नित्य स्मरण करने योग्य, स्वाध्याय करने योग्य अथवा मांगलिक प्रसंगों में पाठ करने हेतु विशेष रूप नवस्मरण का उपयोग किया जाता है। यह एक कृति न होकर, भिन्न-भिन्न विद्वानों के द्वारा रचित स्तवन-स्तोत्रादि का समुच्चयरूप स्मरण है। मूल, टीका, अनुवादादि की भाँति स्मरण भी एक कृति का प्रकार है। इसमें दो पद हैं-नव स्मरण या सप्त स्मरण। नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि स्मरण करने योग्य ९ स्तोत्रों के संग्रह रूप यह नवस्मरण अथवा ७ स्मरणों के संग्रह रूप सप्तस्मरण। विविध गच्छों में अपने-अपने मत के अनुसार परम्परा से चले आ रहे इन स्मरणों के बारे में स्पष्टीकरण करना चाहूंगा। यद्यपि सभी स्मरणों का अपना एक नियत पाठ होता ही है। इसमें कोई बदलाव नहीं होता है। वर्त्तमान में तपागच्छीय नवस्मरण, अंचलगच्छीय नवस्मरण व खरतरगच्छीय सप्तस्मरण का प्रचलन है। परवर्ती काल में स्थानकवासी संप्रदाय के आचार्य श्री घासीलालजी-(स्थानकवासी) द्वारा भी एक अद्भुत नवस्मरण नामक कृति दृष्टिगोचर हुई है। सूचीकरण कार्य में सभी स्मरणों का स्पष्ट परिचय होना आवश्यक है। कुछेक स्तोत्र-स्तवन तो गच्छभिन्न होने पर भी अपने स्वतंत्र अनुक्रम में कुछेक स्तुति व स्तोत्र को स्वीकारा गया है। जैसे कि-उपसर्गहर स्तोत्र गाथा-५, बृहद् अजितशान्ति, नमिऊण स्तोत्रादि। कार्य करते समय प्रत की अपूर्णतादि या कोई अन्य कारणों से एक दूसरे में परस्पर मिल न जाये, भ्रम उत्पन्न न हो आदि सम्भावनाओं को ध्यान में रखकर तथा जिज्ञासु वाचकों को भी ज्ञात हो, इसलिये नवस्मरण का परिचयात्मक लेख लिखने का एक विनम्र प्रयास किया जा रहा है।
१. तपागच्छीय नवस्मरण पाठ – मूल कृति नाम- नवस्मरण तपागच्छीय, कर्ता- भिन्न भिन्न कर्तृक, भाषा-प्रा.+सं., स्मरण-९, आदिवाक्य- नमो अरिहंताणं० हवइ मंगलम् व अंतिमवाक्य-शिवं भवतु स्वाहा० जैनं जयति शासनम्। इस नवस्मरण के अन्तर्गत अग्रलिखित नियत स्तोत्र नियत क्रम में होते हैं, इसमें बदलाव नहीं होता। पूरे तपागच्छ में एक जैसा ही पाठ प्रचलन में है। इन स्मरणों का अनुक्रम इस प्रकार है-
प्रथम स्मरण– नमस्कार महामंत्र-समस्त ९ पद, आदिपद-नमो अरिहंताणं० अंतपद-पढमं हवइ मंगलं।
द्वितीय स्मरण– उवसग्गहरस्तोत्र, गाथा-५, आदिपद-उवसग्गहरं पासं०, अंतपद-भवे भवे पासजिणचंद।
तृतीय स्मरण– संतिकरस्तोत्र, गाथा-१४, आदिपद-संतिकरं संतिजिणं०, अंतपद- स लहइ सुह संपयं परमं, विज्जासिद्धि भणइ सीसो।
चतुर्थ स्मरण– तिजयपहुत्तस्तोत्र, गाथा-१४, आदिपद-तिजयपहुत्त पयासय०, अंतपद- निब्भंतं निच्चमच्चेह।
पंचम स्मरण– नमिऊणस्तोत्र, गाथा-२४, आदिपद-नमिऊण पणयसुरगण०, अंतपद-नासइ तस्स दूरेण।
षष्ठ स्मरण– अजितशांतिस्तोत्र, गाथा-४०, आदिपद-अजियं जियसव्वभयं०, अंतपद-जिणवयणे आयरं कुणह।
सप्तम स्मरण– भक्तामरस्तोत्र, श्लोक-४४, आदिपद-भक्तामरप्र०, अंतपद-तं मानतुंगमवशा समुपैति लक्ष्मीः।
अष्टम स्मरण– कल्याणमंदिरस्तोत्र, श्लोक-४४, आदिपद-कल्याणमन्दिरमु०, अंतपद-अचिरान्मोक्षं प्रपद्यन्ते।
नवम स्मरण– बृहच्छांति स्तोत्र, (गद्य+पद्य) आदिपद-भो भो भव्याः शृणुत०, अंतपद-सिवं भवतु स्वाहा, जैनं जयति शासनम्।
२. अंचलगच्छीय नवस्मरण पाठ – कर्ता-भिन्न भिन्न कर्तृक, मूल कृति नाम- नवस्मरण अंचलगच्छीय, भाषा-प्रा.+सं., स्मरण-९, आदिपद-परमेष्ठि नमस्कारं०, अंतपद-जनयतु संघस्य मुदम्, व्याधिराधिश्चापि कदाचन।
प्रथम स्मरण– वज्रपंजर स्तोत्र, श्लोक-८, परमेष्ठि नमस्कारं०, अंतपद-व्याधिराधिश्चापि कदाचन।
द्वितीय स्मरण– अजितशांति, गाथा-४०, आदिपद-अजियं जियसव्वभयं०, अंतपद-जिणवयणे आयरं कुणह।
तृतीय स्मरण– महावीरजिन स्तवन, पादलिप्तसूरि विरचित, गाथा-६, आदिपद-जयइ नवनलिण कुवलय०, अंतपद-दिसउ खयं सव्वदुरियाणं।
चतुर्थ स्मरण– उपसर्गहर स्तोत्र, गाथा-५, आदिपद- उवसग्गहरं पासं०, अंतपद-भवे भवे पासजिणचंद।
पंचम स्मरण– भयहर स्तोत्र (नमिऊण स्तोत्र) मानतुंगसूरिरचित, गाथा-२५, आदिपद-नमिऊण पणयसुरगण०, अंतपद-इय नाह थुणामि भत्तिए।
षष्ठ स्मरण– जीरिकापल्लि पार्श्वजिन स्तोत्र-मेरुतुंगसूरिरचित, श्लोक-१४, आदिपद-ॐ नमो देवदेवाय०, अंतपद-सर्वसिद्धिं लभेद्ध्रुवम्।
सप्तम स्मरण– (१)जंकिंचिसूत्र, आदिपद-जंकिंचिनाम तित्थं०, अंतपद-ताइं सव्वाइं वंदामि, (२) शक्रस्तव (नमुत्थुणंस्तोत्र), गाथा-९, आदिपद- नमोत्थुणं अरिहंताणं०, अंतपद-नमो जिणाणं जिअभयाणं।
ध्यातव्य- यहाँ स्मरण १ है, किन्तु पाठ २ है। उसका कारण है कि पहले जंकिंचिसूत्र बोलकर फिर शक्रस्तव पाठ किया जाता है।
अष्टम स्मरण– अजितशांतिस्तोत्र-लघु-वीरगणिकृत, गाथा-८, आदिपद-गब्भमवयारि सोहम्म०, अंतपद- सुहसयलसंपज्जए।
नवम स्मरण– बृहदजितशांति स्तवन (वृद्धशांति) जयशेखरसूरि रचित, श्लोक-१७ आदिपद-सकलसुखनिवहदानाय०, अंतपद-जनयतु संघस्य मुदम्।।
३. खरतरगच्छीय सप्तस्मरण – कर्ता-भिन्न भिन्न कर्तृक, भाषा-प्रा.+संस्कृत, स्मरण-७, आदिपद-अजियं जियसव्वभयं, अंतपद-भवे भवे पासजिणचंद।
प्रथम स्मरण– बृहदजितशांति, गाथा-४०, आदिपद-अजियं जियसव्वभयं० अंतपद-जिणवयणे आयरं कुणह।
द्वितीय स्मरण– लघु अजितशांति, गाथा-१७, आदिपद-उल्लासिक्कम नक्खनिग्गय०, अंतपद-दुरिअमखिलंपि थुणंतह।
तृतीय स्मरण– नमिऊण भयहर स्तोत्र (नमिऊण स्तोत्र) मानतुंगसूरिरचित, गाथा-२१, आदिपद-नमिऊण पणयसुरगण०, अंतपद-सयलभुवणच्चिअच्चलणो।
चतुर्थ स्मरण– गणधरदेव स्तुति (तं जयउ स्तोत्र), गाथा-२६, आदिपद-तं जयउ जए तित्थं0 अन्तपद-सिनिट्ठिअट्ठो सुही होइ।
पंचम स्मरण– गुरुपारतंत्र्य स्तोत्र, गाथा-२१, आदिपद-मयरिहियं गुणगणरयण०, अंतपद-सिरिनिलओ पणयमुणितिलओ।
षष्ठ स्मरण– सिग्घमवहरउ स्तोत्र, गाथा-१४, आदिपद-सिग्घमवहरु विग्घं०, अंतपद-नमामि साहम्मिआ तेवि।
सप्तम स्मरण– उवसग्गहर स्तोत्र, गाथा-५, आदिपद-उवसग्गहरं पासं०, अंतपद-भवे भवे पासजिणचंद।
इन सात स्तोत्रों के समुच्चय को सप्तस्मरण कहा जाता है।
४. अद्भुत नवस्मरण–स्थानकवासी – कर्ता \आचार्य \घासीलालजी(स्था०), संस्कृत, पद्य, श्लोक –१७८, स्मरण– ९, आदिपद-वर्धमानं जिनं नत्वा नत्वा गौतमनायकम्, नमो अरिहंताणं0 अंतिमपद-उपजायते सर्व मंगलमय मंगल, संपज्जायते सर्व मंगलम्, विजयश्चापि शान्तिश्च नवस्मरणमीरितम्।
ध्यातव्य– यह एक ही कर्ता के द्वारा आधुनिक नवस्मरण है। प्रत्येक स्मरण के स्वतंत्र नाम है। जैसे कि-
प्रथम स्मरण– मंगलस्मरण, श्लोक-७, द्वितीय स्मरण– आनन्दस्मरण (वर्द्धमान भक्तामर स्तोत्र), श्लोक-५२, तृतीय स्मरण– सुखस्मरण श्लोक-१७, चतुर्थ स्मरण– सम्पत्स्मरण (गद्य), पंचम स्मरण– ऋद्धिस्मरण श्लोक-२७, षष्ठ स्मरण– सिद्धिस्मरण श्लोक-१२. सप्तम स्मरण– जयस्मरण श्लोक-७, अष्टम स्मरण– विजयस्मरण श्लोक-१९ एवं नवम स्मरण– शान्तिस्मरण श्लोक-३७.
आशा है, वाचकों को यह लेख यत्किञ्चित् सन्तोष प्रदान करेगा। इसी विश्वास के साथ शिवमस्तु सर्वजगतः॥
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