आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में
ग्रंथसूचना शोधपद्धति : एक परिचय
रामप्रकाश झा
कभी-कभी मात्र पुस्तक नाम से यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि उस पुस्तक में क्या-क्या है? परन्तु आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में मात्र पुस्तक नाम से शोध करने पर उस पुस्तक के अन्दर उपलब्ध समस्त विवरण क्षणमात्र में कम्प्यूटर-स्क्रीन पर प्रदर्शित हो जाता है, जिसे देखकर वाचक यह तय कर सकता है कि वह पुस्तक उसके लिए उपयोगी है या नहीं?
उदाहरण के लिए मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली से ई. २००७ में प्रकाशित एक पुस्तक का नाम है- “THAT WHICH IS” इस नाम से यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि इस पुस्तक में क्या-क्या है?
परन्तु आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर के लायब्रेरी प्रोग्राम की पुस्तक शोधपद्धति में उस पुस्तक की शोध करने से क्षणमात्र में यह जानकारी प्राप्त हो जाती है कि इस पुस्तक में वाचक उमास्वाति के द्वारा रचित तत्त्वार्थाधिगमसूत्र का रोमन लिपि में लिप्यन्तरण है, जैनश्रावक ‘नथमल टाटिया’ के द्वारा किया गया उसका अंग्रेजी अनुवाद है तथा वाचक उमास्वाति के द्वारा ही किए गए तत्त्वार्थाधिगमसूत्र के स्वोपज्ञ भाष्य का भी अंग्रेजी अनुवाद है.
इस पुस्तक के सम्पादक ‘डॉ. सत्यरंजन बनर्जी’ हैं तथा इस पुस्तक की एक नकल पुस्तक संख्या W-३५९५७ पर उपलब्ध है, जिसका मूल्य ४५० रुपये है और यह पुस्तक सरस्वती पुस्तक भंडार अहमदाबाद से खरीदी गई है.
प्रकाशक आधारित शोध पद्धति : जब कोई वाचक किसी प्रकाशक का नाम लेकर आता है कि आपके पास अमुक प्रकाशक के द्वारा प्रकाशित कौन-कौन सी पुस्तकें हैं, वह हमें जानना है और उन पुस्तकों में से अपने लिए उपयुक्त पुस्तक चयन करना है. तो इस प्रकार की शोध करने की दो पद्धतियाँ हैं-
पहली पद्धति से लायब्रेरी प्रोग्राम के प्रकाशक वाले फिल्ड में उस प्रकाशक का नाम टाईप करके शोध करेंगे तो उस नाम के सभी प्रकाशक व उनके स्थान के नाम कम्प्यूटर स्क्रीन पर आ जाएँगे. उन नामों के नीचे वाले फिल्ड में बहुत सारे टैब होते हैं, जिनमें मुख्य रूप से तीन टैब होते हैं- प्रकाशित पुस्तकें, दान में प्राप्त पुस्तकें तथा खरीद से प्राप्त पुस्तकें.
प्रकाशित पुस्तकों वाले टैब पर माउस से क्लिक करने से उस प्रकाशक के द्वारा प्रकाशित पुस्तकों की सूची देखने को मिलती है. इस सूची में पुस्तक का नाम, उसका भाग, उसकी आवृत्ति, उसका प्रकाशन वर्ष तथा उसकी पृष्ठ संख्या कम्प्यूटर स्क्रीन पर दर्शायी जाती है.
इसी प्रकार दान में प्राप्त व खरीदी गई पुस्तकों की सूची भी देखी जा सकती है. यदि किसी व्यक्ति ने संस्था में एक भी पुस्तक दान में या भेंटस्वरूप दी हो तो वह या उसके परिवार का कोई भी सदस्य, मित्रगण आदि कभी भी आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में आकर देख सकते हैं कि उन्होंने कब कौन-कौन सी पुस्तकें भेंट में दी थीं?
इसी प्रकार ज्ञानमन्दिर में किस पुस्तक विक्रेता से कब कौन-कौन सी पुस्तकें खरीदी गई थीं, इसकी सूचना भी क्षणभर में प्राप्त हो सकती है.
उपर्युक्त पद्धति से शोध करने पर मात्र पुस्तक का प्रकाशन सम्बन्धी विवरण ही देखा जा सकता है, परन्तु प्रकाशन माहिती में उपलब्ध शोधप्रपत्र में यदि प्रकाशक के खाने में मात्र प्रकाशक का नाम डालकर शोध किया जाए तो उस प्रकाशक के द्वारा प्रकाशित, पुस्तक का सम्पूर्ण विवरण देखा जा सकता है. जैसे-
उस पुस्तक के अन्दर स्थित पेटांकों की संख्या, उन पेटांकों में निहित कृतियों की सूचनाएँ, उस पुस्तक के सम्पादक, संशोधक, संकलनकार आदि का नाम, पुस्तक की भौतिक स्थिति, उस पुस्तक का नम्बर, उसका मूल्य, उस पुस्तक की दशा, जैसे श्रेष्ठ, मध्यम, जीर्ण और उस पुस्तक का प्राप्तिस्थल आदि.
उस पुस्तक में उपलब्ध कृतियों के नाम, उसके कर्त्ता का नाम, उसका स्वरूप मूल, टीका, अनुवादादि, उसका प्रकार गद्य-पद्यादि, उस कृति का आदिवाक्य, अन्तिमवाक्य तथा उसका परिमाण आदि देखा जा सकता है.
उदाहरण के लिए यदि किसी वाचक को पुस्तक का नाम, लेखक का नाम कुछ भी याद नहीं है, मात्र इतना ही याद है कि पुस्तक मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली से प्रकाशित हुई है.
इस परिस्थिति में प्रकाशन के शोध-प्रपत्र में प्रकाशक के नाम में मात्र मोतीलाल बनारसीदास और प्रकाशन स्थल में दिल्ली टाईप करके शोध करने से मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली से प्रकाशित सभी पुस्तकों की सम्पूर्ण सूचनाएँ कम्प्यूटर स्क्रीन पर देखने को मिलती हैं. यह सूची देखने से यदि वाचक की अपेक्षित पुस्तक इस सूची में होगी, तो वह तुरन्त मिल जाएगी.
विद्वान आधारित शोधपद्धति : विद्वान के मुख्य चार प्रकार हैं- १. कृति के कर्ता आदि, २. पुस्तक, मैगेजिन व मैगेजिन के लेखों के संपादक, संशोधक आदि, ३. हस्तप्रत के प्रतिलेखक आदि तथा ४. विद्वान की गुरुपरंपरा में गुरु आदि.
यदि कोई वाचक मात्र किसी विद्वान का नाम लेकर आता है कि आपके पास अमुक विद्वान के द्वारा रचित अथवा संपादित कौन-कौन सी पुस्तकें हैं, वह हमें जानना है और उन पुस्तकों में से अपने लिए उपयुक्त पुस्तकों का चयन करना है. इस प्रकार की शोध करने की भी दो पद्धतियाँ हैं-
पहली पद्धति से लायब्रेरी प्रोग्राम के विद्वान सूचना वाले शोधप्रपत्र में उस विद्वान का नाम टाईप करके शोध करेंगे तो उस नाम के सभी विद्वान कम्प्यूटर स्क्रीन पर आ जाएँगे. उन नामों के नीचे वाले फिल्ड में बहुत सारे टैब होते हैं, जिनमें मुख्य रूप से चार टैब होते हैं- कृति, प्रकाशन, हस्तप्रत तथा मैगेजिन-अंक. सामान्य रूप से शोध किए गए विद्वान के द्वारा रचित ग्रंथों की सूची देखने के लिए कृति वाले टैब पर माउस से क्लिक करने पर उस विद्वान के द्वारा रचित कृतियों की सूची देखने को मिलती है.
इस सूची में कृतियों के नाम, उसके कर्त्ता का नाम, उसका स्वरूप मूल, टीका, अनुवादादि, उसका प्रकार गद्य-पद्यादि, उस कृति का आदिवाक्य, अन्तिमवाक्य तथा उसका परिमाण दर्शाया जाता है.
(क्रमशः)