कृति परिचय
आ कृतिनी भाषा मारुगूर्जर छे। जे अत्यंत कर्णमधुर अने ताल लयबद्ध रचना करी छे। कृतिनी त्रीजी गाथामां कर्ताए ‘तीरथमाला बोलवा माता दिउ वरदान’ एम कहीने कविए माता शारदा पासे वरदाननी मांगणी करी छे। प्रस्तुत कृतिनी रचना त्रण-ढाळमां थई छे। कर्ताए नंदीश्वर द्वीप, रुचकगिरि, कुंडलगिरि, कंचनगिरि, देवकुरु, उत्तरकुरु, तिर्च्छालोक, वैताढ्य पर्वत, वक्षस्कार पर्वत, बार देवलोक, शाश्वत- अशाश्वता वगेरेमां रहेला अद्भुत जिन बिंबोनुं सुंदर प्रासमां वर्णन कर्यु छे।
कर्ता परिचय
प्रस्तुत कृतिनी रचना आचार्य हीरविजयसूरिना शिष्य पद्मविजयजीए करी छे। जैन गूर्जर कविओ भाग-२, पृष्ठ-२७८ पर पद्मविजयजी द्वारा रचित तीर्थमाला स्तवन कृतिनो ज उल्लेख मळे छे। कर्तानी अन्य कोई रचना प्राप्त थई नथी। कर्तानो समयकाल अनुमाने वि.सं.१७मी होई शके छे।
प्रत परिचय
आ हस्तप्रतनी झेरोक्ष आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबामांथी प्राप्त थयेल छे। हस्तप्रतनो प्रत नं -३१२६१ छे। आ प्रतना पेज -२ छे। अक्षरो सुंदर अने सुवाच्य छे. प्रतिलेखक गणि श्री महिमसागर द्वारा आ प्रत सं. १७३५ जेठ सुद १४ ना दिने विठोरा नगरमां लखाई छे।
तीर्थमाला स्तवन
समरसि समरसि सरसती, वरसती वचन विलास ।
तुं तुठी मुज आपजे, साचु वचन विलास ।।१।।
वाणी वाणी इम भणै, हुं तुठी एकंति ।
कवि केलवणी केलवै, केलवै आणी खंति ।।२।।
त्रिभुवन जिन प्रासादनी, संख्या प्रतिमा मान ।
तीरथमाला बोलवा, माता दिउ वरदान ।।३।।
बावन नंदीसर रुचकि, च्यार कुंडल वलि च्यार ।
ए साठे चो बारणा, बीजा ते त्रिणि बार ।।४।।
चो बारै जिन देहरइ, बिंब इकसु चउवीस ।
वली त्रि बारइ जिनभवनि, प्रतिमा एकसुवीस ।।५।।
भाषा – पहिलुं त्रीच्छालोकना ए, श्री जिनवर प्रासाद तु ।
नंदीसर दीपिं भला ए, बावन जिन प्रासाद तु ।।६।।
चउसठि सै अडिआल नमुं, तिहां श्री जिनवर बिंब तु ।
कुंडलि च्यारइ जिन घरि ए, च्यारसैं छन्नु बिंब तु ।।७।।
रुचक दीपिं तिम जाणीइ ए, जिनवर च्यार प्रासाद तु ।
च्यार सें छन्नु जिन तणा ए, बिंब नमुं गत साद तुं ।।८।।
राजधानीमांहि जांणीइ ए, जिनघर सोभ विशाल तु ।
उगणीससै वीस संजुआ ए, जिनबिंब नमुं सुत्रिकाल तु ।।९।।
मेरु वनिं प्रासाद असी, तिहां छन्नुसैं बिंब तु ।
चूला पंच प्रासाद नमुं, बींब छसै अविलंब तु ।।१०।।
गजदंति जिनवर तणा ए, वीस प्रासाद अभंग तु ।
तिहां जिनबिंब नमुं चोवीससइ ए, नमस्युं आंणी रंग तु ।।११।।
देवकुरु उत्तरकुरु ए, दश प्रासाद विशेष तु ।
बारसैं बिंब नमुं सदा ए, श्री जिनना सुविशेष तु ।।१२।।
च्यार जिन घर इषुकारि नमुं, च्यारसैं असी जिन बिंब तु ।
च्यार मानुषोत्तर गिरिवरु ए, च्यार सैं असी जिन बिंब तु ।।१३।।
वक्खारा पर्वत असीअ, जिनप्रासाद उत्तंग तु ।
बिंब छन्नुसैं जिन तणा ए, नमतां रंग अभंग तु ।।१४।।
कुलगिरि त्रीस प्रासाद तिहां, बत्रीससैं जिनबिंब तु ।
दुगगिरि च्यालीस जिन भवनि, अडतालीससैं सत्तरि बिंब तु ।।१५।।
जंबू तरु दस तरु पमुह, इग्यारसैं सत्तरि गेह तु ।
एक लाख च्यालीस सहस बिंब, बारस याधिक तेह तु ।।१६।।
दीरघ वेताढिं वली ए, सत्तरिसु जिन ठाम तु ।
वीस सहस संख्या सही ए, च्यारसैं बिंब अभिराम तु ।।१७।।
कंचनगिरि जिनघर सहस, एकलाख वीस सहस बिंब तु ।
महानदी जिनघरि सत्तरि, चोरासीसैं बिंब तु ।।१८।।
द्रहे असी प्रासाद तिहां, छन्नूसैं जिनबिंब तु ।
कुंडल जिनवर घर असीअ, पणयालीस छसैं बिंब तु ।।१९।।
वृत वेताढिं जिनघर वीस, चउवीससैं जिनबिंब तु ।
ऊमगगिरिं जिनघर वीस, चउवीससैं जिनबिंब तु ।।२०।।
विंतर नै वली ज्योतिषी ए, तिहां प्रासाद असंख तु ।
श्रीजिनवर देवइं कह्या ए, तिहां जिनबिंब असंख तु ।।२१।।
दूहा – एवंकारै जिनभवन, संख्या त्रीछैं लोकि ।
बत्रीससैं गुणवली नमुं, भावि भवि अवलोकि ।।२२।।
त्रिण्यह लाख एकाणुं आ, सहस तिन्निसैं वीस ।
तिहां शाश्वता जिनवर नमुं, ध्यान धरुं निसदीस ।।२३।।
।। ढाल – नाभि नरिंदनी ।।
हवें पभणूं पातालि, भवनपती दस जाणीइं ए ।
तिहां असुरादि निकाय, जिणघर जिनप्रतिमा कहुं ए ।।२४।।
पहिलां असुरकुमार, चउसठि लाख प्रासाद तिहां ।
जिनबिंब एकसु कोडि, कोडि पनरवीस लाख तिहां ।।२५।।
नागकुमारि प्रासाद, लाख चउरासी जाणीए ।
जिनप्रतिमा सुकोडि, कोडि एकावन वीस लाख ।।२६।।
सुवनकुमार मझारि, लाख बहुत्तरि जिनभवन ।
जिनप्रतिमा सुकोडि, गुणत्रीस कोडि साठि लाख ।।२७।।
विद्युकुमारमांहि, अग्निकुमारमांहि वली ए ।
दीवकुमारह मज्झि, उदधिकुमारमांहि तथा ए ।।२८।।
दीशीकुमार विशेष, दशमा सनित कुमार सुर ।
ए षट ठामि प्रासाद, बहुत्तरि बहुत्तरि लाख तिहां ।।२९।।
प्रत्येकिं सुकोडि, बत्तीस कोडि असी लाख ।
श्री जिनप्रतिमा मान, मान देईनइं वंदिइ ए ।।३०।।
वाउंकुमार मझारि, लाख छन्नू प्रासाद तिहां ।
सुकोडि बहुतरि कोडि, लाख असी प्रतिमा नमुं ए ।।३१।।
दूहा – भवनाधिप दस देव तिहां, सयल जिणेसर ठांम ।
लाख बहुत्तरि कोडि सग, जोतां अभिरांम ।।३२।।
सवि पातालिं तेरसैं, कोडि निव्यासी कोडि ।
साठि लाख ते शास्वतां, बिंब नमुं कर जोडि ।।३३।।
।। ढाल भम्मा रुलिनी ।।
हवै सुधर्मैं देवलोकि, सा भामारो ली । बत्तीस प्रासाद लाख तु ।
कोडि सतावन बिंब नमुं, सा० ऊपरि साठि लाख तु ।।३४।।
देवलोकि ईशानिं वली, सा० प्रासाद अडवीस लाख तु ।
जिनबिंब कोडि पंचास नमुं, सा० अधिका च्यालीस लाख तु ।।३५।।
त्रीजै सनतकुमार कहुं, सा० प्रासाद द्वादश लाख तु ।
कोडि एकवीस जिनबिंब नमुं, सा० ते ऊपरि साठि लाख तु ।।३६।।
माहेंद्र चोथे देवलोकिं, सा० तिहां प्रासाद अडलाख तु ।
चउद कोडि जिनबिंब नमुं, सा० ऊपरि च्यालीस लाख तु ।।३७।।
ब्रह्मलोकिं देवलोकिं वली, सा० प्रासाद तिहां च्यार लाख तु ।
सात कोडि जिनबिंब नमुं, सा० हर्षधरी वीस लाख तु ।।३८।।
लांतकि छठै देवलोकिं, सा० पंचास सहस प्रासाद तु ।
नेऊ लाख जिनबिंब नमुं, सा० दूर जाइ विखवाद तु ।।३९।।
शुक्र देवलोकिं सुर सातमै, सा० च्यालिस सहस प्रासाद तु ।
लाख बहुत्तरि जिनप्रतिमा, सा० नमतां मनि आह्लाद तु ।।४०।।
अठम सहसार देवलोकि, सा० छ सहस जिन प्रासाद तु ।
दस लाख असी सहस नमुं, सा० जिनप्रतिमा घननाद तु ।।४१।।
नवमै अनंत देवलोकिं, सा० प्रासाद बिसै उत्तंग तु ।
छत्रीस सहस जिनबिंब नमुं, सा० आणि निज मनि रंग तु ।।४२।।
दसमइ प्राणत दैवलोकि, सा० बिसै प्रासाद वखाणि तु ।
श्रीजिनप्रतिमा शास्वती, सा० सहस छत्रीससैं जाणि तु ।।४३।।
आरण नांमिं देवलोकि, सा० प्रासाद एकसो पंचास तु ।
सहस सत्तावीस जिनप्रतिमा, सा० पूरइ मनतणी आंस तु ।।४४।।
बारमै अच्युत देवलोकि, सा० दुढसो जिन प्रसाद तु ।
सहस सत्तावीस जिनप्रतिमा, सा० दूरि टलै विखवाद तु ।।४५।।
पहिलै त्रिकि ग्रैवेकिं वली, सा० प्रासाद एकसु इग्यार तु ।
तेर सहस त्रिणिसै वीस, सा० श्री जिनबिंब उदार तु ।।४६।।
बीजै त्रिकी ग्रैवेकि भला, सा० जिनघर एकसो सात तु ।
सहस बार अडसै प्रतिमा, सा० च्यालीस सहस विख्यात तु ।।४७।।
त्रीजै त्रिकि ग्रैवेकि सदा, सा० प्रासाद एकसो मान तु ।
श्रीजिनवर प्रतिमा नमुं, सा० बार सहस परमाण तु ।।४८।।
पंचानुत्तर वर विमानिं, सा० पंच प्रासाद वखाणि तु ।
श्रीजिनप्रतिमा छसै नमुं, सा० भाव भगति मनि आणि तु ।।४९।।
वस्तु – उट्ढलोए उट्ढलोए सयल प्रासाद, लाख चउरासी रयणमय ।
सहस सत्ताणूं अति मनोहर, ते वीसे वली आगला ।
तिहां नमुं जिनबिंब सुंदर, कोडि एकसो बावन जूआ ।
कोडि चउराणुं लाख, सहस चिउंआलीस सातसै ।
साठि सहित जिन लाख ।।५०।।
भाषा – हवै तिहुण सासय प्रासाद, ते कहिसुं मुंकी परमाद ।
कोडि आठ सतावन वली, लाख बिसै ब्यासी सवि मिली ।।५१।।
तिहां जिनबिंब नमुं कर जोडि, पनरसयां बइतालीस कोडी ।
लाख आठावन सहस बत्तीस, ऊपरि असी कह्या ज[ग]दीस ।।५२।।
हवै जिनप्रतिमा कहिसुं मांन, उछेदिं अंगुल तनुमान ।
उड्ढ अहो लोए सग हाथ, पणसै घणुं त्रीछै जगनाथ ।।५३।।
पूरव दिशि श्रीऋषभ जिणंद, दक्षिण वर्धमान जिनचंद ।
पश्चिम चंद्रानन जिननाम, उत्तरि वारिषेण अभिराम ।।५४।।
कलस
ए तीरथ माला गुण विशाला, कंठ पाठै जे ठवै,
तस मुगति बाला अति रसाला, वरण वरमाला ठवै ।
श्रीहीरविजयगुरु सूरि पुरंदर, सीस पद्मविजय कहैजे,
सुगुण गुणसिं अनै सुणस्यै, मंगलमाला ते लहइ ।।५५।।
।। इति तीरथमाल स्तवन संवत १७३५ वर्षे ज्ये. सु. १४ दिने वीठारा नगरे
ग. महिमसागरेण ।।
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