कृति परिचय – प्रस्तुत कृतिनो प्रारंभ कवि द्वारा सरस्वती माताने प्रार्थना करवा पूर्वक करायो छे। देशी भाषामय पद्यात्मक आ कृतिनो छंद प्रकार सलोको छे। सलोको सांभळतां नेमिनाथजीना सलोकोनुं स्मरण थाय छे। जोके आ प्रकारमां अन्य पण अनेक रचनाओ थई छे यथा आदिनाथ सलोको, क्षमासूरि सलोको, चंदराजानो सलोको, पार्श्वजिन सलोको, विमलमंत्रीनो सलोको, हीरविजयसूरिनो सलोको आदि लगभग ७२ जेटली सलोको परक रचनाओनी नोंध आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा खाते थयेल छे। तेमां कोई तीर्थ पर सलोको रचायो होय तो ते अष्टापदजीनो सलोको अने त्यार बाद आ तारंगाजीनो सलोको हाल कोबा खाते सूचीबद्ध छे, ते सिवाय तीर्थ पर कोई सलोको रचायानी नोंध हाल उपलब्ध थती नथी।
प्रस्तुत कृति भगवान अजितनाथनी स्तवनारूप, तारंगा, तारणगिरि, तारण नगरीना भव्य भूतकाळनी एक दस्तावेजी रचना कही शकाय।
कृतिमां उल्लेखनीय ऐतिहासिक पात्रो, प्रसंगो, नोंधो आदि आ प्रमाणे छे- सिद्धराज जयसिंह, कुमारपाळ, हेमचन्द्राचार्यना उपदेशथी तारंगामां बीजा श्री अजितनाथ भगवाननी प्रतिष्ठा, ९५ करोड सुवर्ण महोरना खर्चनी वात, सुवर्ण बराबर कोतरणी कराव्यानी वात, मालवदेशनो राजा वच्छराज, ते उज्जैनीथी भागीने आव्यानी वात, तेना द्वारा कोट करायानी वात, पंचमुखी महादेव अने तेनी सेवा वच्छराज द्वारा करायानी वात, वाछरडां चारता वच्छराज पर तारण मातानी कृपा थयानी वात, माता द्वारा प्रसन्न थईने ईडरनुं राज्य अपायानी वात, तेनुं मोटुं शहेर तारण, त्यांना राक्षस साथे वच्छराजे युद्ध करी तेने हरावीने चारे बाजु कोट बंधाव्यानी वात, ईडरगढ, तारणगढ शहेर वसाव्यानी अने देवालय बंधाव्यानी वात, हेमाचार्य अने कुमारपाल पांचमा देवलोके पहोंच्यानी वात, तारंगानी त्रण वार यात्रा, अट्ठम अने नव लाख नवकार जापनी आराधनानुं फळ, शांतिदास शेठे पबासण कराव्यानी नोंध, धर्मचंद मोतीचंदे पगलां कराव्यानी नोंध, हिंमत बारोट द्वारा कुंड बंधाव्यानी नोंध बोडी मुगलनुं लश्कर आव्यानी वात, भमराओनो उपद्रव थतां तेओनो कोई पण दाव नहीं फाव्यानी वात, तारंगानी पाछळ हुंबडोनां(?) देरांनी वात, दक्षिणीओनुं मानमर्दन करनार ठाकोरना राजनी वात वगेरे बाबतो तारंगा तीर्थना वर्तमानमां प्रसिद्ध इतिहासमां प्रायः न होय तेवा केटलाक नवा प्रसंगोनो उमेरो करे छे। आ तीर्थक्षेत्रना संशोधन रसिक जिज्ञासुओने रोचक नवा ऐतिहासिक अनुसंधानो करवामां आ कृति खूब ज उपयोगी बने तेम छे। केटलीक वातो कविए लोकवायकाथी नोंधी होय तेम पण जणाय छे।
वेणी वच्छराजना समयना तारंगाना वैभवनी कविए सारी नोंध लीधी छे। २४ कोशनी लंबाई, चोराशी चोटा, हजार देहरां, ५२ बजार (?), मंदिर, माळियां, गोख, चोबार, नगरकोट, हाट, लश्कर, बाग-बगीचा, कोटीध्वजाधिपति, लक्षाधिपति व्यापारी, ३६० देहरां कुंड, तोपो, बंधुको, वावडीओ, धजा-पताका, कळश, दरवाजा, शीतला माता, हेमाचार्यनो प्रख्यात उपाश्रय आदिनो उल्लेख जोतां कृतिनुं ऐतिहासिक मूल्य घणुं वधी जाय छे।
सामान्यपणे आपणे तारंगानो इतिहास ८०० वर्ष पूर्वे थयेल कुमारपाल राजाथी जाणीए छीए, परंतु प्रस्तुत कृति तथा अन्य साक्ष्योने आधारे तारणनगर(तारंगा)नो इतिहास २००० वर्ष पूर्वेनो छे। ते समयावधिए वेणी वच्छराजनुं नाम जोडायेलुं जोवा मळे छे। वच्छराज नाम तो समझाय छे पण तेनी साथे वेणी शब्द केम छे ? ते प्रश्न स्वाभाविक थाय। आना निराकरणमां कविए कथाप्रसंग कईक आ प्रमाणे नोंध्यो छे- पाताळमांथी आवती नागकन्या पद्मिणी, जे आ नगरना बागमांथी रोज अज्ञातपणे फळ-फूल लई जती, एक वखत छुपाईने वच्छराजे तेने पाछळथी फुलो लईने जती जोई, ऊभी रहेवा कहेतां ते ऊभी न रही अने पाछळथी तेणीनी वेणी वच्छराज द्वारा कापी लेवाई, आ कन्या द्वारा पिता शेषनागने फरियाद कराई, अंते शेषनाग द्वारा तेने पुत्री परणावाई, वेणी काप्याना प्रसंगथी वच्छराज साथे वेणी शब्द जोडाई गयो अने तेनुं नाम वेणी वच्छराज तरीके प्रसिद्ध थयुं। (आ कथाप्रसंग कर्ताए अति संक्षिप्तमां मात्र संकेतरूप नोंध्यो छे, विस्तृत कथा वाचकोए रासमाला आदिथी जाणी लेवी।)
“वीरना संवतमां वीणी वछ जाणो” कविए मात्र आटलुं ज नोंध्युं छे पण वीर संवत कई तेनी नोंध नथी करी। अमारा अनुमान मुजब आ नोंध वीणी वच्छराज विक्रम संवत प्रारंभ थया पहेलांनो छे ते तरफ आपणुं ध्यान दोरे छे। विद्वानो वेणी वच्छराजना प्रतिबोधक तरीके खपुटाचार्यने माने छे अने तेओ विक्रम संवत प्रारंभ थयाना थोडाक समय पूर्वे ज थया छे (प्रभावक चरित्रानुसार तेमनो स्वर्गवास समय वीर निर्वाण ४८४ एटले के विक्रमना १४मा वर्षे)। अर्थात् वेणी वच्छराज अने तारंगानो इतिहास विक्रम संवत प्रारंभ थया पूर्वेनो छे तेम जणाय छे।
कर्ताए प्रतिमाजीने त्रण वार मोतीनो लेप थयानो उल्लेख कर्यो छे। एटले के आ कृतिनी रचना वि.सं. १८६०मां थई त्यां सुधीमां प्रतिमाजीने त्रण वार मोतीनो लेप थई चुक्यो हतो ते निश्चित थाय छे।
जिनालयमां निशदिन वागतां वाजिंत्रो जेवां के झालर, घंट, दुंदुभि, भेरी, कांसा, करताल, मृदंग, नफेरी, सारंगी, ताल, घुघरा, नगारानो उल्लेख कृतिमां जोवा मळे छे। कृतिमां तारंगानी प्राकृतिक संपदानी पण कविए नोंध लीधी छे। तेनी आसपास रहेल सीसम, धवडा, केगर जेवा वृक्षोनो पण उल्लेख कर्यो छे। तारंगाजीना जिनालयमां केगरना लाकडानो उपयोग थयेलो छे। आ काष्ठनी विशेषता ए छे के तेने आगथी नुकसान थतुं नथी। एटलुं ज नहीं आग लागतां तेमांथी पाणी छूटवा लागे छे। आ प्रकारनां वृक्षो हाल छे के नहीं ते विषे अमे संशोधन कर्युं नथी पण वि. १८६०मां आ वृक्षो तारंगाजीमां हयात हतां तेनी नोंध आ कृतिथी प्राप्त थाय छे। आ प्रकारना संशोधन करानारा शोधार्थीओ माटे पण आ प्रकारनी नानकडी बहुज महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक कडीओ जोडी आपती विगतो आ कृतिमांथी प्राप्त थई शके तेम छे।
वाचकोने जणावानुं के आ पूर्वे श्रुतसागरना ज सप्टेम्बर २०२०ना अंकमां गणिवर्य श्री सुयशचंद्र-सुजशचंद्रविजयजी द्वारा न्याय मुनि कृत ‘तारंगागिरि तीर्थमाला’ नामे एक कृति छपायेल, जेनी रचना वि. सं. १८८०मां थयेल, तेमां ऐतिहासिक घणी सामग्री समायेली छे। ते पछी तारंगानी ज ऐतिहासिक नोंध युक्त आ बीजी कृति (रचना-१८६०) आ अंकमां प्रकाशित करी रह्या छीए। प्रस्तुत अंकमां प्रकाशित थती कृति पेली कृति करतां २० वर्ष पूर्वेनी रचना छे तथा आमां घणी एवी वातो छे के जे अन्यत्र प्रायः क्यांय न होय।
कर्ता परिचय– तपागच्छ परंपराना साकरविजयना शिष्य गुलाबविजये सं.१८६० चैत्र वद ८ मंगळवारना रोज आ कृति रची छे. कर्ता विशे विशेष कोई माहिती उपलब्ध थई शकी नथी। “सलोको कह्यो अरिहंत सखाई, आसरो अंबे मातानो सदाई” कही कर्ताए अरिहंतनी साक्षी अने अंबामातानी सहायनो उल्लेख कर्यो छे।
प्रत परिचय – आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबाना अन्य स्केन भंडार अंतर्गत विरल प्रतिभा संपन्न पूज्य श्री धुरंधरविजयजी तरफथी प्राप्त पं. श्री भद्रंकरविजयजी, डीसामां संगृहित गुटका विभागनी हस्तप्रत क्रमांक -१५ पेटांक धरावती अपूर्ण प्रत छे. जेमां पत्रांक – १अ-४अ पर “तारंगाना सलोको” प्रायःअप्रकाशित कृति छे। अनुमानित १९मी सदीनी खडा लेखन पद्धति धरावती संशोधित आ प्रतना अक्षरो सुवाच्य छे। पार्श्वरेखा लाल छे तेमज गाथांकने गेरु लाल रंगथी अंकित करेला छे।
प्रतिलेखक द्वारा करायेल अनावश्यक अनुस्वारोने अमें हटाव्या छे। प्रतमां ‘ध’ ना स्थाने ‘द्ध’ नो प्रयोग थयो छे अथवा तो प्रतिलेखकनी ‘ध’ लखवानी पद्धति ज आ प्रकारनी रही हशे। प्रतमां ‘श’ ना स्थाने ‘स’ तेमज ‘ह्रस्व इ-कार’ ना स्थाने ‘दीर्ध ई-कार’ नो प्रयोग विशेष जणाय छे। प्रतमां गाथा- ४१ अने ४२नो छूटी गयेल पाठ पार्श्वरेखानी बाहर लखायेल छे, जे सळंग कृतिमां उमेरी अनुक्रमे गाथांक वधता क्रमे अमें नोंध्या छे। आ कृतिनी उपलब्ध एकमात्र प्रतना आधारे आ संपादन करेल छे।
हस्तप्रत पी.डी.एफ. आपवा बदल बन्ने ज्ञानभंडारोना व्यवस्थापकोनो खूब – खूब आभार।
प.पू.गच्छाधिपति आ.श्री विजयकुलचंद्रसूरीश्वरजी (K.C.) म.सा.नी पावननिश्रामां श्री परम आनंद श्वे.मू.पू.जैन संघ – वीतराग, पालडी मध्ये चातुर्मासार्थे बिराजमान पू. श्रमणी भगवंतो द्वारा पांडुलिपि पाठशाळाना सहयोगथी आ प्रतनुं लिप्यंतर करवामां आव्युं छे। आपनी श्रुतभक्तिनी घणी अनुमोदना।
तारंगा सलोको
सी(सि)द्ध बुद्धि दाई सारद माई, वाणी आपो तो हंसासन बाई ।
बालस्वरूपी लीलविलाशी, आदि भवांनी मुझ मुखवाशी ।।१।।
तारंगो गढ आदि युगांनो, नवखंड मांहे को नहीं छांनो ।
घणो महिमा वडो वी(वि)स्तार, सलोको कहीस्युं पाप निस्तार ।।२।।
कुमारपाले कराव्यां देहरो, सिद्धराय जेसंग पाटे सीर सेहरो ।
कोट कराव्यो वीणीवछराजे, डुंगर पछवाडे चीहूं दीसी छाजे ।।३।।
मालवदेशनो दीपे वछराजा, भागो आव्यो उजेणथी झाझा ।
वझार१ सेहर पंचमुखो महादेव, वछराज रह्यो करे नीत सेव ।।४।।
वछराजा वाछरूयां चारे, तारण माता तुठी तिण वारे ।
आप्युं राज्य ईडरगढ केरुं, दूजुं तारण सेहर वडेरुं ।।५।।
राक्षस ओ(उ)पर रुठो वछराज, संग्राम थाय तेतर पर बाज ।
धडहड हूई धींगा धमरोल, शस्त्र केरो उडे रमझोल२।।६।।
पाहड पर्वत गिरि डोलण लाग्या, छत्रीसे आयुध संख चक्र भाग्या ।
हाथी घोडा हूया हेसार३, उथलपाथल हूउ संसार ।।७।।
शेषनाग सलसल्यो४ जाणी, सात दरियानां उछल्यां पाणी ।
भार न खंचे धरती सिवी५ धारी, डोलवा लाग्यां इंद्रासण भारी ।।८।।
गगनमाहें ते गर्जा[र]व थाइं, वछराजा चोटी तव साइं६ ।
जपी लीधो राक्षसने वारु७, गढ बंधाव्या चीहूं दिसि सारु ।।९।।
ईडरगढ तारण घढ तारंगो, देउल करायो सेहर वसायो चंगो८ ।
चोवीश कोश लांबो बावन बेजार९, चोरासी चोहटां देहरां हजार ।।१०।।
मंदिर मालीयां गोख चोबार, नगरकोट हाट बे(ब)जार ।
लसकर सोहें क्षोणी१० अढार, वखाण करतां नवी लहूं पार ।।११।।
गढमढ कोशीसां(शां)११ पोल१२ प्रकार१३, हाथी पालखी रथ तोखार१४ ।
बाग बगीचा नवलखा सार, राज करें उजेणी धरधार ।।१२।।
लखेसरी लक्ष वेपारी कोटि, ध्वज सहस्त्र व्यवहारी ।
संक्षेप मात्र वर्णव सेहर, गढ ओ(उ)पर जायगा१५ लीला लेहर ।।१३।।
अबधुतनो पुरिसो१६ कीयो सोवन, खाइ पीइ विलसे जोवन ।
चीहूं खंडनो राज्य धुरंधर, आंण वरतावी हूउ एकंदर ।।१४।।
ईडरगढ ओ(उ)पर जीवतो कं(कुं)ड, देहरां वाव्य वाडी वनखंड ।
पातालमांहीथी पद्मणी आवे, फल फूल सर्वे लेई जावे ।।१५।।
शेषनागनी पूत्रीका साई१७, कापी लीधी वीणि१८ तव धाई१९ ।
शेषनागे पुत्री परणाई, वहां अहीफेणनी हूई राई२० दवाई ।।१६।।
वीणीवछराज प्रगट नाम, वीस्तर्णवंत हूओ ए ठाम ।
वीणी वछराजथी तारंगो चावो, सारुं सेहर सणगमां२१ समावो ।।१७।।
वीरना संवतमां वीणीवछ जाणो, तारंगो गढ तीहांथी वखाणो ।
दीवानीकनो२२ पुत्र वछराज, देवलोके पोहतो सीध्यां सवी काज ।।१८।।
संवत ईगारपंच्यासीयामांही, सिद्धराग(ज) जेसंघ(ग) हूउ ओ(उ)छाही ।
बार बरस गर्भपणें वासो, राजा सोलंकी पाटें सुर खासो ।।१९।।
तसु पाटें कुमारपाल राजा, अष्टादस देशनो राज्येश्वर झाझा ।
हेमाचार्य गुरु प्रतापे, तारण माता तुठी दुख कापे ।।२०।।
अष्ट महासीद्धि(सिद्धि) नवनीधि आपे, माता वचने तारंगो थापे ।
हेम बरोबर जायगा जेही, कुमारपाल लेये गुण गेही ।।२१।।
तेह उपर देउल बनायो, गुरु प्रतापे बहु सुख पायो ।
तारंगो करावे तो रहे नाम, जस थाइं सीझे सवी काम ।।२२।।
कुमारपाले तीर्थ करायो, वीस्तर्णवंत बींब भरायो ।
बीजा तीर्थंकर श्री अजी(जि)त जी(जि)णंद, जिनालय मध्ये दीपे दिणंद ।।२३।।
पंचाणुं कोडि मोहरो सुचंग, घणो द्रव खरच्यो प्रवाह गंग ।
धर्मसाला उपासरो कीधो, द्रव खरची लाहो बहू लीधो ।।२४।।
सुवर्ण बरोबर कोरणी सारी, प्रसाद ओ(उ)तंग२३ महायक्ष अधिकारी ।
सानीध सारें अजिता देवी, डुंगर वखाणुं जायगा केवी२४ ।।२५।।
गडा वडा पांहण२५ पाहडंदा, कोट कोशीसां बुरज वडंदा ।
सीसव२६ धवडा२७ केगर२८ कडंदा, वीषमी जायगा माल२९ गडंदा ।।२६।।
अष्ट भय ईहां नवी लागे, डुंगर देखतां भावठ भागे ।
देवस्वरूपी डुंगर ऐह, स्तोक३० मात्र वर्णव कह्यो तेह ।।२७।।
त्रणसें साठ देहराने कुंड, तोपो बंधुको वाव्य प्रचंड ।
धजा पताका कलस उतंग, दरवाजा कमठांणां३१ देहरां रंग ।।२८।।
वाडी तलाव त्रिभोवन सरखी, थंभ्या देवविमान हरखी ।
अलोकीक काम वात अपार, तीर्थमां तारंगो मंत्र नवकार ।।२९।।
तारण धारण सीतला माता, हीं(हे)माचार्यनो उपासरो विख्याता ।
जोडाजोडें जोगीयां मढी, जडीबुटी तारणरी गढी ।।३०।।
तारंगो गढ जंबु खंड द्वीपें, नाम जपतां रीपु शत्रु जीपें ।
तारण चओ(उ)दसें मेलो ते मलीओ, संघ सहूनो वीघन टलीओ ।
अजितनाथ तारंगो बलीओ, आज थकी भलो दीन वलीओ ।।३१।।
आंबली३२ अगीआर संघ घणा आवे, प्रभु मुख देखतां पातिक जावे ।
पुजा प्रभावना करो घणें भावे, ह(अ)रीहंत ध्यानथी मुक्ति सुख पावे ।।३२।।
हीं(हे)माचार्य ने कुमारपाल, पांचमा देवलोके पोहता ततकाल ।
तारंगानो ध्यान्य(न) अहनिसि धरसे, भव त्रीजे ते मोक्ष वरसे ।।३३।।
तारंगो गढ त्रण वार फरसे, नवलाख नोकार अट्ठम करसे ।
ईत उपद्रव रोग हरसे, संसार समुद्र सोहिलो तरसे ।।३४।।
पवासण कराव्युं सां(शां)तिदास शेठे, अजित जिणंदने दीपे छे हेठे ।
पगलां करायां धर्मचंद मोतीचंदे, कोडि(टि)सि(शि)ला सिद्धस(शि)ला
नीत नीत वंदे ।।३५।।
लाडुसर वीर चंदण देरी, टेंबु नगर तलेटी भलेरी ।
कं(कुं)ड बंधायो हीमते बारोटे, चांपा केल फुलवाडी आंकोटे ।।३६।।
बोडी मुगलनुं लसकर आव्युं, दाव फाव कांइ नहीं का(फा)व्युं ।
देही फाडी भमर उड्या, सर्वे लसकरनें भमरे मुंड्या ।।३७।।
तारंगेथी भागो ते नाठो, मोहरो तीणें मानी लक्ष साठो ।
शांति हूई वरत्यो जेंकार, मोतीनो लेप कीयो तीणवार ।।३८।।
तारण तारंगानो कह्यो मंडाण, शास्त्र थकी में लह्यो प्रमाण ।
प्रणतां प्रणीवतां केहज्यो सुजाण, ऋद्धि सिद्धि रहस्यें जीहां लगे भाण३३ ।।३९।।
धुप उखेव्यां पाप प्रजलाय, दीपक प्रगट्यां दालिद्र३४ जाय ।
पुजा करंतां इंद्र सुर थाय, नैवेद्य मुक्यां मुक्ति सुख पाय ।।४०।।
आंगी बीराजे नवलखी जडित्र, मस्तके मुगट कांने कुंडल घडित्र ।
चक्षु टीको हस्ती श्रीवछ शोभे, वखाण करतां सुरदेवा थोभे ।।४१।।
हूंबडांरां देरां तारंगा पुठो, चोमुखो पगलानुं अस्यां हेठां(ठो) ।
ठाकोरनुं राज्य गढीया गाजे, माहाराजा दखणीनुं३५ मांन ते भाजे ।।४२।।
जडाव जडित्र चंदुआ चोसाल, मोतीनो झूमखो दीपे विसा(शा)ल ।
झलरी घंट दूंदुभी भेरी, कांसा कडतालां म्रदंग नफेरी ।।४१(४३)।।
सारंगी ताल घुघरा घमके, पंचशब्दां३६ वाजिंत्र सुणी सुर चमके ।
नगारानो नीस(निश)दिन पडे धुंसो, देवताने थाइं जोयानी हूंसो३७ ।।४२(४४)।।
वीक्षात३८ कही संक्षेप मात्रे, बत्रीस हजार देस(श)ना आवे जात्रे ।
शुद्ध भावे सलोको केहस्ये, मंगलमाला शुभ सांती(शांति) लेहस्ये ।।४३(४५)।।
संवत अढारसाठाना वर्षे, चैत्र वदि अष्टमी मंगलवार नीरखे ।
सलोको कह्यो अरिहंत सखाई, आसरो अंबे मातानो सदाई ।।४४(४६)।।
तपगछ दीपक श्री साकरवीजे, शिष्य ग(गु)लाबने सि(शि)वसुख दीजे ।
अजी(जि)त जिणंद तारंगो चीत लाय, तस घर जें(जय) ज(य)कार मंगली(लि)क थाय ।।४५(४७)।।
ईती श्री तारंगानो स[लोको] । सं ।
शब्दार्थ
१. वझार-?, २. रमझोल–रमझट, ३. हेसार–हणहणाट, ४. सलसल्यो-सळवळाट, ५. सिवी–सर्वे, ६. साइं-पकडी, ७. वारु-सारी रीते, ८. चंगो-सरस, ९. बावन बेजार-?, १०. क्षोणी-पृथ्वी, ११. कोशीसां-कांगरा, १२. पोल-दरवाजो, शेरी, १३. प्रकार–गढ, किल्लो, १४. तोखार-पाणीदार घोडा, १५. जायगा-जग्या, १६. पुरिसो-?, आण–आज्ञा, १७. साइ–पकडी, १८. वीणि-वेणी, चोटलो, १९. धाइ-दोडी, २०. राई-?, २१. सणग–सुरंग, भोयरुं, २२. दीवानीक-?, २३. उतंग–ऊंची कोटिनुं, मोटुं, २४. केवी- केटली, २५. पांहण–पाषाण, पथ्थर, २६. सीसव–सीसम, २७. धवडा–धावडो (एक वृक्ष), २८. केगर-एक जातनुं झाड, २९. माल-?, ३०. स्तोक–थोडुं, ३१. कमठांणां-माळखां, ३२. आंबली-?, ३३. भाण–सूर्य, ३४. दालिद्र–गरीबाई, ३५. दखणी-दक्षिणप्रदेशनुं, ३६. पंचशब्दां-पांच वाद्यनो मंगलसूचक ध्वनि, ३७. हूंसो-होंश, उत्साह, ३८. वीक्षात–विख्यात।
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