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अज्ञातकृत धर्म आराधना सज्झाय मुनि वंदनरुचिविजय (पू. सिद्धिसूरि(बापजी)म.सा. समुदाय)

कृति परिचय

जिनशासनमां श्रुतज्ञान ४ अनुयोगमां वहेंचायेलुं छे. (१) द्रव्यानुयोग (२) गणितानुयोग (३) चरणकरणानुयोग (४) कथानुयोग। आ दरेक सामान्यजनने समजवा बहु अघरा छे। एवा आ अघरा विषयने पण संक्षिप्तमां सरळ रीते बहुलतया गुजराती भाषामां समजावे ते सज्झाय। तेवी ज एक धर्मना स्वरूपने बतावती अज्ञात मुनिपुङ्गव द्वारा निर्मित कृति एटले के “धर्म आराधना सज्झाय”। कृतिना प्रारंभमां ज जणाव्युं छे के धरम धरम तो घणा कहे छे पण खरो धर्म तो केवळज्ञानीओए दयामां कह्यो छे, माटे सहु छ काय जीवोनी रक्षा करवा पूर्वक धर्मनी आराधना करो।

प्रस्तुत सज्झायमां प्राणातिपातादि विरमण व्रतो अने छट्ठा रात्रिभोजन त्यागना उपदेशने स्थान अपायुं छे। प्राणातिपातविरमण व्रतने विषे मेघकुमार, गजसुकुमाल, धर्मरुचि अणगार जेवानां दृष्टांत दर्शाव्यां छे। त्यार बाद सत् नी शुं ताकात छे एम जणाववा द्वारा मृषावादने कहीने अदत्तादान व्रतमां अंबड श्रावकना ७०० शिष्योनी वात कही छे। मैथुनविरमण व्रतनी महत्ता अने दुष्करता दर्शाववामां पण कंई बाकी नथी राख्युं। परिग्रह परिमाण व्रतने १८ पापस्थानकमां मोटो दोष छे एम प्ररूपणा करीने विस्तृत वर्णन कर्युं छे। छट्ठा क्रमे रात्रिभोजननी भयानकता पण असरदार रीते वर्णवी छे। आम धर्मना मुख्य ६ व्रतने दर्शावी निस्पृही कर्ताए पोतानो “सेवक” तरीके उल्लेख करी कृतिनुं समापन कर्युं छे। कृतिमां रचना वर्ष आदि कोई उल्लख नथी । भव्यजीवो आ धर्मना रहस्यने समजी मोक्षद्वारने प्राप्त करे ए ज अभिलाषा।

सा. अहोभावरतिश्रीजी म.सा.ए आनुं लिप्यंतर करेल छे, तेमनी श्रुतभक्तिनी अनुमोदना.

प्रत परिचय

आ कृतिनुं संपादन आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिरनी ३ प्रतोना आधारे थयेल छे। तेमनी श्रुतभक्तिनी खूब खूब अनुमोदना…

नं. १- ४७८५४ आने आदर्श प्रत तरीके राखीने लिप्यंतर करेल छे। प्रतना अक्षरो विगेरे सुंदर छे। प्रतनुं लेखन श्री फतेचंदजीना शिष्य माणकचंदजी द्वारा जावद नगरमां वि.सं. १८८१ आषाढ वद ५ बुधवारना दिवसे थयेल छे। आ प्रतमां अन्य पण २ कृतिओ लखायेल छे।

नं. २- ५१९८० पाठांतर तरीके उपयोग करेल छे, जेनी संज्ञा K-1 राखेल छे।

नं. ३- ३८०९२ पाठांतर तरीके उपयोग करेल छे, जेनी संज्ञा K-2 राखेल छे।

लहियाए आधा ‘र्’ नी जग्याए क्यांक ‘रृ’ नो प्रयोग कर्यो छे, यथा ‘म्र’ नी जग्याए ‘मृ’, ‘न्र’ नी जग्याए ‘नृ’ आनुं पण शुद्ध स्वरूप मर, नर आदि थाय छे. नृग-न्रग-नरग-नरक आदि समझवुं।

संपादनमां क्यांय पण क्षति जणाय तो विद्वज्जन अमारुं ध्यान आकृष्ट करे तेवी विनंती।

 ।। श्री वितरागाय नमः।।

धर्म धर्म [1]बौला कहे ए, धर्म दयामै जाण कै।
[2]केवलज्ञानी ईम कह्यौ ए, म करो छ कायानी हाण कै।।१।।
धर्म आराधीए ऐ…[आंकणी]

गजभव सुसल्यौ राखीयौ ए, करूणा कीधी अपार कै।
मैग(मेघ)कुंवर नाम दीयौ ऐ, श्रैणक सु[त] अवतार कै ।।२।। धर्म…

गजसुकमाल मूनीसरू ए, कीयौ छ-कायासुं नैह कै।।
[3]दयाने कारणै ए, त्यागी दीधी देह कै ।।३।। धर्म…

[4]मासखमणने पारणै ऐ, धर्मरूची अणगार कै।
कीडीयारी कूरणा(करूणा) करी ऐ, लीयौ तूबानौ [5]आ[हा]र कै ।।४।। धर्म…

मगन हौइ रया ग्यानमे ऐ, समतारस रह्या जूल कै।
दयानै कारणै ऐ, नृभव कीधो [6]सूल कै ।।५।। धर्म…

सतवंताना [7]साचा फले ऐ, सतसू न बाधे बेर के।
साता सुख उपजै ऐ, सतसु उतरे जैर कै ।।६।। धर्म…

साचासु [8]स[य]न हूवै घणा ऐ, सतसू न लागै दोष कै।
साता सुख उपजै ए, सतसू पामै मौक्ष कै ।।७।। धर्म…

साहीब रीजै साचसू ऐ, [9]सतसु पंड(डि)त रीज कै ।
गौल ठंडा पडै ऐ, सतसू उतरे धीज के ।।८।। धर्म…[10]

[11]अंबडना सीष सातसै ऐ,[12]कीयो- ऽदया(त्त)सू नैह कै ।
ऊन्हालै जल विना ऐ, त्यागि(गी) दीधी दैह कै ।।९।। धर्म…

गरीक्ष्म रीते गंगा-तटे ऐ, बाजै लूयानी[13]सौक कै।
संथारो 14[14]जीणी कीयौ ऐ, गया पांचमे देवलोक कै ।।१०।। धर्म…

चौथौ वृत छे मौटकौ ए, जेहनी कही नव वाड कै।
कैवलग्यानी इम कह्यौ ऐ, दुकर दुकरकार कै ।।११।। धर्म…

कायरसै ती कीम पलै ऐ, किम रहसी मन ठाम कै।
वृत छे मौटको ऐ,[15]सुरानै सौगम काम कै ।।१२।। धर्म…

वाड सहीत सूद्ध पालसी ऐ, न पडै वातकू पेच कै।
वाड जै लौपसी ए, हौसी गूडीदा पेच कै ।।१३।। धर्म…

वृत थकी पडीया पछे ऐ, कारी न लागे काय कै।

[16]कदाक पाछो मंडे ऐ,[17]नवा देव नवि माय कै ।।१४।। धर्म…

पडीया पडीया जै पडी गया ए, हौइ गया चकना चूर कै।
दयावंत उगर्या ऐ, साहमा मंडिया सूर कै ।।१५।। धर्म…

पाप अठारै जिण कह्या ऐ,[18]जीमें प्रीगृहौ मौटौ दौष कै ।

[19]एहने छाड्या पीछै ऐ, पामे मौखदुवार कै ।।१६।। धर्म…[20]

इण प्रीग्रा(परिग्रह)ने कारणै ऐ, देशविदेसै जाय कै।
धन जीके मानवि ए, छती ने गया छटकाय कै ।।१७।।
प्रीग्रो एहवो ए… [आंकणी]

ईण प्रीग्राने कारणै ऐ, लडै फौजा मे जाय कै।
अमोलख देहने ऐ, दुसमन नाखै ढाय कै ।।१८।। प्री०…

ईण प्रीग्राने कारणै ऐ, जंखे आधी रात कै।
दगो खेले गणौ ऐ, गाले वाला की गात कै ।।१९।। प्री०…

ईण प्रीग्रानै कारणै ऐ, जांग गले दे घाव कै।
आफू पासी लै मरे ए, करे खूराब खूराब कै ।।२०।। प्री०…

ईण प्रीग्रा माहे अवगूण गणा ऐ, कहीतां कह्यौ न जाय कै।
कैवली या ईम कह्यौ ऐ, तीन मनोरथ माय कै ।।२१।। प्री०…

वडा वडा जौगी जती ऐ, पड्या प्रीग्रानी लार कै।
वटल हुवा गणा ऐ, भव-भव हौसी खूराब कै ।।२२।। प्री०…

भगत सन्यासी सेवडा ए, पड्या प्रीग्रा की लार कै।
वटल हुवा गणा ए, जासी[21]न[र]ग दुवार कै ।।२३।। प्री०..

इण प्रीग्रा माहे अवगूण गणा ए, वेचेसू लीयौ धान कै।
धन का लौभीया ऐ, भव भव हौसी खूराब कै ।।२४।। प्री०…

कौणीक ने चैडा तणी ए, सूत्र सीधांते साख कै।
मूवा छे अती गणा ऐ, एक कौड असी लाख कै ।।२५।। प्री०…

इण प्रीग्रा माहे अवगूण गणा ए, करे छे अनरथ मूल कै।

[22]कामण टीमण करे ए, नाखे ग्रभ गलाय कै ।।२६।। प्री०…

इण प्रीग्रा माहे अवगूण गणा ऐ, पूरा कया न जाय कै।
चतुर कौइ पूछज्यौ ऐ, करज्यौ एहनौ त्याग कै ।।२७।। प्री०…

छठौ वृत छै[23]मौटकौ ऐ, रयणीभौजन प्रीहार कै।
करौ कौइ मानवी ए, ज्यू उतरौगा भवपार कै ।।२८।। प्री०…

रयणीभौजन कौइ जी ण करौ ए, आथमताइ सूर कै।
कैवलीया इम कयो ए, साधपणाथी दूर कै ।।२९।।[24]प्री०…

रयणी भोजन करता थका ऐ, माछर पडे आय कै।
कीडी ने कूथवा ऐ, रैणीसु जतनाय कै ।।३०।। प्री०…

रयणी भौजन करतां थका ऐ,[25]माकडी सूरला(?) खाय कै।
गलत कौड्यौ हौवे ए, गलत थकी[26]मृ(मर) जाय कै ।।३१।। प्री०…

रयणी भोजन करतां थका ऐ, जासी[27]नृ(नर)ग दुवार कै।
पीडा पामे अती गणी ऐ, कहीता न आवे [28]केम कै ।।३२।। धर्म आराधीए ऐ

रयणी भोजन करतां थका ऐ, हौसी पछाताप कै।
पछे काइ न हुवै ए, हारे मानवभव सार कै ।।३३।। धर्म…

रयणी भौजन[29]कोई जी ण करो ए, पायो [30]नृ अवतार कै।
उतम नर तप करौ ऐ, ज्यू उतरौ भवपार कै ।।३४।।

भूख [31]त्रषा अती पीडवे ऐ, नीकल जावे प्राण कै।
रेणी [32]भौजन नवी करै ऐ, न गाले मूख मे अन कै ।।३५।। धर्म…

यौ प्रीग्रौ जीणी परिहर्यो ऐ, ते [33]हौवे मोख दुवार कै।
करजौडी सेवक भणे ऐ, आवागमण नीवार कै ।।३६।। धर्म…[34]

॥ इति सझाय संपूर्ण॥

इति श्री धर्म आराधना सज्झाय संपूर्ण लिखत ऋषि उदयभाणम्। आर्याजी वीनुजी पठनार्थं।

o O o

[1] 1. वहुल k-2,

[2] 2. केवलीया K-1,2,

[3] 3. दयावंत ते उगर्या K-1, k-2,

[4] 4. k-2मां ३ गाथा विशेष छे-

खमता धर्म विचारने ए, टाल्यौ आत्मदोष। ते देह पछै पडीए, पहिली पहोता मोख के ।।४।।

डाकण साकण भूतडा ए, जख राखस महा घोर। दयावंत उपरे ए, कोइ न लागे जोर ।।५।।

इंद्र नरेन्द्रने जोतषीए, रहे ज किंकर भूत। सु[रनर से]वा करे ए, ए दयाधर्मना सूत के ।।६।।,

[5] 5. अहार K-1, आहार K-2 खंडित छे,

[6] 6. सार K-1,

[7] 7. वाचा K -1 , K -2,

[8]  8. सयण K-1, सैण K -2, सन K,

[9] 9. स सभसु पामे रीझ के K-1, सत्यसुं पंडित रीझ के k-2,

[10] 10. k-2मां विशेष गाथा-

सिषसु गुरु राजी हुवे ए, इण साच तणें प्रताप। अलगो परिहरो ए, असत्य वचन महापाप ।।१२।।

तिण कारण इण साचसुं ए, राखो अधिको रंग। लाभ कह्यो घणो ए, ग्यानी दसमे अंग ।।१३।।,

[11] 11. अमड K-1, K-2,

 

[12] 12. कियो अदतनो नेम क K-1, कियो अदत को नेम के K-2,

 

[13] 13. झाल K-1, k-2,

[14] 14. सीझीयो ए K-2, K-1,

[15] 15. सुरा हंदो काम K-2, सुरानइ सुगम होय क(के) K-1,

[16] 16. कदाचि K-2, 1,

[17] 17. तो नवो K-2,

[18] 18. जिम परिग्रहो k-1, जीमें परिग्रह k-2,

[19] 19. इननइ छाड्या विना ए, पाम न सकइ मोख क k1, इणने छोड्या विना ए, पोहची न सके मोख के K-2,

[20] 20. गाथा नं. १७ थी २० K-1, 2 मां नथी तथा २२ थी २७ K-2 मां नथी,

 

[21] 21. नरक K-1,

[22] 22. कामणटीमण नाखइ छइ गरभ गलाय क K-1,

[23] 23. रयण  को ए, ज्युं भाजन को प्रीहार के K-1,

[24] 24. गाथा क्र. २९मी K-2मां नथी,

[25] 25. माकडी कूकडी खाइ कि K-1, माकडी कूकडी खाय k-2,

[26] 26. मर k-1, k-2,

[27] 27. नरक k-1, आ गाथा ३२मी k-2मां नथी,

[28] 28. पार K-1

 

[29] 29. करो मति ए, K-2

[30] 30. नर k-1, k-2,

[31] 31. त्रीषा k-1, यह गाथा क्र. ३५ k-2 में नहीं है,

[32] 32. पाणी वीना ए, न घालै मुखमाहि किं k-1,

[33] 33. पहोचे k-1, यह गाथा क्र. ३६ k-2 में नहीं है,

[34] 34. नीचे आपेली तमाम गाथाओ अने पूर्णाहुति पुष्पिका k-2मां प्राप्त थाय छे-

पांच महाव्रत आदरो ए, पालो पंच आचार। बारे भेदे तप करो ए, सरद्धा सैठी धार ।।२७।। ध०…

बारे व्रत श्रावक तणा ए, आदरो समकित सार। नव ततव चित्त धरो ए, जो उतर्या चाहो पार ।।२८।। ध०…

सूत्र कुराण पुराण में ए, कह्यो दयाधर्म सार। साचे मन सरदहजो ए, जुं पामो भवपार के ।।२९।। ध०…

धर्म धर्म सहु को कहे ए, धर्मनो नाम छे मीठ। दयाधर्म आदरो ए कर्म हुवें छीट छींट ।।३०।। ध०…

दया थकी दोलत हुवे ए, सीझे सघला काम के। दसमें अंगै कह्या ए, साद्ध(श्राद्ध?) दया का नाम ।।३१।। ध०…