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ग्रंथसूचना शोधपद्धति : एक परिचय – 5

आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में
ग्रंथसूचना शोधपद्धति : एक परिचय
रामप्रकाश झा
(गतांक में वर्णित ग्रन्थमाला एवं मासिक पत्रिका आधारित शोधपद्धति से आगे)
स्पेशल क्वेरी- कुछ विशेष परिस्थितियों में, जब प्राप्त अपूर्ण सूचनाओं के आधार पर किसी भी शोध-प्रपत्र में कृति, प्रकाशन, हस्तप्रत अथवा मैगेजिन अंक को शोध करना सम्भव न हो, तब इस स्पेशल क्वेरी के द्वारा सूचनाओं की शोध की जाती है. इस पद्धति के अन्दर लायब्रेरी-प्रोग्राम के निष्णात प्रोगामरों के द्वारा विशेष रूप से एक विशिष्ट प्रकार की क्वेरी बनाई जाती है. इस पद्धति से शोध करने पर वह कृति, प्रकाशन अथवा हस्तप्रत यदि ज्ञानमन्दिर में किसी भी रूप में उपलब्ध है तो उसकी सूचना अवश्य प्राप्त होगी. इस शोधपद्धति का उपयोग किसी विशेष परिस्थिति में ही किया जाता है. विशेष रूप से शोधकार्य में संलग्न विद्वानों के लिए अथवा ज्ञानमन्दिर के किसी खास प्रोजेक्ट के लिए यह शोध-पद्धति उपयोगी सिद्ध होती है.


उदाहरण के लिए यदि जैनेतर विद्वानों के द्वारा रचित जैन कृतियाँ चाहिएँ, तो इसकी शोध किसी भी शोधप्रपत्र में सम्भव नहीं है. अतः इसके लिए स्पेशल क्वेरी का सहारा लेना पड़ता है.
एडवान्स सर्च- यह पद्धति आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर की शोधपद्धति का ब्रह्मास्त्र है. इस पद्धति से शोध करने पर अपेक्षित विवरण कहीं भी, किसी भी रूप में हो, अवश्य मिलता है. यह पद्धति प्रकाशन, कृति, हस्तप्रत, विद्वान तथा मैगेजिन के अंकों की शोध के लिए अपनाई जाती है.


उपर्युक्त किसी भी ब्राउज में एडवान्स सर्च करने पर उस ब्राउज़ के प्रत्यक्ष, परोक्ष तथा संलग्न सारे फिल्डों की सूची विविध वर्गों में वर्गीकृत करके दर्शाई जाती है. उस फिल्ड के ऊपर माउस से क्लिक करना पड़ता है, जिस-जिस फिल्ड पर क्लिक करते हैं, उसके खाने में उस फिल्ड के लिए उचित शब्द टाईप करके ढूँढा जाता है. उदाहरण के लिए एडवान्स सर्च के फार्म में पुस्तक नाम वाले खाने में यदि “उत्तराध्य” टाईप करते हैं, प्रकाशकवाले खाने में “भद्रंकर”, सम्पादक वाले खाने में “चंदनबाला” तथा पूर्णता वाले खाने में “आगे से जारी यहाँ समाप्त” वाला विकल्प पसन्द करते हैं तो भद्रंकर प्रकाशन से प्रकाशित, हीरालाल हंसराज द्वारा सम्पादित व साध्वी चंदनबाला द्वारा पुनः सम्पादित उत्तराध्ययनसूत्र का दूसरा भाग तुरन्त ही कम्प्यूटर स्क्रीन पर आ जाता है, जिसमें मूल उत्तराध्ययनसूत्र तथा उसके ऊपर आचार्य जयकीर्तिसूरिजी द्वारा रचित दीपिका टीका प्रकाशित हुई है और जो “उत्तराध्याया” के नाम से ई. सन् २००९ में प्रकाशित हुआ है.


इसी प्रकार एडवान्स सर्च के फार्म में कृति नाम वाले खाने में यदि “गुणाकर” टाईप करते हैं तथा कृतिस्वरूप वाले खाने में “टीका” वाला विकल्प पसन्द करते हैं तो “भक्तामरस्तोत्र” पर आचार्य श्रीगुणाकरसूरि द्वारा रचित “गुणाकरीय वृत्ति” की सूचना तुरन्त ही कम्प्यूटर स्क्रीन पर आ जाती है, उसके नीचेवाले बेल्ट में उस कृति के साथ संलग्न ३० हस्तप्रत और ८ प्रकाशन दिखाई देते हैं. विद्वान नाम वाले खाने में यदि “रम्यरेणु” टाईप करते हैं तथा विद्वानस्वरूप वाले खाने में “साध्वी” वाला विकल्प पसन्द करते हैं तो साध्वी रम्यगुणाश्रीजी की शिष्या साध्वी हर्षगुणाश्रीजी का नाम कम्प्युटर स्क्रीन पर दिखाई देता है, जिनका प्रचलित नाम “रम्यरेणु” है. उसके नीचेवाले बेल्ट में हर्षगुणाश्रीजी द्वारा रचित २१ कृतियों की सूची तथा उनके द्वारा सम्पादित १० प्रकाशनों की सूची भी दिखाई देती है.
एडवान्स सर्च के इस शोधप्रपत्र में यदि हम अपेक्षित विद्वानों के ५० से अधिक या ५० से कम प्रकाशनों की सूची देखना चाहें तो विद्वान नाम में विद्वान का नाम टाईप करके विद्वान से जुड़े हुए प्रकाशनों की संख्या में ५० से कम या अधिकवाला विकल्प चयन करते हैं तो उस विद्वान की ५० से अधिक या ५० से कम प्रकाशनों की सूची देखी जा सकती है. उदाहरण के लिए यदि विद्वान नाम में यशोविजय टाईप करते हैं तथा अपेक्षित प्रकाशनों की संख्या में ५० से अधिकवाला विकल्प चयन करते हैं तो यशोविजयजी के द्वारा सम्पादित ५० से अधिक प्रकाशनों की सूची देखने को मिलती है. इस प्रकार किसी भी प्रकाशन, हस्तप्रत, कृति, विद्वान अथवा मैगेजिन के अंकों की शोध के लिए किया जानेवाला एडवान्स सर्च काफी असरकारक सिद्ध होता है.


एडवान्स पॉवर सर्च- इस शोधपद्धति के अन्तर्गत अपेक्षित विवरण कहीं भी, किसी भी रूप में लायब्रेरी प्रोग्राम में प्रविष्ट किया गया हो, तो अवश्य मिलता है. इस पद्धति से शोध करने हेतु एडवान्स पॉवर सर्च वाला विकल्प चयन करने पर एक बॉक्स खुलता है, जिसमें ऊपर की तरफ टाईप करने के लिए एक छोटा सा बॉक्स होता है, उस बॉक्स में जो भी शब्द टाईप किया जाता है, वह शब्द पूरे लायब्रेरी प्रोग्राम में कहीं भी किसी भी रूप में प्रविष्ट किया गया हो, नाम में, आदिवाक्य में, अन्तिमवाक्य में अथवा रिमार्क में, उसे तुरन्त ही ढूँढकर ला देता है. उदाहरण के लिए यदि कृति के एडवान्स सर्च में जीवनचरित्र लिखा जाए और उसके नीचे कृति को टिक् कर दिया जाए तो कुल ९७७ कृतियों की सूची कम्प्युटर स्क्रीन पर आ जाती है, जिन कृतियों के कृति नाम में, आदिवाक्य में, अन्तिमवाक्य में, अथवा रिमार्क में जीवनचरित्र शब्द आता हो. यह पद्धति Google की तरह काम करती है.


शोधपद्धति की विशेषताएँ-शोधपद्धति में कुछ ऐसी सूक्ष्मताओं का उपयोग किया गया है, जिसके कारण किसी भी सूचना की शोध असरकारक सिद्ध होती है. उन सूक्ष्मताओं की एक छोटी सी झलक –
v यदि चाहें तो शोध प्रपत्र में लिखे गए शब्दों के बीच के स्पेस (खाली जगह) को कम्प्यूटर में नहीं गिनता है. अर्थात् कोई भी नाम स्पेस के साथ लिखा गया हो अथवा बिना स्पेस के, उसे प्रोग्राम अवश्य ढूँढकर लाता है.
v यदि चाहें तो शोध प्रपत्र में ह्रस्व-दीर्घ को भी कम्प्यूटर एक जैसा गिनकर रिजल्ट देता है.
v शोध प्रपत्र में किसी भी अनुनासिक वर्ण को प्रोग्राम स्वयं ही अनुस्वार में बदलकर शोध करता है.
v शोध प्रपत्र में लिखे गए शब्द नाम के प्रारम्भ में, बीच में या अन्त में कहीं भी आएँ, उन्हें सरलता से व अल्प समय में ढूँढा जा सकता है.
v यदि किसी नाम का विकल्प हो, जैसे- कल्प या कप्प, तो उसे इस प्रकार ढूँढा जा सकता है-कल्प/कप्प. इसप्रकार ढूँढने से कल्पसूत्र नाम हो अथवा कप्पसुत्त, उसे तुरन्त ही ढूँढकर ला देता है.
v इसी प्रकार यदि कम्प्यूटर को यह आदेश दिया जाता है कि कल्प और सूत्र जिस नाम में हों, वैसा नाम ढूँढकर लाओ, तो कल्प+सूत्र ऐसा टाईप कर शोध करने से तुरन्त कल्पसूत्र ढूँढकर ला देता है.
v अपेक्षित सामग्री की जितनी सूचनाएँ, नाम, नाम का अंश, भाषा आदि सूचनाएँ उपलब्ध हों, उतनी ही सूचनाओं की प्रविष्टि कर शोध को सीमित किया जा सकता है.
v निर्दिष्ट खाने में टाईप किया हुआ शब्द चाहिए अथवा उस शब्द के अतिरिक्त अन्य सारे शब्द चाहिएँ, तो इस प्रकार का शोध भी किया जा सकता है. उदाहरण के लिए यदि वाचक कल्याणमंदिर की टीकाओं पर अभ्यास कर रहा हो और उसे समयसुंदर गणि के द्वारा रचित टीका चाहिए तो कृति के सर्च फार्म में कृति नाम में कल्याणमंदिर+टीका तथा विद्वान के नाम में समयसुंदर टाईप कर ढूँढने से समयसुंदर की टीकावाले कल्याणमंदिर स्तोत्र की सम्पूर्ण सूचनाएँ दृष्टिगत होती हैं परन्तु यदि उसके पास समयसुंदर की टीका हो और उसके अतिरिक्त अन्य टीकाएँ चाहिएँ तो कृतिनाम वाले खाने में कल्याणमन्दिर तथा विद्वान नाम में !(समयसुंदर) इसप्रकार टाईप करके शोध करने से समयसुंदर के सिवाय अन्य सारे विद्वानों की टीकाओं की सूची देखने को मिलेगी.
v कृति प्रकाशित है अथवा अप्रकाशित? यह जानने के लिए कृति के शोध प्रपत्र में कृतिनाम वाले खाने में कृति का नाम टाईप करके सबसे नीचे दाहिनी ओर बने बॉक्स में Related to HP और Only पर टिक् करने से मात्र वैसी कृतियों की सूची कम्यूटर स्क्रीन पर आएगी जो न तो प्रकाशन से जुड़ी हुई हैं, न ही मैगेजिन के अंकों से जुड़ी हुई हैं, बल्कि मात्र हस्तप्रत से जुड़ी हुई हैं. इस प्रकार अपने लायब्रेरी प्रोग्राम की सूचनाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वह कृति अप्रकाशित है.
v यदि किसी विद्वान् को ऐसी कृतियों की सूची चाहिए, जिसकी भाषा संस्कृत अथवा देशी हो, जिसका स्वरूप मूल हो, जिसका प्रकार पद्य हो, जिसके कर्त्ता यशोविजय अथवा ज्ञानविमल हों तथा जो वि.१८०० से २००० के बीच लिखी गई हो तो इस प्रकार की शोध के लिए कृतिशोध वाले प्रपत्र में विद्वान् नाम वाले खाने में यशोविज/ज्ञानविमल, भाषा के खाने में संस्कृत और प्राकृत का चयन करेंगे, कृति स्वरूप में मूल का चयन करेंगे और संवत् में विक्रम का चयन करके १८०० से २००० का रेंज देंगे तो यशोविजयजी गणि तथा ज्ञानविमलसूरि के द्वारा वि. १८०० से २००० के बीच रचित सज्झाय, स्तवन आदि २१ कृतियों की सूची कम्प्यूटर स्क्रीन पर आ जाएगी.
v आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर के अधिकांश ग्रन्थों को स्कैन कर तथा उसके विषयसूची को भी स्कैन कर उसका TOC बनाकर उस ग्रन्थ के साथ लिंक कर दिया गया है. अतः प्रकाशन के शोध प्रपत्र में बाईं ओर सबसे नीचे Praksn PDF TOC वाले खाने में “वीर जिन” टाईप कर शोध करने से हजारों प्रकाशनों की सूची उनके पेटांकों के साथ कम्प्यूटर स्क्रीन पर आ जाएगी. इस सूची में वैसे सभी प्रकाशनों के नाम आएँगे, जिसके किसी न किसी पेटांक में वीरजिन शब्द आता हो. इस सूची में लघुस्तोत्ररत्नाकर नामक ग्रन्थ है, जिसका TOC देखने से ४६ नंबर के पृष्ठ पर वीरजिन स्तुति नामक कृति मिल जाती है, इसके अतिरिक्त उस पुस्तक के Bookmark भी बनाए जाते हैं, जिसके आधार पर यह जाना जा सकता है कि उस पुस्तक के कौन से पृष्ठ पर कौन सी कृति प्रकाशित है?
v आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में मुनि श्री दीपरत्नसागरजी द्वारा सम्पादित सभी आगम डिजीटल फॉर्मेट में उपलब्ध हैं. उन आगमों में आनेवाले किसी भी शब्द से यह शोध किया जा सकता है कि यह शब्द कौन-कौन से आगम में हैं, उस शब्द के आगे-पीछे के पाठांश भी देखने को मिलते हैं. इसके लिए Aagam text नामक फाईल में सबसे ऊपर दाहिनी ओर वाले खाने में “सूरियाभदेव” टाईप करने से राजप्रश्नीयसूत्र का वह भाग, जिसमें यह शब्द है, उसके आगे-पीछे के कुछ हिस्से के साथ कम्प्यूटर स्क्रीन पर दिखाई देता है.
v इसके अतिरिक्त नोटपैड प्लस-प्लस प्रोग्राम के अन्तर्गत चयनित फोल्डर में उपलब्ध संस्कृत-प्राकृत के टेक्स्ट डॉक्यूमेन्ट्स में कोई भी शब्द या वाक्य ढूँढना हो, तो उसे आसानी से ढूँढा जा सकता है. इस प्रोग्राम में अपेक्षित शब्द या वाक्यांश लिखकर जिस जगह सारे डॉक्यूमेन्ट्स रखे गए हों, उसका Path दिखाने पर कम्प्यूटर सभी फाईलों में जाकर ढूँढता है और वह शब्द या वाक्यांश जहाँ भी हों, वे सारी फाईलें और उसकी लाईनें लिंक के रूप में दिखा देता है. जिस लिंक पर क्लिक किया जाएगा, कर्सर उस लाईन पर चला जाएगा. इससे टेक्स्ट रेफरेन्स ढूँढने में बहुत आसानी होती है. हस्तप्रत सम्पादन कार्य में यदि हस्तप्रत अपूर्ण हो और उसके बीच के पत्र हों तो जहाँ से भी पाठ मिलता हो, वहाँ के वाक्यांश ढूँढने पर वह वाक्यांश कौन सी कृति का है, यह तुरन्त मिल जाता है.
इसप्रकार आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर की शोधपद्धति एक विशिष्ट और अद्वितीय शोधपद्धति है, जो ग्रन्थालय विज्ञान के क्षेत्र में एक विशेष उपलब्धि मानी जाती है और जिसका प्रयोग मात्र इस ज्ञानमन्दिर में ही होता है. अन्य ग्रन्थालयों में किसी भी ग्रन्थ को उसके नाम से ही जाना जाता है, परन्तु आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर में किसी भी ग्रन्थ से सम्बन्धित सूचनाओं को प्रकाशन, कृति, हस्तप्रत, विद्वान, प्रकाशक, ग्रन्थमाला आदि भागों में विभक्त कर दिया जाता है, और यहाँ की विशिष्ट शोध पद्धति में किसी भी सूचना की शोध करते समय उन आठों भागों तथा उनके अन्तर्गत समाहित अन्य छोटी-छोटी सूचनाओं के विशाल सागर में से अपेक्षित सूचनाओं का संकलन किया जाता है. प्राप्त अल्पतम सूचनाओं के आधार पर जो विवरण प्राप्त होते हैं, वे बहुत ही अल्प समय में प्राप्त होनेवाले प्रामाणिक व सटीक विवरण होते हैं. इससे वाचक तथा संशोधक के समय की बचत होती है, जिस समय का उपयोग वे अपने अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों में कर सकते हैं.