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ग्रंथसूचना शोधपद्धति : एक परिचय – 3

आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में
ग्रंथसूचना शोधपद्धति : एक परिचय – 3
रामप्रकाश झा
(गतांक में वर्णित विद्वान आधारित सूचना शोधपद्धति से आगे)
५.    हस्तप्रत आधारित शोधपद्धति ः यदि कोई वाचक मात्र किसी हस्तप्रत का नाम लेकर आता है कि आपके पास अमुक हस्तप्रत है या नहीं? यदि है तो वह पूर्ण है या अपूर्ण? कितना पुराना है ? आदि सूचनाएँ देने का कष्ट करें. तो इस प्रकार की शोध करने के लिए लायब्रेरी प्रोग्राम के हस्तप्रत वाले शोध-प्रपत्र में उस हस्तप्रत का नाम लिखकर शोध करेंगे तो उस नाम के सभी हस्तप्रतों की सूचनाएँ कम्प्यूटर स्क्रीन पर आ जाएँगी.


जिसमें हस्तप्रत नम्बर, नाम, लम्बाई-चौड़ाई, पंक्ति-अक्षर, प्रतिलेखन वर्ष, मास, तिथि, दशा-विशेषता, हस्तप्रत से जुड़े विद्वानों के नाम, जैसे किस लहिया ने लिखा था? किसने लिखवाया था? किसके लिए लिखा गया था? किस राजा के राज्यकाल में लिखा गया था? उन हस्तप्रत के नामों के नीचे वाले फिल्ड में उससे जुड़े हुए पेटांकों की सूचनाएँ पृष्ठसहित दर्शाई जाती हैं.
जिससे यह पता चलता है कि उस हस्तप्रत में कौन सी कृति किस पृष्ठ से किस पृष्ठ तक है? उसके नीचे बहुत सारे टैब होते हैं, जिनमें मुख्य रूप से कृतिवाला टैब होता है. उस हस्तप्रत में लिखी हुई कृतियों की सारी सूचनाएँ प्रदर्शित की जाती हैं.


जैसे उसका आदिवाक्य, अंतिमवाक्य, पूर्ण-अपूर्ण, यदि कृति अपूर्ण है तो उसका कितना भाग हस्तप्रत में है, कितना भाग नहीं है. यदि सम्पूर्ण है तो उसका परिमाण क्या है? कितनी ढाल हैं? कितनी गाथाएँ हैं? यदि हस्तप्रत खंडित है, मूषकभक्षित है, जला हुआ है तो उसका कौन सा भाग नहीं है? आदि सूचनाओं के साथ देखने को मिलती है.
उदाहरण के लिए – हस्तप्रत नं. – २०३९३, हस्तप्रत नाम – नवस्मरण, पूर्णता- संपूर्ण, पृष्ठ – १ से १३, कुल पृष्ठ – १३, लम्बाई २६.००, चौड़ाई ११.००, पंक्ति ११, अक्षर ३६, लेखन संवत् विक्रम संवत् १६७०, ज्येष्ठ शुक्लपक्ष ७ गुरुवार, दशा –श्रेष्ठ, विशेषता- प्रतिलेखक ने चित्रांकन पद्धति से स्तोत्रों के बीच में गुरु का नाम, अपना नाम एवं पठनार्थे का नाम लिखा है. अक्षर-सुंदर; गेरू लाल रंग से अंकित विशेष पाठ; लेखन पद्धति-अंक व दंड लाल स्याही से; चित्र-अंक स्थान में-सादा (रेखा चित्र)-अंतिम पत्र; फुल्लिका-मध्य-वापी-गोलचंद्र-लाल; पार्श्व रेखा-पीला-लाल, प्रतिलेखन स्थल- बीबीपुर, पठनार्थे- पं. वीरसागर गणि, गुरुनाम-कीर्तिविजय प्रतिलेखक- कीर्तिविजय गणि, गुरुनाम कमलविजय गणि, गुरु-पितृपरंपरा- पं. कमलविजय गणि, गुरु नाम- हंसविजय गणि.
प्रत की सूचना के नीचे देखने से पता चलता है कि इस प्रत में कोई पेटांक नहीं है. इसमें नवस्मरण के नौ स्मरणों में से आठ स्मरण लिखे गए हैं तथा नौवां स्मरण कल्याणमंदिर नहीं है.
(क्रमशः)