव्य। मध्यकाळमां विवाह संज्ञक काव्यो माटे आ काव्य प्रकार घणो प्रचलनमां होई तेमां कृष्ण-रुक्मिणी विवाह, वेणीवच्छराज विवाहलो, पंखीडा विवाहलो जेवी घणी कृतिओ रचाई। समयांतरे आ ज काव्य प्रकारनो उपयोग करी आध्यात्मिक विवाह रचवानी एक विशिष्ट परंपरा जैन कविओए शरू करी। आ परंपरामां कविओ देव तथा गुरुने केन्द्रमां राखी विवाहनी वर्णना करतां। प्रस्तुत बन्ने कृतिओ पण तेवा ज कविओए रचेली विवाहला संज्ञक लघु रचनाओ छे। कृतिकारोए अहीं अनुक्रमे देव एटले के स्थंभन पार्श्वनाथ प्रभुने तथा गुरु एटले के जसवंतजी आचार्यने उद्देशीने प्रस्तुत कृतिओनी रचना करी छे। चालो आपणे ते बन्ने कृतिओनो अनुक्रमे रसास्वाद माणीए।
कवि लक्ष्मीमंदिर कृत
१. स्तंभन पार्श्वनाथ विवाहलो
प्रस्तुत कृति पार्श्वनाथ प्रभुना १० भवोने आलेखती ३२ पद्योनी लघुकृति छे। कृतिकारे अहीं कृतिना प्रथम ११ पद्योमां प्रभु पार्श्वनाथना ९ भवोनी वर्णना आलेखी, कृतिना १२मां पद्यथी प्रभुना १०मा भवनी, तेमां’य विशेषे तेमना च्यवनथी मांडी माताने थयेल स्वप्नदर्शन, पितावडे करायेल तेनुं फलकथन, पुत्र-जन्म, सुचिकर्म विधान, इंद्र-महोत्सव, पुत्रजन्म वधामणीना आनंदमां अश्वसेन राजानो आनंद, यौवन प्राप्त थतां प्रभुनो लग्नोत्सव, लोकांतिक देवनी विनंति, सांवत्सरिक दान, दीक्षा, केवळज्ञान, संघस्थापना तथा मोक्षगमन सुधीनी वर्णना अनुक्रमे पण संक्षिप्तरूपे गूंथी लीधी छे। जोके आ वर्णनाने विवाहला काव्य प्रकार साथे कई रीते संगत करी कृतिकारे तेने विवाहलो एवी संज्ञा आपी छे ते अमोने समजातुं नथी।
आम कृतिना २९ पद्योमां कृतिकारे प्रभुना १० भवोनी वर्णना आलेखी अंत्य ३ पद्योमां प्रभुनी गुणस्तवना आलेखवापूर्वक स्व-परंपराना नामोल्लेख साथे कृतिनुं समापन कर्युं छे।
अज्ञातकर्तृक
२. जसवंतजी आचार्यनो विवाहलो
आध्यात्मिक विवाहनुं दर्शन करावती प्रस्तुत रचना जसवंतजी आचार्यनो विवाहलो नामनी १६ गाथानी रचना छे। कृतिकारे अहीं आ. जसवंतजीना लग्ननी वर्णना आलेखता जिनेश्वर अने शारदानी पुत्री संयमश्रीने परणवा इच्छता आ. जसवंतजी परणवा क्यां आव्या ? सासुए तेमना पोंखणा कई रीते कर्या ? वरनुं नाक खेंची(?) सासुए शुं शिखामण आपी ? वरनी लग्नमंडपमां पधारामणी थतां कयां-कयां विधानो करायां ?, ते समये माता तथा बहेन वडे शा आशिष अपाया ? जसवंतजी माटे केवो कंसार करायो ? ते कोणे पीरस्यो ? ते खाधा पछी शुद्धि कई रीते कराई ? तेनी विगतो नोंधी छे। आम प्रारंभना १३ पद्योमां उपरोक्त वर्णना वर्णवी कृतिना छेल्ला ३ पद्योमां कृतिकारे वर-वहुना शणगारनी तथा जसवंतजीना गुणोनी वर्णना आलेखी कृतिनुं समापन कर्युं छे।
कृतिकार परिचय
संपादित प्रथम कृति स्तंभन पार्श्वनाथ विवाहलो खं(क्षां?)तिमंदिर गणिना शिष्य कवि लक्ष्मीमंदिरनी रचना छे। कृतिमां कर्ताना गच्छ विशे कोई उल्लेख नथी। कृतिनी रचना शैली जोतां तेओनो सत्तासमय प्रायः विक्रम सं. १६मीना उत्तरार्धनो होवानुं अनुमान थाय छे, वळी सुशोभनयुक्त मध्यवापिका, हांसियो तथा त्यांना रेखांकनो तेमज प्रतनी प्रथम पंक्तिना मरोडदार इकारो कृतिनो लेखनसमय रचनासंवतनी आसपासनो होवानुं दर्शावी उपरोक्त वातने पुष्टि आपे छे। कृतिकारना विशेष परिचय माटे तेमनी अन्य कृति तपासवी रही।
अहींनी बीजी रचना अज्ञात कविनी छे। कृतिकारे काव्यांतमां के काव्यना प्रारंभमां पोतानो के पोतानी परंपरानो उल्लेख कर्यो न होई तेओ कया गच्छना छे तेवुं विचारवुं अघरू छे। जोके लेखनसंवत परथी अनुमान करीए तो कृतिकारश्री १८मी सदीना उत्तरार्धमां थयेला लोंकागच्छीय आचार्य वरसिंघजीना शिष्य चारित्रनायक जसवंतजीनी परंपराना होय तेवुं संभवे अने तेथी ज तेमणे गुरुभक्तिथी प्रेराई प्रस्तुत कृतिनी रचना करी होय तेवुं’य विचारी शकाय।
प्रत परिचय
स्तंभन पार्श्वनाथ विवाहलानुं संपादन अहीं पाटण – श्री हेमचंद्राचार्य जैन ज्ञानमंदिरनी हस्तलिखित प्रतने आधारे करायुं छे। जोके ते प्रत प्राचीन होवा छतां कईंक लेखन-अशुद्धिवाळी होवाथी तेनी पाठांतर माटेनी बीजी नकल श्री रामचंद्रसूरि आराधना भवन भंडार – पाछीयानी पोळमांथी मेळवाई छे। पाठोनी अपेक्षाए आ प्रतमां पण लेखनदोषो तो छे ज, परंतु प्रथम प्रतने ते पूरक होवाथी तेनो अमे पाठांतरमां उपयोग कर्यो छे। पाठांतरमां पण अमे इ ने बदले य, उ ने बदले ओ श्रुतिवाळा, वधाराना इ, उ वाळा. (दा. त. वाणारसि = वाणारिसि, चवि = चिवी) पाठो अहीं नोंध्या नथी ते बाबत वाचको ध्यानमां ले।
खास आ प्रत मेळववामां प. पू. आ.श्री रामचंद्रसूरीश्वरजी म. सा.ना शिष्य प. पू. आ. श्रीचंद्रभूषणसूरिजी म. सा., प. पू. आ. श्रीनिर्मलदर्शनसूरिजी म. सा. तथा प. पू. पं.श्री रैवतभूषणविजयजी म.सा. नो सुंदर सहयोग रह्यो छे।
संपादित बीजी कृतिनी एक मात्र हस्तप्रत श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर – कोबानी छे। संपादनार्थे खास आ प्रतोनी नकल पहोंचाडवा बदल उपरोक्त त्रणे ज्ञानभंडारना व्यवस्थापकश्रीओनो तथा पू. गुरुभगवंतोनो खूब खूब आभार..
कवि लक्ष्मीमंदिर कृत
१. स्तंभन पार्श्वनाथ विवाहलो
।। ।। चंदवयणि१ कवि-माय, श्रीसरसति सरस ते आपओ वयणडां२ ए ।
गाइसो३ थंभण पासकुमार, हरखियां मन तन नयणडां ए ।।१।।
सामीय दस भव मूल प्रबंध४, पहिलए भवि पोतनपु[रू ए?] ।
[राय पुरोहित मरुभूति विप्र]*[1], बीजए व(विं)ध्यगिरि गयवरू ए ।।२।।
।। ढाल – १ ।। उलालानी ।।
अरविंद मुणिवर वयणि, सोइ गज उपसमिउ५ निय मणि६ ।
भवि त्रीजइ सुर होइ, अट्ठम सुरवर लोइ७ ।।३।।
जंबूदीव मझारि८, पूरवविदेह विचारि ।
सकछविजय वईताढि, तिलकनयरी अति आढि९ ।।४।।
1,[2]राउ१० विदि(द्यु?)तगति-घरणी११, तिलकावलि वर तरुणी ।
भवि चउथइ सुर 2,[3]चिविउ१२, ऊअरिइं१३ तसु 3,[4]अवतरिउ ।।५।।
कू(कुं)अर किरणवेग नामि, राज 4,[5]करी(रि?) तिणि ठामि ।
5,[6]लेईअ संजम भवि पंचमि, सुर 6,[7]हूउ१४ देवलोगि बारमि ।।६।।
।। ढाल – २ ।।
भवि छट्ठइ सुरवर चिवी जंबूद्वीप 7,[8]विदे[ह],
8,[9]पच्छिमविजय सुगंधिहि नयरी शुभंकरा तेह ।
9,[10]वज्रवीर्य तिहं 10,[11]नरप[ति] लखमीवती पटराणी,
वज्रनाभ तसु नंदन हूउ सुभुजबलि प्राणी ।।७।।
खेमंकर जिन देसणा निसुणीय संजमभार,
भवि सत्तमि सोइ मज्झिम 11,[12]ग्रीवेयकि अवतार ।
अट्ठमि भवि ते सुर चिवी 12,[13]जंबूअ पूरवविदेह,
सुरपुरि राजा वज्रबाहु सुदरसणा-धणि तेह ।।८।।
।। ढाल – 3 ।।
चऊद सपन सूचित१५ हूउ ए, सुत नामिइं सोवनबाहु ए ।
योवनभरि१६ परिणाविउ ए, राजा निय राजिइं थापिउ ए ।।९।।
चक्र उपन्नइ१७ खंड छय, वरतावी आण अखंड कय१८ ।
चऊद रयण नव निहि पमुह, हय गय रिधि पार न संखह ।।१०।।
जिनवाणी निसुणी करी ए, लिइं चारित्र निय भव संभरी१९ ए ।
भव नवमइ 13,[14]सि(सो?) अमर हूअ, प्राणतवरि सागर२० वीस जु(जू?)अ ।।११।।
।।ढाल –४।।
हिव दसमउ भव सांभलउ ए, जंबूअ ए सखि दीव मझारि ।
नयरि वाणारसी भरहखेत्रि, धण कण कंचण कोडि विस्तारि,
इंद्रपुरी जिम मन हरइ ए ।।
छंद–मनहरइ 14,[15]तेण विख्यात वसुधा नयरि श्रीवाणारसी,
15,[16]तिह अश्वसेण नरिंद निरूपम तेजि दिणयर-सिरि २१हसी ।
गुण-रूप-लखणि२२ अति विचक्षण घरणि वामा एहवी,
तसु कूखि लिइ अवतार सा[मी देवलोकह]*थी चिवी ।।१२।।
चऊद सपन गयवरपमुह, अंबरइं२३ ए 16,[17]सखी(खि?) ऊतरी ।
तेह वयणि प्रवेश करइं, जेहवा ए पेखियां ए तिम चैत्रह मासि,
चउथि 17,[18]किसण२४ निसिभरी२५ 18,[19]भलां ए ।।
छंद-पेखिय निसिभरि सुपन चउदइ माइ२६ वामा 19,[20]हरखइ {ए?},
अससेण रायह जईअ२७ आगलि सपन लाधा२८ 20,[21]भाखइ {ए?} ।
राय पभणइ२९ देवि नंदन जगत्र-वंदन ताहरइ,
इणि सपनि मानि३० सहिय होस्यइ वंशि३१ दीवउ माहरइ ।।१३।।
।।ढाल –५।।
रूप सोभागिहिं आगलु ए, पोसह दसमि दिणंमि तु ।।१४।।
पासजिण 21,[22]जाईउ ए,
त्रिभुवनि 22,[23]हूउ रे आणंद तु, गाईइ सोहलउ ए ।।१५।। पास….(आंकणी)
छप्पनकुमरि आसण चलियां ए, आवीय करइ 23,[24]सुअ-कम्म३२ तु ।।१६।। पास…
ततखिणि इंद्र-आसण 24,[25]चलिउ ए, जोईउ अवहि-प्रमाणि३३ तु ।।१७।। पास…
चउसठि इंद्र तिहां सवि मिलि ए, घंट सुघोषा नव नादि३४ तु ।।१८।। पास…
सोहमपति धुरि३५ सांचरइ३६ ए, पालक 25,[26]रचिय विमानि तु ।।१९।। पास…
।।ढाल–६।।
रायह भवणि वाणारसी ए, आवीया लिइ३७ जगनाह तु ।।19।। पास…
मेरुसिहि(ह?)रि 26,[27]जई प्रभु करइ ए, जनम-महोच्छव देव तु ।।२०।। पास…
27,[28]सुरवर सवि निय ठाणि गया ए, 28,[29]आपि(पी)य जिनवर माय तु ।।२१।। पास…
।।ढाल–७।।
जाणी जनम 29,[30]जिनंद[न?]उ, हरखिउ अससेण नरिंदू ए ।
हय गय रह३८ वधामणी३९, 30,[31]आपइ बहु(हू?) मणह-आणंदू ए ।।२२।।
31,[32]धसमस धसमस गोरडी, गाइं वर मंगल गीतू ए ।
एक लडावइं४० कडि(?) करी ए, आगइ पूरव रीतू ए ।।२३।।
।।ढाल–८।।
क्रमि क्रमि योवन-सिरि वरइ ए, तव नरवर 32,[33]वं(ब)हूअ चिंता करइ ए ।
राउ प्रसेनजित 33,[34]कूअरू(री?) ए, वर-कारणि तेह पहिलूं४१ करी ए ।।२४।।
रूपि रंभा जिणि क्षण हसी ए, तिणि वामादेवी मनि वहू अति वसी ए ।
धन धन नारि प्रभावती ए, प्रभु परि(र?)णइ ए अपछरा नाचती ए ।।२५।।
34,[35]सहियर सवि टोलइ मिली ए, 35,[36]तिहां 36,[37]गाअ(व?)तां पहुचइ४२ मन-रली४३ ए ।
आरिम कारिम४४ सवि करइ ए, वर रूपिहिं त्रिभुवन मन हरइ ए ।।२६।।
देवि प्रभावती परि(र)णियां ए, मणहर सुख 37,[38]तेहस्यितुं(स्यउं?) 38,[39]भोगवियां ए ।
पात्रीस वरस गिहिवास४५ होइ [ए?], सुरवयणि संवच्छर४६ दान देइ [ए?] ।।२७।।
।।ढाल–९।।
पोसह वदि 39,[40]इग्यारि(र)सि दीख, सामिय सम-तृणृ-मणि४७ हूआ ए ।
दिव[स] चउरासिय पालीय दीख, नाण किसण चैत्रह चउत्थि४८ ।।२८।।
थापिय चउविह संघ सुजाण, आउ 40,[41]संवच्छर एग-सय ।
श्रावण सुदि आठमि प्रभु 41,[42]मु(मो?)क्ख, इसिउ४९ श्रीथंभण पास जय ।।२९।।
चिर जयउ थंभण पास, श्रीसंघ पूरवइ आस ।
कुण आदि न लइह पार, प्रभु 42,[43]प(पु?)हवी प्रत्यासार५० ।।३०।।
प्रभु 43,[44]प(पु?)हवी प्रत्यासार 44,[45]चंदउ, खंभ नयरी 45,[46]वखाणीइ ।
सवि इंद चंद नरिंद पूजिउ, 46,[47]एय त्रिभुवनि 47,[48]जाणीइ ।।३१।।
ईय पास थंभण दुरित खंडं(ड)ण खंभनयरी मंडणउ,
उवज्झाय प्रभु श्रीखंतिमंदिर सीसि हरखि 48,[49]संथुणिओ(ण्यउ?)५१।
जे भाव भगतिइं भणइ निसुणइ पास वर 49,[50]वीवाहलु(लउ?),
तिहं५२ 50,[51]लाछि–मंदिरि५३ वेगि आवइं धरिय नितु 51,[52]ऊमाहलु(लउ?)५४ ।।३२।।
।। इति ।।
अज्ञातकर्तृक
२. जसवंतजी आचार्य वीवाहलु
।। ।। ॐ नमः ।।
जेहनउ जिनवर सुसरु५५ जांणीयइ ए, जिहि(जेह)नी सारदा घरणि(णी) वखाणीय(इ?) ए ।
ये(जे)हनी संयम पुत्री मनि वसी ए, वर वरवा आव्या जसवंतजी [ए] ।।१।।
वर नवतत्त्व-तोरणि आवि(वी)या ए, सहु साजन[न]इं मनि भावीया ए ।
वर पुखइं५६ ते सासु प्रेमसूं ए, एहवी सारदा नारी हरखसूं ए ।।२।।
वर धूंसर५७ धर्म धोरी५८ धरु ए, वर मुसल कर्म अलगा करु ए ।
वर तीर भवसायर ऊतरु ए, भव-वन रवा(व?)ईयए(ये) नवि फरु [ए] ।।३।।
वर त्री(त्रा)क भव-ता(ना)तुं५९ परिहरु ए, तम्हे(म्हि) संयमश्री वेगि वरु ए ।
वर दुरगति कीजी लूंछणां६० ए, तिहां [षट?]काय आणंद घणुं(णां) [ए] ।।४।।
वर मोट नाक वधारयो ए, परवचन-मातानां६१ पालयो ए ।
वर पाप-पड[ल?]६२ परहां६३ करु ए, तम्हि क्रम६४ कोडीआ कटका करु [ए] ।।५।।
परवच[न?]ने ते माहिरि६५ आवि(वी)या ए, ऋषि वरसिंघजीय…*[53]समइ समइ उचरइ ए ।
छेहेडां बांध्यां संयमनारीसुं ए, तिहांकइं उपमा बोलइ कसी६६ ए ।।६।।
लूण ऊतारइ६७ समता बि(ब)हिनडी ए, गीत गा[इ] साट्ठि(थि?) जिन-गोरडी ए ।
माता सहोदरा दि आसीस [ए], तुम्हे प्रतपो कोडि वरीस [ए] ।।७।।
वर प(पु?)न्याइं प(पु?)न्याइं वरतावीय ए, ऋषि जसवंतजी यम करि लीय ए ।
वरमाल मुगट शिरि घालयो६८ ए, तम्हि अष्टकर्मनि टालयो (ए) ।।८।।
तम्हि मदन-महाभड जीपयो६९ ए, वरसंघजीनइं सासणि दीपयो ए ।
चउरी७० दान शीयल तप भावना ए, तिहां बंधन न लागइं पापना (ए) ।।९।।
वर पंच महाव्रत पालयो ए, तम्हि दोष बितालीस टा[ल]यो ए ।
तम्हि ईरज्या-समे(मि)ति७१ चालयो ए, भली भाषा-सम(मि)ति बोलयो [ए] ।।१०।।
तम्हि नवतत्त्व चउरी{य}ए नवि करु ए, तम्हि सीख अनंत जिननी करु ए ।
पाप अढार सल्लां(घलां?) अलगां करु ए, बंदीजि(ज)न जय जय उचरउ(रु?) [ए] ।।११।।
भलउ समरथ कंसार नीपजइं ए, भविजीवनइं आणंद ऊपजइ ए ।
तिहां तप-रूपिणी अज्ञि(ग्नि?) करी ए, लेई कर्म-काष्ट मांहि धरी [ए] ।।१२।।
वर प्रीसइं७२ ते सासु प्रेमसु ए, एहवी सारदा नारी हरखस्युं ए ।
वर न्यान-नीरि चलू७३ करु ए, तम्हि खेम सलीलेई करी धरु [ए] ।।१३।।
तिहां वर कन्या बेहु लहुयडां७४ ए, तिहां बेहु सणगार्यां रूअडां ए ।
तम्हि कुमरपणइ ब्रह्मचारु ए, एहवा गुणवंत गुणभंडारु ए ।।१४।।
दया-माडीअ गोत्रज७५ जाणीय ए, ऋषि जसवंतजीय तिहांकणे आणीय ए ।
संसारनि पासे नवि रमु ए, सुख-संयमश्री भोगवउ [ए] ।।१५।।
गुरजी संवेग वैराग आणीय ए, एहवा सू जसवंतजीना वखाणीय ए ।
एहवउ जसवंत ऋषिजीनउ विवाहलउ ए, सखी(खि) मझ मनि अस्य[उ] ऊमाहलउ [ए] ।।१६।।
।। इति ।।
शब्दार्थ
१. चंद्र जेवा मुखवाळी, २. वचनो, ३. गाशुं, ४. कथा, ५. शांत थयुं, ६. मनमां, ७. [देव]लोकमां, ८. मध्यमां, ९. श्रेष्ठ, १०. राजा, ११. पत्नी, १२. ?, १३. कूख, १४. थयो, १५. सूचवायेल, १६. पूर्ण युवान थतां, १७. ?, १८. करी, १९. स्मरण करी, २०. आयुष्य संबंधी एक जैन मापदंड, २१. सूर्यनी [तेजरूपी] लक्ष्मी, २२. लक्षणोथी, २३. आकाशमांथी, २४. कृष्णपक्ष(नी), २५. मध्यरात्रीए, २६. माता, २७. जईने, २८. पामेला, २९. कहे छे, ३०. संकेतथी, ३१. वंशमां. ३२. पुत्रजन्म समये करातुं शुद्धिनुं विधान, ३३. अवधिज्ञानना बळे, ३४. अवाजे, ३५. आगळ, ३६. चाल्या, ३७. लई, ३८. रथ, ३९. आनंदना समाचार आपनारने अपाती भेट, ४०. लाड करे, ४१. पहेल, ४२. पूरी थवी, ४३. मननी होंश, ४४. दानादि अद्भुत कार्यो, ४५. गृहवास, ४६. वार्षिक, वर्ष सुधी, ४७. तृण अने मणि प्रत्ये समान दृष्टिवाळा, ४८. चोथे, ४९. एवा, ५०. ?, ५१. स्तव्या, ५२. त्यां, ५३. लक्ष्मीमंदिर, ५४. होंश, ५५. ससरा, ५६. वर-वधू वधाववानी क्रिया, ५७. धुंसळ (लग्न वखते वरने पोंखवा वपराती धुंसळ, मुसळ, रवैयो अने त्राक ए चार वस्तुओ, ५८. बळद, ५९. संबंध, ६०. ओवारणा, ६१. प्रवचन माता(?), ६२. थर, ६३. दूर, ६४. कर्म, ६५. मां, ६६. केवी, ६७. नजर उतारे, ६८. नाखजो, ६९. जीतजो, ७०. परणवा बेसवा माटेनो मंडप, ७१. चालवाना संयम पूर्वक, ७२. पीरसे छे, ७३. जम्या पछी हथेळीमां पाणी लई मों चोख्खुं करवानी क्रिया, ७४. नानी उमरनां, ७५. गोत्रमां जन्मेला.
o O o
[1] *आ पाठ आदर्श प्रतमां नथी।
[2] 1. राय,
[3] 2. चवियउ,
[4] 3. अवतरियउ,
[5] 4. करि,
[6] 5. लेइ,
[7] 6. हूयओ,
[8] 7. विदेह,
[9] 8. पश्चिम,
[10] 9. वज्ज,
[11] 10. नरपति,
[12] 11. ग्रवियिक,
[13] 12. जंबू अवर,
[14] 13. सो,
[15] 14. तिणि,
[16] 15. तिहां,
[17] 16. सखि,
[18] 17. कसिण,
[19] 18. नवा,
[20] 19. हरखए,
[21] 20. भाखए,
[22] 21. जाईया,
[23] 22. हवइ,
[24] 23. सुइ०,
[25] 24. खुभिअ,
[26] 25. करीय,
[27] 26. जाइ,
[28] 27. सुर नर,
[29] 28. आपीय,
[30] 29. जिणिंद,
[31] 30. आखइ,
[32] 31. हसमस,
[33] 32. बहू,
[34] 33. कूअरी,
[35] 34. सहीय,
[36] 35. तेह,
[37] 36. गो(गा)तां,
[38] 37. तेहस्यु,
[39] 38. भोगव्या,
[40] 39. एगारिसी,
[41] 40. संवत्सर,
[42] 41. मोक्षक,
[43]42. पुहवि,
[44] 43. पुहवि,
[45] 44. वंदउ,
[46] 45. वखाणीयइ,
[47] 46. एह,
[48] 47. जाणीयइ,
[49] 48. संथुणउ
[50] 49. वीवाहलउ,
[51] 50. लछि,
[52] 51. ऊमाहलउ.
[53] * आ पद्यनो अंत्यप्रास जोतां अहीं वच्चेनुं एक पद्य छूटी गयुं होय तेवुं अनुमान थाय छे।