आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा
Abstract
वीर निर्वाण के सही समय को सिद्ध करने के लिए एकाधिक प्रमाणों एवं युक्तिओं में से एक प्रमाण विविध संवतों के अंतर का भी है। इस लेख में उसे ही प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। वीर निर्वाण से शक संवत का अंतर, वीर निर्वाण से विक्रम संवत का अंतर और शक संवत से विक्रम संवत के अंतर को संस्कृत, प्राकृत के प्राचीन जैन शास्त्र ग्रंथों, प्रतिमा लेखों, रचना प्रशस्तिओं, प्रतिलेखन पुष्पिकाओं आदि प्राचीन प्रमाणों, साक्ष्यों के आधार पर दर्शाने का यहाँ प्रयास किया गया है। यहाँ प्रस्तुत प्रमाण विशेषकर आज (वि.सं.२०८०) से ५०० वर्ष पूर्व से लेकर १४०० वर्ष प्राचीन तक के लिए गए हैं। उन प्रमाणों को अग्रिम स्थान पर प्रधानता से दर्शाया है और साथ में कुछ बाद के प्रमाण भी दिए हैं। यहाँ दो संवतों के बीच के अंतर को सिद्ध करने वाले कुछ ऐसे साक्ष्य भी प्रस्तुत किए हैं, जिनमें दो संवत्सरों का एक साथ उल्लेख किया गया हो। एक ही प्रसंग के लिए विभिन्न ग्रंथों में विभिन्न संवत दर्शाए गए हों, ऐसे प्रमाण भी दो संवतों के अंतर को सिद्ध करने हेतु एक पुष्ट आधार हैं, अतः ऐसे भी कुछ प्रमाण यहाँ प्रस्तुत किए गए हैं। हमें विश्वास है कि, इसके माध्यम से विविध संवतों के योग्य अंतर के निर्णय तथा वीर निर्वाण के योग्य समय का निर्णय करने के लिए विद्वानों को अपेक्षित प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध होगी और वर्तमान में चल रहे मत-मतांतरों और भ्रमणाओं का निर्मूलन करने में यह लेख विशेष उपयोगी सिद्ध होगा।
क्रम |
नाम |
समय |
पट्टधर के उल्लेख का प्राचीन प्रमाण |
पट्टधर के समय का आधार |
1 |
सुधर्मास्वामी |
वीर निर्वाण 20 में स्व. |
कल्पसूत्र, रचयिता सुधर्मास्वामी |
कालसप्ततिका वि. सं. 1327 के आसपास |
2 |
जंबुस्वामी |
वीर निर्वाण 64 में स्व. |
उपरोक्त अनुसार |
कालसप्ततिका वि. सं. 1327 के आसपास |
3 |
प्रभवस्वामी |
वीर निर्वाण 75 में स्व. |
उपरोक्त अनुसार |
विचारश्रेणी, रचना- वि. सं. १४वीं सदी |
4 |
स्वयंभवसूरि |
वीर निर्वाण 98 में स्व. |
उपरोक्त अनुसार |
विचार श्रेणी रचना- वि. सं. १४वीं सदी |
5 |
यशोभद्रसूरि |
वीर निर्वाण 148 में स्व. |
उपरोक्त अनुसार |
विचार श्रेणी, रचना- वि. सं. १४वीं सदी |
6 |
संभूति विजयजी और भद्रबाहुस्वामी |
वीर निर्वाण 156 में स्व.वीर निर्वाण 170 में स्व. |
उपरोक्त अनुसार |
कालसप्ततिका. वि.सं. 1327 के आसपास विचारश्रेणी रचना, वि. सं. १४वीं सदी |
7 |
स्थुलीभद्रस्वामी |
वीर निर्वाण 215 में स्व. |
उपरोक्तअनुसार |
कालसप्ततिका वि. सं. 1327 के आसपास |
8 |
आर्य महागिरि और आर्य सुहस्तिसूरि |
वीर निर्वाण 245 में स्व.वीर निर्वाण 291 में स्व. |
उपरोक्त अनुसार |
विचार श्रेणी, रचना- वि. सं. १४वीं सदी |
9 |
सुस्थितसूरि और सुप्रतिबद्धसूरि |
सुस्थितसूरि- वीर निर्वाण 339 में स्व. |
उपरोक्त अनुसार |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना- वि.सं.1648 |
10 |
इन्द्रदिन्नसूरि |
वीर निर्वाण 421 में स्व. |
उपरोक्त अनुसार |
वीरवंशावलि, रचना- वि.सं.1806 (आसपास) |
11 |
दिन्नसूरि |
अनुपलब्ध |
उपरोक्त अनुसार |
अनुपलब्ध |
12 |
सिंहगिरि |
वीर निर्वाण 547 में स्व. |
उपरोक्त अनुसार |
वीरवंशावलि, रचना वि.सं.1806 |
13 |
वज्रस्वामी |
वीर निर्वाण 584 में स्व.वि.सं. 114 में स्व. |
उपरोक्त अनुसार |
कालसप्ततिका वि. सं. 1327 के आसपास. विचारश्रेणी, रचना- वि. सं. १४वीं सदी |
14 |
वज्रसेनसूरि |
वीर निर्वाण 620 में स्व. |
उपरोक्त अनुसार |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
15 |
चंद्रसूरि |
वीर निर्वाण 643 में स्व. |
उपरोक्त अनुसार |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
16 |
सामन्तभद्रसूरि |
वीर निर्वाण 650 में उनके कारण निर्ग्रन्थ गच्छ का वनवासी गच्छ नाम हुआ. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
जैन परंपरानो इतिहास भा.1, पृ.345,प्रकाशन- वि. सं. 2009 |
17 |
वृद्धदेवसूरि |
वीर निर्वाण 595, वि.सं.125 में कोरंट में प्रतिष्ठा करवाई |
गुर्वावली, रचना- वि.सं.1466 |
गुर्वावली, रचना- वि.सं.1466 धर्मसागरजी पट्टावली, रचना- वि.सं.1648 |
18 |
प्रद्योतनसूरि |
वीर निर्वाण 698 में स्व. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
जैन परंपरानो इतिहास भा.1, पृ. 352. |
19 |
मानदेवसूरि |
वीर निर्वाण 731 में स्व. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
जैन परंपरानो इतिहास भा.1, पृ.361, प्रकाशन- वि.सं. 2009 |
20 |
मानतुंगसूरि |
भक्तामर स्तोत्र रचयिता. समय-अनुपलब्ध |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
अनुपलब्ध |
21 |
श्री वीरसूरि |
वीर संवत 770 और वि. सं. 300 में नागपुर में प्रतिष्ठा करवाई |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
22 |
जयदेवसूरि |
वीर सं. 833 में स्व. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
जैन परंपरानो इतिहास, भा.1 पृ.369, पुस्तक प्रकाशन वर्ष- वि.सं.2009 |
23 |
देवानंदसूरि |
अनुपलब्ध |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
अनुपलब्ध |
24 |
विक्रमसूरि |
अनुपलब्ध |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
अनुपलब्ध |
25 |
नरसिंहसूरि |
अनुपलब्ध |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
अनुपलब्ध |
26 |
समुद्रसूरि |
अनुपलब्ध |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
अनुपलब्ध |
27 |
मानदेवसूरि |
वि.सं. 582 में आचार्य पदारूढ.हरिभद्रसूरि के मित्र- गुर्वावली. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
बृहद्गच्छसूरिविद्यापाठ प्रशस्ति, जैन परंपरानो इतिहास, भा.1 पृ.446, पुस्तक प्रकाशन वर्ष- वि.सं. 2009 |
28 |
विबुधप्रभसूरि |
वि.सं.640 मे शंकरगण राजा द्वारा कुल्पाकजी तीर्थ की प्रतिष्ठा हुई, इस समयावधि के विबुधप्रभसूरि है. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
जैन परंपरानो इतिहास, भा.1, पृ. 453, पुस्तक प्रकाशन वर्ष- वि.सं. 2009. |
29 |
जयानंदसूरि |
वि.सं. 664-700 का समय हर्षवर्द्धन राजा का माना जाता है, जयानंदसूरि भी इसी समयान्तर के माने जाते हैं. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
जैन परंपरानो इतिहास, भा.1, पृ.457 |
30 |
रविप्रभसूरि |
वि.सं.700 में नाडोल नेमिजिन चैत्य प्रतिष्ठा करवाई |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
गुर्वावली, रचना- वि.सं.1466 |
31 |
यशोदेवसूरि |
वीर सं. 1272,वि. सं. 802 में वनराज द्वारा पाटण की स्थापना हुई, इस समयावधि में यह थे. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
32 |
प्रद्युम्नसूरि |
अनुपलब्ध |
गुर्वावली, रचना- वि.सं. 1466 |
अनुपलब्ध |
33 |
मानदेवसूरि |
उपधानवाच्यग्रन्थविधाता. समय- अनुपलब्ध |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
34 |
विमलचंद्रसूरि |
वि.सं. 980 में वीरसूरि को दीक्षा दी थी |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
प्रभावक चरित्र, रचना- वि.सं.1334 |
35 |
उद्योतनसूरि |
वि.सं.994 में सर्वदेवसूरि आदि 8 शिष्यों को आचार्यपद, वटगच्छ स्थापना. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
36 |
सर्वदेवसूरि |
वि.सं. 994 में आचार्यपदारूढ, वि.सं.1010 में रामसैन्यपुर में आदिजिन प्रतिष्ठा करवाई |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
गुर्वावली, रचना- वि.सं.1466 |
37 |
देवसूरि |
वि.सं. 1110 या 1125 में स्व. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
जैन परंपरानो इतिहास भा.2, पृ. 254, प्रकाशन वर्ष- वि.सं.2016 |
38 |
सर्वदेवसूरि |
वि.सं.1037 में स्व. (अनुमानित) |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
|
39 |
यशोभद्रसूरि |
वि.सं. 1129 से 1139 के बीच शिष्य मुनिचंद्रसूरि को आचार्य पद देकर पाट पर स्थापित किया.(षोडषक-वृत्ति के रचयिता माने जाते है.) |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
जैन परंपरानो इतिहास भा.2, पृ.416, प्रकाशन वर्ष- वि.सं. 2016 |
40 |
मुनिचंद्रसूरि |
वि. सं. 1178 स्व. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
गुर्वावली, रचना- वि.सं.1466 |
41 |
अजितदेवसूरि |
वि.सं. 1191 में जीराववाजी प्रतिष्ठा की. सिद्धराज जयसिंह द्वारा सम्मानित |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
वीरवंशावली, रचना- वि.सं. 1806 |
42 |
विजयसिंहसूरि |
वि.सं. 1206 में आरासण प्रतिष्ठा की. वि. सं. 1322 की सर्वाधिक प्राचीन खंभात की हस्तप्रत, जिसमें बालचंद्रसूरि रचित विवेकमंजरी टीका है, इस टीका के रचयिता बालचंद्र के ग्रन्थ का शुद्धिकरण विजयसिंहसूरि ने किया था. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
आरासणतीर्थ प्रतिष्ठा लेख. विवेकमंजरी-टीका की उपलब्ध सर्वाधिक प्राचीन खंभात की हस्तप्रत, लेखन समय- वि.सं. 1322 |
43 |
सोमप्रभसूरि |
वि. सं. 1241 में कुमारपालप्रतिबोध ग्रन्थ की रचना की |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
कुमारपालप्रतिबोध, रचना- वि. सं. 1241 |
44 |
जगच्चंद्रसूरि |
वि. सं. 1285 में तपागच्छ नामकरण |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
गुर्वावली, रचना- वि.सं.1466 |
45 |
देवेन्द्रसूरि |
वि. सं. 1327 स्व. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
46 |
धर्मघोषसूरि |
वि.सं.1327 में कालसप्ततिका ग्रंथ की रचना की. वि.सं. 1357 में स्व. |
कालसप्ततिका, रचना – वि.सं. 1327 गुर्वावली, रचना- वि.सं. 1466 |
कालसप्ततिका, रचना – वि.सं. 1327 गुर्वावली, रचना- वि.सं. 1466 |
47 |
सोमप्रभसूरि |
वि. सं. 1373 स्व. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
48 |
सोमतिलकसूरि |
वि. सं. 1424 स्व. |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
49 |
देवसुंदरसूरि |
वि. सं. 1420 में आचार्यपद |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
50 |
सोमसुंदरसूरि |
वि. सं. 1457 में आचार्यपद |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
51 |
मुनिसुंदरसूरि |
वि. सं. 1466 में गुर्वावली की रचना की |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
गुर्वावली, रचना-वि.सं.1466 |
52 |
रत्नशेखरसूरि |
वि.सं.1516 में आचारप्रदीप ग्रन्थ की रचना की |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना |
आचारप्रदीप ग्रन्थ, रचना-वि. सं. 1516 |
53 |
लक्ष्मीसागरसूरि |
वि. सं. 1470 में दीक्षा ली थी. (उम्र वर्ष-6) |
गुरुगुणरत्नाकर, रचना- वि.सं.1541 |
गुरुगुणरत्नाकर, रचना- वि.सं.1541 |
54 |
सुमतिसाधुसूरि |
वि. सं. 1545-1551 संभवित गच्छनायक पद पर्याय काल |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
55 |
हेमविमलसूरि |
वि. सं. 1584 में स्व. |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
56 |
आनंदविमलसूरि |
वि. सं. 1596 में स्व. |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
57 |
विजयदानसूरि |
वि. सं. 1622 में स्व. |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
58 |
हीरविजयसूरि |
वि. सं. 1652 में स्व. |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
धर्मसागरजी पट्टावली, रचना-वि.सं.1648 |
59 |
उ. सहजसागर |
वि.सं.1639 में हीरसूरि के साथ फत्तेहपुर सिक्री गए थे. |
विजयप्रशस्ति काव्य-टीका, रचना-वि. सं. 1688 |
विजयप्रशस्ति काव्य-टीका, रचना-वि. सं. 1688 |
60 |
जयसागर |
वि.सं. 1645 में पार्श्वजिन की स्तवना का लेखन किया. |
घाणेराव भंडार स्थित पार्श्वजिन स्तवन की हस्तप्रत नं. 6228, लेखन समय- वि.सं. 1645 |
घाणेराव भंडार स्थित पार्श्वजिन स्तवन की हस्तप्रत नं. 6228, लेखन समय- वि.सं. 1645 |
61 |
गणि. जीतसागर |
अनुपलब्ध |
श्रीसुखसागर गुरुगीता तथा तपागच्छे सागरशाखा पट्टावलि, प्रकाशन वर्ष वि.सं. 1972 |
अनुपलब्ध |
62 |
मानसागर |
वि.सं. 1724 में विक्रमसेन राजा चौपाई की रचना की. वि.सं. 1754 में कल्पसूत्र-टीका की रचना की. |
विक्रमसेन राजा चौपाई, रचना- वि.सं. 1724 (वि.सं. 1759 में लिखित कोबा ज्ञानमंदिर की हस्तप्रत नं.150832) |
विक्रमसेन राजा चौपाई, रचना- वि.सं. 1724(वि.सं. 1759 में लिखित कोबा ज्ञानमंदिर की हस्तप्रत नं.150832) कल्पसूत्र-टीका की कोबा स्थित, ह.प्र. नं. 3726 |
63 |
मयगलसागर |
अनुपलब्ध |
श्रीसुखसागर गुरुगीता तथा तपागच्छे सागरशाखा पट्टावलि, प्रकाशन वर्ष वि.सं. 1972 |
अनुपलब्ध |
64 |
पद्मसागर |
वि. सं. 1824 में स्व. |
पद्मसागरजी निर्वाण रास, रचना- वि.सं. 1824 |
पद्मसागरजी निर्वाण रास, रचना- वि.सं. 1824 |
65 |
सुज्ञानसागर |
वि. सं. 1817, 1819, 1824 रास पद्माकर- पद्मसागर निर्वाण रासवि. सं. 1838 में स्व. |
श्रीसुखसागर गुरुगीता तथा तपागच्छे सागरशाखा पट्टावलि, प्रकाशन वर्ष- वि.सं.1972 |
पद्मसागरजी निर्वाण रास, रचना- वि.सं. 1824 |
66 |
सरूपसागर |
वि. सं. 1866 में स्व. |
श्रीसुखसागर गुरुगीता तथा तपागच्छे सागरशाखा पट्टावलि, प्रकाशन वर्ष- वि.सं.1972 |
पुस्तक- जैन ऐतिहासिक रासमाला, प्रकाशन वर्ष- 1969 |
67 |
ज्ञानसागर |
वि.सं.1887 में स्व. |
श्रीसुखसागर गुरुगीता तथा तपागच्छे सागरशाखा पट्टावलि, प्रकाशन वर्ष- वि.सं.1972 |
पुस्तक- जैन ऐतिहासिक रासमाला, पृ.13, प्रकाशन वर्ष- वि.सं. 1969 |
68 |
मयासागर |
वि.सं. 1851 में कालिकाचार्य की कथा का लेखन किया. |
कालिकाचार्य कथा की कोबा ज्ञानमंदिर स्थित हस्तप्रत नं. 9684, लेखन वर्ष-1851. |
कालिकाचार्य कथा की कोबा ज्ञानमंदिर स्थित हस्तप्रत नं. 9684, लेखन वर्ष-1851. |
69 |
नेमसागर |
वि.सं.1907-1913 तक पट्टधर थे |
श्रीसुखसागर गुरुगीता तथा तपागच्छे सागरशाखा पट्टावलि, प्रकाशन वर्ष- वि.सं.1972 |
श्रीसुखसागर गुरुगीता तथा तपागच्छे सागरशाखा पट्टावलि, प्रकाशन वर्ष- वि.सं.1972 |
70 |
रविसागर |
वि. सं. 1913-1954 तक पट्टधर थे |
श्रीसुखसागर गुरुगीता तथा तपागच्छे सागरशाखा पट्टावलि, प्रकाशन वर्ष- वि.सं.1972 |
श्रीसुखसागर गुरुगीता तथा तपागच्छे सागरशाखा पट्टावलि, प्रकाशन वर्ष- वि.सं.1972त |
71 |
सुखसागर |
वि.सं. 1943 में दीक्षा ली. |
श्रीसुखसागर गुरुगीता तथा तपागच्छे सागरशाखा पट्टावलि, प्रकाशन वर्ष- वि.सं.1972 |
पुस्तक- जैन रासमाळा, पृ.13, प्रकाशन वर्ष- वि.सं. 1969 |
72 |
बुद्धिसागरसूरि |
वि. सं. 1969 में पट्टधरपदारूढ हुए |
श्रीसुखसागर गुरुगीता तथा तपागच्छे सागरशाखा पट्टावलि, प्रकाशन वर्ष- वि.सं.1972 |
श्रीसुखसागर गुरुगीता तथा तपागच्छे सागरशाखा पट्टावलि, प्रकाशन वर्ष- वि.सं.1972 |
73 |
कीर्तिसागरसूरि |
वि. सं. 2026 मे स्व. |
पुस्तक- सागरना स्मरण तीर्थे, प्रकाशन वर्ष- वि.सं.2047 |
पुस्तक- सागरना स्मरण तीर्थे, प्रकाशन वर्ष- वि.सं.2047 |
74 |
जितेन्द्रसागर |
वि.सं. 1994 में कैलाससागरसूरि को दीक्षा प्रदान |
पुस्तक- आतमज्ञानी श्रमण कहावे, प्रकाशन वर्ष- 2048 |
पुस्तक- आतमज्ञानी श्रमण कहावे, प्रकाशन वर्ष- वि.सं. 2048 |
75 |
कैलाससागरसूरि |
वि.सं.2041 में स्व. |
पुस्तक- आतमज्ञानी श्रमण कहावे, प्रकाशन वर्ष- 2048 |
पुस्तक- आतमज्ञानी श्रमण कहावे, प्रकाशन वर्ष- वि.सं. 2048 |
76 |
कल्याणसागरसूरि |
वि.सं.1954 में पद्मसागरसूरि को दीक्षा प्रदान |
पुस्तक- जिनशासनना समर्थ उन्नायक आचार्य श्री पद्मसागरसूरि, प्रकाशन वर्ष- वि.सं. 2065 |
पुस्तक- जिनशासनना समर्थ उन्नायक आचार्य श्री पद्मसागरसूरि, प्रकाशन वर्ष- वि.सं. 2065 |
77 |
पद्मसागरसूरि (राष्ट्रसंत) |
वि.सं. 1992 में जन्म, वि. सं. 2080 में विद्यमान है. |
वर्तमान में विद्यमान |
वर्तमान में विद्यमान |
78 |
अजयसागरसूरि |
वि. सं. 2020 में जन्म, (वि. सं. 2080 में विद्यमान है.) |
वर्तमान में विद्यमान |
वर्तमान में विद्यमान |
—————————–
संदर्भसूची