जैन दर्शनमां जो सौथी वधु काव्यो कोईने उद्देशीने रचाया होय तो ते प्रभु नेमनाथने उद्देशीने लखायां छे। कविओए प्रभुना जन्मथी मांडी बाल्यकाळ, बाल्यकाळनां पराक्रमो, (कृष्णनी राणीओ साथे कराती) जलक्रीडा, (राजुल साथेनो) विवाह, पशुओ वडे कराती विनंति, प्रभुनो वैराग्य, राजुलनो विलाप, रहनेमि प्रतिबोध, प्रभुनी दीक्षा तथा केवळज्ञान, प्रभुना नव भवनुं वर्णन, प्रभुनां तीर्थस्थानो इत्यादि घणा विषयोने लई ढगलाबंध कृतिओनी रचना करी छे। वळी पाछी ते कृतिओ साहित्यनां चरित्र, प्रबंध, स्तोत्र, स्तव जेवा बे-चार प्रकारोमां नहीं, अपितु रास, चोपाई, धवल, धमाल, फागु, विवाह, बारमासो, चोमासुं, चोक, सातवार, रासडो, पद, बहोत्तरी, बत्रीसी, छत्रीसी, होळी, छाहणी, नवरसो, छंद, भास, गीता, वेल, रेखता, विनंति, सलोको, हमचडी, रागमाळा, ख्याल, हिंडोल, गहुंली, गरबो, चूंदडी, फूलडां, सवैया, लावणी, लेख, संवाद, चारित्रमाला, झीलणा, सज्झाय, स्तवन जेवा घणा प्रकारोमां करी छे। तेमां पण नेमिरंगरत्नाकर छंद, नेमिगुणरत्नाकर छंद, नेमिजिन फाग, नेमिजिन द्वादशमास जेवी केटलीक रचनाओ तो आ साहित्यक्षेत्रनी घरेणा समान कृतिओ छे।
उपरोक्त श्रेणिमां ज रचायेली संपादित कृति प्रभु नेमनाथना चरित्र पर आलेखायेल सुंदर रचना छे। मा सरस्वतीनी तथा प्रभु आदिनाथनी वंदना द्वारा कृतिनुं मंगल आलेखता कृतिकारे कृतिनी शरूआत प्रभुने लग्न माटे मनावती गोपीओनी वर्णनाथी करी त्यारपछीना पद्योमां कृष्णना ईशाराथी नेमकुमारने जलक्रीडा माटे लई जती गोपीओ प्रभुने कई रीते मोह पमाडवानो प्रयत्न करे छे तेनी, प्रभुना मौनने अनुमति समजी लग्ननी तैयारी करता कृष्णनी, प्रभुना लग्ननी जाननी, पशुओनो पोकार सांभळी पाछा फरता नेमकुमारनी, राजुलना विलापनी, प्रभु पाछळ गिरनार पर जती राजुलनी, वरसादथी भींजायेला राजुलना देहने जोई चित्तथी खळभळी उठता रहनेमिनी, तेमने फरी संयममां स्थिर करी प्रभु पासे पहोंचता राजुलनी, संसारनी अनित्यताने जोई वैराग्य पामी दीक्षित थता नेमिकुमारनी तथा तेमना केवळज्ञाननी वातो अनुक्रमे गूंथी लीधी छे। ज्यारे काव्यांतनां पद्योमां प्रभुना नामस्मरणना महिमालेखननी साथे कृतिकारे स्वपरंपरानी तथा काव्य रचनासंवतनी नोंध दर्शाववा पूर्वक कृतिनुं समापन कर्युं छे।
काव्यनी दृष्टिए जोईए तो कृतिमां जोवा मळतुं प्रभुजीनी जाननुं तथा राजुलना विलापनुं वर्णन तो अहीं सुंदर छे ज, साथे-साथे कृतिकारे प्रयोजेला नारि-मुरारि, नयण-मयण, रेह-देह, आकुला-मोकला जेवा विविध अनुप्रासो पण चित्ताकर्षक छे। ते ज रीते पदार्थनी दृष्टिए जोईए तो कृतिमां आलेखायेली राजुल पर पडती शिला नेमनाथ प्रभु वडे धारण करायानी तथा ते प्रसंगथी संसारनी असारताने समजी प्रभुना प्रव्रजित थयानी विगतमां कृतिकारश्रीनी काव्यने रोचक बनाववानी बुद्धिनुं दर्शन थाय छे। जो के आ बन्ने विगतो अन्य कोई ग्रंथोमां जोवा मळती नथी।
कृतिकार परिचय
प्रस्तुत कृति श्रावक कवि लखमणनी लघु रचना छे। कृतिकारे आ सिवाय महावीर चरित्र(कल्पसूद्धांतभाषित चोपाई), चिहुंगति वेल, सिद्धांतसार रास, चोवीसजिन नमस्कार, शालिभद्र विवाहलु तथा शांतिनाथ स्तवन विगेरे घणा ग्रंथोनी रचना करी छे। जोके ते ग्रंथोमां तेनी रचना संवत् सिवायनी कोई नोंध न मळती होई मात्र ग्रंथरचना परथी तेमनो सत्तासमय विक्रमनी १६मी सदी पूर्वार्धनो होवानुं जणाय छे। बाकी कर्ताना जीवनचरित्र विशे कशुं लखी शकाय तेम नथी। बीजुं कर्ताए कृतिना अंते चंद्रगच्छीय श्रीजिनरत्नसूरिनो तथा तेमना शिष्य पुण्यकीर्तिनो जे नामोल्लेख कर्यो छे, ते उल्लेख जोतां आ बन्ने पूज्यो कर्ताना उपकारी गुरु होवा जोईए एवुं अनुमान थाय छे। कृतिनी रचनाशैली, शब्दप्रयोगो तथा अलंकारो थकी कृतिकारश्री संस्कृतादि भाषाना सारा जाणकार होवा तरफ आपणुं ध्यान खेंचे छे।
प्रत परिचय
श्री लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिरना हस्तलिखित प्रतभंडारमां संग्रहायेल प्रस्तुत प्रत संपादित कृतिनी एक मात्र प्रत छे। कृतिनुं लेखन सं. १५९१मां एटले के रचना संवतना नजीकना काळमां मुनि विमलसोमजीए कर्युं छे। कृतिनुं लेखन एकंदरे शुद्ध तथा सुवाच्य छे। खास संपादनार्थे कृतिनी नकल मोकलवा बदल श्री लालभाई दलपतभाई विद्यामंदिरना व्यवस्थापकोनो खूब खूब आभार।
नेमिनाथ स्तवन
॥ ॥ सरसति सामिणि करु पसाउ१, पढम जिणेसर लागूं पाइ ।
बालापणनुं(नूं?)२ हरिख अपार, गाइवा३ स्वामी नेमिकुमार ।।१।।
नारायण४ बंधव जेहनइं, सोल सहिस५ गोपी तेहनइ ।
जनमनरंजन अंजनवानि६, सोविनकुंडल झबुकइ७ कानि ।।२।।
नारायणि सनकारी८ नारि, लोपी लाज सवे तिणि वारि ।
खडोखलीमाहिं९ घालिउ१० वीर, सींगी११ भरीय सुछंटइ नीरि ।।३।।
ऊघाडइ मुखि बोलइ रंभ, प्रभु यौवन छइ अतिहिं दुलंभ१२ ।
मुहरा१३ करती लागइं पाइं, एक वचन तुम्हे मानउ राय ।।४।।
सोल सहिस बंधव निरवहइ१४, नेमिनाथ प्रति रूपिणि१५ कहइ ।
रा[णी?] रूकमिणि बोलइ रंभ, एक नारि मानिन वालिंभ१६ ।।५।।
बावनचंदन जिम भूअंग१७, वींटी विसहर करतां रंग ।
नेमिनाथ वचि घालिउ सही, माखी मधु१८ जिम वींटी रही ।।६।।
भणइ भुजाई१९ सांभलि देव, हाथि चडिउ अम्हारइ हेव२० ।
मानि परिणिवूं नहुरु२१ कीउ, तइं हेलां हरि हींडोलीउ२२ ।।७।।
बल ताहरुं प्रकासूं२३ अम्हे, सारंग धनुष चडाविउं तम्हे ।
भुजबलि शंख-नाद पूरीइ, ततखिणि त्रिभुवन आकंपीउ२४ ।।८।।
वलतु ऊतर नापइ२५ कसिउ, गोपी बोल विमासइ२६ इसिउ ।
मानिउं मानिउं सवि इम कहइ, जई नारायण जमली२७ रहइ ।।९।।
नारि भणइ सांभलि हो नाह, नेमिनाथि मानिउ वीवाह ।
श्रीपति२८ मनि रलीआइति२९थया, नगर द्वारिका नरहरि३० गया ।।१०।।
अग्रसेन धू३१ राजलि नारि, मंदिरि पहुता देव मुरारि३२ ।
आसण बइसण मेल्हिया बहू, स्वजनवर्ग मनि हरिखिउं सहू ।।११।।
ततखिणि बोलिया देव मकंद३३, वीर अम्हारु नेमिजिणंद ।
समुद्रविजय शिवादेवी माइ, अछइ कूंआरु३४ यादवराइ ।।१२।।
रूप-सलक्षण बुद्धिनिधान, उग्रसेन हरि दीधूं मान।
भाखइ आज पनुता३५ अम्हे, श्रीपति अम्ह धरि आविया तम्हे ।।१३।।
धन धन बेटी राजकुमारि, बइठा आविया देव मुरारि ।
ततखिणि जोसी तेडवीआ, तिणि थानकि पंडित आवीया ।।१४।।
श्रावण शुदि छट्ठि लीधूं लगन३६, परणीसि प्रभु सामलवन्न ।
नेमिनाथनु वीवाह मलिउ, गोपीनाथ ते पाछउ वलिउ ।।१५।।
मनमाहि हरखिया देव मुरारि, तलीयातोरण३७ बांधियां बारि ।
चीत्रहारा३८ चीतरइ अवास, मांडव घालिउं मन उल्हासि ।।१६।।
सोहासणि३९ गाइं मनरली, घरि घरि गूडी४० अति ऊछली ।
सगां-सणीजां४१ दीजइ मान, पोढां४२ केलवीइ४३ पकवान ।।१७।।
षट दरसिणनइ भोजन दीयुं(यूं), भांजी४४ भूख पुण्य ते लीयूं ।
इणि परि रूडउ वीवा[ह] करी, यादव-जान सकल संचरी ।।१८।।
वरराजा मइगलि४५ असवार, सामलवन(न्न) सोहइ सिणगार ।
मुख जिम दीपइ पूनिमचंद, जाणे अमरापुरनुं४६ इंद ।।१९।।
मस्तक मुगट सुकुंडल कानि, वर गोरु छइ काजलवानि ।
अमीय-कचोलां४७ सरिखा नयण, जाणे मूरतिवंतु४८ मयण ।।२०।।
कपूर कस्तूरी अंगि मसमसइ४९, पान आरोगइ५० वर मनि हसइ ।
रूपतणु हुं पार नवि लहूं, नेमिजिणंद जामलि कुण कहूं ।।२१।।
गोपी सवि कमलापतितणी५१, निज सिणगार करइ जानणी५२ ।
दक्षिणतणूं चीर पहिरणइ५३, झबुकइ५४ झालि५५ श्रवणि तेह तणइ ।।२२॥
उरि वरि लहकइ५६ नवसर हार, चलणे५७ नेउर५८ रणझिणकार ।
लोचन सारी काजलि-रेह५९, चंपावन्न६० सिरीखी देह ।।२३।।
साव सोविनमइं चूडी हाथि, सोल सहिस ते आवइ साथि ।
छपन कोडि यादव परिवरिया६१, रथ तुरंग६२ मइगल तुरवरिया६३ ।।२४।।
सोल सहस ससरा हरितणा, सुर नर पन्नग६४ मलिया घणा ।
वाया६५ पंचशबद६६ नीसाण६७, दुर्जन केरा जाइ पराण६८ ।।२५।।
जरासिंधु जीतु जिणि राय, त्रिभुवनपति परणेवा जाइ ।
नादहिं६९ जनमन रंजइं चींत, नारद तुंबर७० गाइ गीत ।।२६।।
मस्तकि मेघाडंबर७१ छत्र, डंडारस७२ तिहां पाडइ पात्र ।
बिहुं पासा(सी) एक ढालइ चमर, बहिनि सलूण७३ ऊतारइ कुमर ।।२७।।
चाली जान न सूझइ७४ सूर, जाणे जलनिधि जेहनूं पूर ।
मस्तकि सीकरि७५ दीसइ वली, गुखि चडी राजलि मनि रूली ।।२८।।
तेडी सहीअर कीधी सान७६, जोउ जोउ माहरा वरनी जान ।
यादवकुल केरु सिणगार, बहिनि निहालु नेमिकुमार ।।२९।।
मुख जाणे पूनिमा-मयंक७७, खवे७८ घणु पातलीउ लंक७९ ।
नास्या८० दीपक जाणे वली, दंत जिसिया दाडिमनी कुली८१ ।।३०।।
दीठउं नेमि जिणेसर रूप, सही प्रति कहीउं सकल सरूप ।
सांभलि बहिनि बोल मुझतणु, मनि ऊचाट८२ अछइ अति घणु ।।३१।।
जिमणी आंखि फरूकइ८३ गलइ८४, रखे यादव पाछउ वलइ ।
सांभलि राजलि बोलइ सही, जान लेई जे आविउ वही८५ ।।३२।।
तोरणि पहुतु निश्चिउ आणि[1]+, तुम्ह ऊचाट थया अप्रमाण८६ ।
तोरणि यादव आविया जसिं८७, पसूअ वाड पोकारइ{म}[2]* तिसिं ।।३३।।
अजा८८ रोझ८९ मृग सारस सूयर९०, कारण पूछइ यादवकुंअर ।
ततखिणि सारथि कहिउ विचार, एह जीव होसिइं संहार ।।३४।।
साविज९१ सवे जूजूई९२ जाति, जान परिगलूं९३ हुंसि प्रभाति ।
पसूय जीवनुं सुणीय विचार, तु चिंतइ प्रभ(भु) नेमिकुमार ।।३५।।
धिग पडउ९४ एणइ परिणवइ९५, जीणइ जीव मरासि सवे(वइ?) ।
जे जीवह हूंता आकुला९६, नेमिकुमरि मेल्हिया मोकला ।।३६।।
वनमाहि जईनइ दि आसीस, प्रतपु प्रभु तुं कोडि वरीस ।
वेगि वलीउ नेमिकुमार, राजमती मेल्ही निरधार९७ ।।३७।।
नारि परिहरी यादवराइ, रथ वाली प्रभु पाछउ जाइ ।
किम दव९८ बलतु राखउं रानि९९, किम गयवर रहइ साहिउ१०० कानि ।।३८।।
राजमती एणी परि भणइ, पोतइ१०१ पाप अछइ मझ तणइ ।
कइ मइ(इं) फोडी१०२ सरोवर पालि, कइ मइ(इं) भांजी तरूयर डालि ।।३९।।
कइ मइं दव परजालिया१०३ रानि, कइ मइं पात्र न पूजिया दानि ।
कइ मइं भांजिया रषि१०४ आश्रम, कइ मइं कहि पीआरा१०५ मर्म ।।४०।।
कइ मइं जलमाहि लांक्षां(खी?)१०६ जाल, कइ मइं जणणि विछोहियां१०७ बाल ।
कइ मइं सोविन लीधूं कापि१०८, कइ मइं आपिउं उछइ१०९ मापि ।।४१।।
कइ मइं सतीय चडावियां आल११०, कइ मइं वनि मारियां महूआल१११ ।
कइ लंपटपणइ११२ लागां पाप, कइ दूहव्या११३ जणणी गुरु बाप ।।४२।।
कइ मइं वहुरिउं११४ कूडइ करहइ११५, तु मुझनइं यादव परिहरइ ।
राजमती जाणइ सवि मर्म, लागूं पेला११६ भवनूं कर्म ।।४३।।
वली रोइनइ बोलइ इसिउं, पसूअतणुं ए दूषण किसिउं ।
सवि सहीअर मोकलावी करी, राजमती केडइ११७ सांचरी ११८ ।।४४।।
ततखिणि सरिसउ११९ गईउ तात, सांभलि बेटी माहरी वात ।
रहि रहि वछ१२० कहूं छउं अम्हे, मनगमतुं वर वरयो१२१ तम्हे ।।४५।।
पिता सांभलु बोलइ बाल, ए संसार जाणियो आल ।
जेहनइ अंजनसरिखी देह, तेहसिउं आठ भवंतर१२२ नेह ।।४६।।
नुमइ मुगतिं ऊमाहीउ१२३, मम तेडणि मोरु पति आवीउ ।
पिता भणइ सांभलि हो माइ, वली तुझ परणावुं कोइ राइ ।।४७।।
राजलि भणइ निसुणि तुं बाप, मुझ राखिं१२४ थासि संताप ।
पिता पराणिं चाली जिसिं(सिइं?), ऊपरि मेह धडूकिउ१२५ तिसिइं ।।४८।।
मधुरइं सादिं बोलइ मोर, सामलवन तम्हे खरा कठोर ।
बापीडउ१२६ जिम प्रीउ प्रीउ करइ, जलधर नाड१२७ खाड तिहा(हां) भरइ ।।४९।।
वहइ नदी तिहां अति घण पूरि, वादल किही१२८ न सूझइ सूर ।
तरस भूखसिउं चालइ बाल, नसि-भरी१२९ वीज झबकइ विकराल१३० ।।५०।।
राजमती न जाणइ वाट, भीनी पटुली१३१ नवरंग१३२ घाट१३३ ।
वगडामाहि विहाणी१३४ राति, गुफा एक दीठी परभाति ।।५१।।
फाटउं१३५ वादल तडकु थाइ, वस्त्र ऊगवइ१३६ राजलि माइ ।
रहनेमि तप करतुं जिहां, राणी राजलि पहुती तिहां ।।५२।।
राजमती पगथी१३७ जव चडइ, रहनेमि मनमथ धडहडइ१३८ ।
नग्न राइमइतणूं शि(श)रीर, देखी महातप चूकु वीर ।।५३।।
विषमायुधनूं१३९ विसमूं नाम, सुर केरी [जे?] भंजइ माम१४० ।
सुणिन रायमइ भणइ रहनेमि, जु आणइ थानकि आविया खेमि१४१ ।।५४।।
गिउ१४२ गिरनारि कंत ताहरु, नेमिनाथ बंधव माहरु ।
देउरवट१४३ तु करिन सुजाणि, मझ परिणी झाझां१४४ सुख माणि ।।५५।।
हुं तप छांडउ ताहरइ काजि, सोरीपुरि जई बइसउं राजि ।
नही-तु१४५ मनकी पूरु आस, नसि-भरि कीजइ भोगविलास ।।५६।।
मधुरुं बोलइ नवि दिइ गालि, जु सलकइ१४६ वासिग१४७ पईआलि१४८ ।
मेरपर्वत जु मूंकइ ठाण, अथवा पश्चिम ऊगइ भाण ।।५७।।
जु अंगारे वरसइ मेह, समुद्रमाहि किम प्रगटइ खेह१४९ ।
सी सीखामण दीजइ घणी, परबति किम ऊगइ कमलिनी ॥५८॥
जल किम सूकइ महिणारंभ१५०, जु आकाश पडइ विण थंभ ।
मानि बोल ए वात ज छंडि, विष किम प्रगटइ अमृत-कुंडि ।।५९।।
गिरि सिरि जल किम पाछउं वलइ, शील अम्हारुं तुहि नवि चलइ ।
जे पर-नारी राचइ वली, ते नर मुगति गई वेगली ।।६०।।
तुम्ह कुल आगइ छइ ए रीति, अष्ट भवंतर केरी प्रीति ।
तम्ह बंधवि हुं अपछर त्यजी, यादव कांइं न चेतु हजी ।।६१।।
अछउं सती हूं द्यो(द्यउ?) सराप, तम्हे तु माहरइ बंधव बाप ।
देउर१५१ कहिउं अम्हारुं करु, भवसायर पडतां तुम्हि तरु ।।६२।।
सत्य-वचन यादवि बोलीउं, है ! है ! दैव ! किसिउं मइं कीउ ।
जाणे सूपनांतर गयूं वही, नरगतणा दुख सहसिउं सही ।।६३।।
कर जोडीनइ लागुं पाइ, सुणि सुकुलीणी राजलि माइ ।
इसिउ बोल रहनेमिं कहिउ, न्याइं१५२ कंदर्प ईश्वरि दहिउ ।।६४।।
जे के नर नरयागति जाइ, ते तु रतिपतितणु पसाइ१५३ ।
सती सिरीखु करिउ संताप, माइ मुझ कुण कहि लागूं पाप ॥६५॥
राजमती बोलइ तिणि ठाइ, सुणि मझ देउर यादवराय ।
पाप तम्हारुं जाणइ बंध१५४, जस प्रणमइ देखइ जाचंध१५५ ।।६६।।
संयमसिरी वीर करि वरिउ, राखी मन वनि तप आदरिउ ।
कर्म क्षपी१५६ मुगतिं जाइसिउ, कुमरी बोल कहइ तिहां असिउ१५७ ।।६७।।
देई सीखामण चाली नारि, कामिनि पहुती गढ गिरिनारि ।
सुणि यादवकुलकेरा चंद, पाछलि जोउ प्रभु नेमिजिणंद ।।६८।।
राजमती पर्वति जव चडइ, गज१५८ बावन सिला सिरि पडइ ।
प्रीगुणि१५९ प्रमुदा प्रीउ प्रीउ करइ, नेमि जिणेसर भुज तिहां धरइ ।।६९।।
कामिनि प्रीउने लागी पाइ, राजमती मनि हरिख न माइ ।
हृदय विमासइ१६० नेमिकुमार, मनि उलखीउ अथिर संसार ।।७०।।
हय गय माणिक सोविन धान, वरस एक लगइं दीधूं दान ।
सहस राइसिउं१६१ दीक्षा लेई, रहनेमि सीखामण देई ।।७१।।
रवि-तलि१६२ नमिजिणेसर फिरइ, मास दिवसना कासग१६३ करइ ।
चुपन दिन तपतणूं(णू)अ प्रमाण, नेमि ऊपनूं केवलनाण ।।७२।।
आगलि अरथ अछइ अति घणु, कवि कांइ पार न लहइ तेह तणु ।
राजमती नइ नेमिजिणंद, मुगति गया अम्ह मनि आणंद ।।७३।।
समुद्रविजय शिवादेवीनंद, भवीयां पाप अमूलइ१६४ कंद ।
तुं तु सिद्धिरमण-भरतार, सेवक केरी करिन१६५ सार ।।७४।।
बावीसमु जिणेसर राय, नामिं पातक दूरिं जाइ ।
राग द्वेष माया निरजिणी१६६, ध्याउ ध्याउ रेवईआ–गिरिधणी१६७ ।।७५।।
धन्य धन्य ते नर नारि, जे जाइं सेत्रु(त्रुं?)ज गिरिनारि ।
आदि नेमि जे पूजा करइ, सहिगुरुवाणि हृदय जे धरइ ।।७६।।
जे वेदन लहइ निरधनतणी, तस घरि लखिमी आवइ घणी ।
जे पर-नारी देखी टलइ१६८, नव निधि चऊद रत्न तिहां मिलइ ।।७७।।
नेमिनाथ तम्हे गिरूआ देव, भवि भवि चलणे मांगूं सेव ।
जे नितु समरइ वसतां दूरि, स्वामी तास मनोरथ पूरि ।।७८।।
सदग(गु?)रतणूं वचन मनि धरूं, अणजाणतां कवित ए करुं(रूं) ।
उछउं अधिक जि कांई होइ, कहइ कि(क)वि सांसहियो१६९ सहू कोइ ।।७९।।
चंद्रगछि गिरूआ गुणधार, श्रीजिनरत्नसूरि सगुरु उदार ।
पुण्यकीर्त्ति वर तेहना सीस, जयवंता जगि जां ससि दीस ।।८०।।
पनर उगणीसइ(१५१९) काती मासि, भणइ अति लखमण मन उल्हासि ।
सकल बीज नइ आदित्यवार१७०, जइवंता जगि नेमिकुमार ।।८१।।
नेमि जिणेसरतणूं चरित्र, भणतां गुणतां जन्म पवित्र ।
जे के साहसीक१७१ सांभलीइ, निश्चिं[त] तेह घरि अफलां१७२ फलइ ।।८२।।
।। इति श्रीनेमिनाथस्तवनं संपूर्णं ।।श्री ।। श्री ।। संवत् १५९१ वर्षे आसाढ शुदि ११ सोमे। विमलसोम लखितं ।।
शब्दकोश
१.कृपा, २. ?, ३. गावा, ४. कृष्ण, ५. हजार, ६. काळारंगवाळा, ७. प्रकाशे छे, ८. इशारो कर्यो, ९. क्रीडा माटेनी वाव, १०. नाख्या, खेंच्या, ११. पीचकारी, १२. दुर्लभ, १३. गुंजारव करती, १४. संभाळ लेवी, १५. कृष्णनी बहेन, १६. वहालम, १७. सांप, १८. मध, १९. भाभी, २०. हवे, २१. कालावाला, २२. हलबलाव्या, २३. कहीए छीए, २४. ध्रूजी ऊठ्युं, २५. आपता नथी, २६. विचारे छे, २७. पासे, २८. कृष्ण, २९. आनंदित, ३०. कृष्ण, ३१. पुत्री, ३२. कृष्ण, ३३. कृष्ण, ३४. परण्या वगरना, ३५. भाग्यशाळी, ३६. मुहूर्त, ३७. तोरण विशेष, ३८. चित्रकार, ३९. सौभाग्यशाळी स्त्री, ४०. धजा, ४१. सगां-संबंधि, ४२. मोटां, ४३. तैयार कर्या, ४४. दूर थई, ४५. हाथी पर, ४६. देवलोकनो, ४७. अमृतना वाटका, ४८. आकाररूप, ४९. विलेपन करे (?), ५०. खाय, ५१. कृष्णनी, ५२. जानमां जनारी स्त्री, ५३. पहेरवा माटे, ५४. झबके छे, ५५. काननुं आभूषण, ५६. झूले छे, ५७. पगमां, ५८. झांझर, ५९. काजळनी रेखा, ६०. स्वर्णवर्णी, ६१. परिवरेला, ६२. घोडा, ६३. तरवराटवाळा(?), ६४. नाग (देवजाति), ६५. वाग्या, ६६. पांच वाद्योनो मंगलसूचक ध्वनि, ६७. नोबत, ६८. प्राण, ६९. अवाजथी, ७०. गंधर्व, ७१. एक प्रकारनुं उत्तम छत्र, ७२. डांडिया रास, ७३. नजर, ७४. देखावुं, ७५. एक प्रकारनुं छत्र, ७६. ईशारो, ७७. पूर्णिमानो चंद्र, ७८. ?, ७९. कमर, ८०. नाक, ८१. कळी, ८२. चिंता, ८३. फरके छे, ८४. ?, ८५. चाल्यो, ८६. व्यर्थ, ८७. जेवा, ८८. बकरी, ८९. नीलगाय, ९०. सुवर, ९१. पशु, पंखी, ९२. विविध, ९३. ?, ९४. थाओ, ९५. लग्नने, ९६. आकुळ-व्याकुळ, ९७. आधार विनानी, ९८. दावानळ, ९९. जंगलमां, १००. पकडायेल, दबावाएल १०१. आत्मामां, १०२. तोडी, १०३. बाळ्या, १०४. ऋषि, १०५. अन्यना, १०६. नाखी, १०७. वियोग कराव्यो, १०८. कोईनुं, १०९. ओछा, ११०. कलंक, १११. मधपूडा, ११२. लोलुपताथी, ११३. दुःख आप्युं, ११४. ?, ११५. ?, ११६. पूर्वना, ११७. पाछळ, ११८. चाली, ११९. पासे, १२०. वत्स, १२१. परणो, १२२. भवनो, १२३. उत्साहित थयो, १२४. अटकावे, १२५. गडगड्या, १२६. पक्षी विशेष, १२७.नानु तळाव, १२८. क्यांय(?), १२९. आखी रात्र, १३०. प्रकाशे, १३१. पटोळुं, रेशमी वस्त्र, १३२. नवी भांतवाळी, १३३. लालरंगनी बांधणीनी भांतनी चूनडी, १३४. पसार करी, १३५. दूर थयां, १३६. सूकवे, १३७. पगथियां, १३८. धडधडे, खळभळावी नाखे, १३९. कामदेवनुं, १४०. प्रतिष्ठा, १४१. कुशळतापूर्वक, १४२. गयो, १४३. ?, १४४. घणा, १४५. नही तो, १४६. खसे, १४७. वासुकि (नाग), १४८. पाताळमां, १४९. धूळ, १५०. समुद्रना, १५१. दियर, १५२. न्यायथी, १५३. कृपा, १५४. भाई, १५५. आंधळो, १५६. खपावी, १५७. एवां, १५८. माप विशेष, १५९. ?, १६०. विचारे छे, १६१. राजाओनी साथे, १६२. पृथ्वीतल पर, १६३. काउसग्ग, १६४. ?, १६५. करने, १६६. जीती, १६७. रैवतक पर्वतना स्वामी, १६८. दूर थाय, १६९. स्वीकारी लेजो, १७०. रविवार, १७१. हिम्मत(श्रद्धा?)थी, १७२. पूर्वे न फळ्या होय तेवा।
o O o
[1] +अहीं हस्तप्रतमां ‘आणि’ पहेला एक अक्षर छे जे पाछळथी नवी चोंटाडेल प्रतमां दबाई गयो होय तेवुं लागे छे।
[2] *अहीं हस्तप्रतमां पोकार पछीनो ‘इम’ एटलो पाठ पाछळथी (प्रत त्यांथी खंडित थयेल होई) चोंटाडायो छे। जो के ते उमेरेला पाठमांनो ‘म’ वधारानो लागे छे।