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सुमतिरंग मुनिकृत (जिन) कवित्त चौवीसी गणि सुयशचंद्र-सुजसचंद्रविजयजी

हिंदी भाषामां रचायेली प्रस्तुत कृति मूळे चोवीस तीर्थंकरोने आश्रयीने करायेली अद्भुत स्तवना छे। कृतिकार सुमतिरंगे अहीं कवित्त नामना काव्य प्रकारमां परमात्माना विविध गुणवैभवने सुंदर रीते आलेख्यो छे। जोके अहीं मात्र गुणोनी ज स्तवना छे तेवुं नथी। कविए अहीं प्रत्येक पद्यमां प्रभुने केंद्रमां राखी क्यांक प्रभुना स्वामीपणानी, तो क्यांक कर्मसेना साथेना संग्रामनी, क्यांक भवभ्रमणनी, तो क्यांक प्रभुवडे जीवने अपाती समृद्धिनी, क्यांक प्रभुना प्रभावनी, तो क्यांक प्रभुना उपदेशनी इत्यादि विगतो सविस्तार आलेखी छे।

तेमां’य कृतिकारे छंद तथा प्रासनी अनुकूळता मुजब प्रयोजेला शब्दो, तेनां रूपो, क्रियापदो तथा तेना प्रयोगो कृतिने वधु रसाळ बनावे छे। हा ! एटलुं य खरुं के कृतिकारना तेवा (आपणा माटे) अजाण्या शब्दादि प्रयोगोने केटलेक ठेकाणे कृति समजवी घणी अघरी थई पडे छे। विशेषे आवुं पाच काच, करक, डर-भर, अंधारि, किरमाल, तुंबक, कोट, उट जेवा शब्दोमां, तो आगम अरथ अंधारि आण अंकुस करि मोडिसि (पद्य१०/पंक्ति४), कुमति….. हथीयारघर (प.१८ संपूर्ण), गज मृगराज गमति खल (प.२०/पं.२), पंचमगति मति पाज (प.२०/पं.२), मान मदनइ तीयां मलीया (प.२२/पं.२), बयल हूया था बलीया (प.२२/पं.३), जात मिलइ सहु जगत (प.२३/पं.२), जगत जुडत तो जात (प.२४/पं.४), कमल-नयन सुख सयण वयण (प.२५/पं.२), दुक्खतम अरण (प.२५/पं.५) जेवा वाक्योमां लागे छे। खास विद्वानो आ अस्पष्ट पाठोना संदर्भे अमारुं ध्यान दोरे एवी आशा छे।

कृतिना पद्योमां वर्णवायेल पदार्थो अनुक्रमे नीचे मुजब छे

पद्य क्रप्रभु नाम स्मरणना महिमानी, २. कर्मसेना साथेना प्रभुना संग्रामनी, ३. चिंतामणी रत्नसमान प्रभु पासे शुं मागवुं तेनी, ४. अन्य देवोनी तुलनामां जिनेश्वरदेवना स्वरूपनी, ५. अनंता भवभ्रमणो पछी प्रभुनुं दर्शन मळतां प्रगटता भावोनी, ६. प्रभु अद्वितीय स्वामी शा माटे छे तेनी, ७. केवी रीते फसायेलो जीव प्रभु सेवाथी कर्म बंधन हटावशे तेनी, ८. प्रभु केवा छे तेनी, ९. इंद्रादि देवो द्वारा सेवायेला प्रभु पासे भक्त शुं मांगे तेनी, १०. प्रभुदर्शने स्फुरेला मनने जीतवाना उपायनी, ११. केवा स्वामीनुं स्मरण करवुं जोइए तेनी, १२. मार्ग पर चड्या पूर्वेनी जीवनी अवस्थानी, १३. प्रभु विमलनाथ कई रीते निर्मळ थया तेनी, १४. प्रभुना गुणोनी स्तवना करवा समर्थ कोण छे तेनी, १५. प्रभुना विशिष्ट गुणोनी, १६. शांतिनाथ प्रभु केवा छे तेनी, १७. प्रभुने कराती अरजीनी, १८. कर्मशत्रुने जीतवामां प्रभु कई रीते मदद करे छे तेनी, १९. मल्लिनाथ प्रभुए पूर्वभवना मित्रोने कई रीते विषय-विरक्त कर्या तेनी, २०. प्रभुना सामर्थ्यनी, २१. प्रभुना चरणे नमतां मळती समृद्धिनी, २२. देवोने जीतनार कामदेवने प्रभुए कइ रीते जीत्यो तेनी, २३. प्रभुना त्रिभुवनपतिपणानी, २३. प्रभुना प्रभावनी, २४. केवा वीर प्रभुने चरणे वंदना छे तेनी।

कर्ता परिचय

कृतिना अंत पद्यमां नोंध्या मुजब कृतिकार मुनि सुमतिरंग खरतरगच्छनी परंपराना जिनरत्नसूरिजीना शिष्य वाचक हर्षकल्लोल, तेमना शिष्य चंद्रकीर्ति गणिना शिष्य छे। तेओए प्रस्तुत कृति सिवाय प्रबोध चिंतामणि रास, योगशास्त्र भाषा, हरिकेशी साधु संधि, जंबूस्वामी चोपाई, जिनमालिका जेवी घणी कृतिओनी रचना करी छे। प्रस्तुत कृतिनी रचनाशैली जोतां कृतिकारश्री एक निवडेल कवि जणाय छे। तेमनो शब्दभंडोळ, शब्दो प्रयोजवानी पद्धति तथा लालित्यसभर वाक्यरचना कृतिने वधु रसाळ बनावे छे। खास कृतिकारश्रीना ग्रंथो पर वधु अभ्यास कराय तो तेमना जीवन विशे तेमज तत्कालीन भाषाना प्रयोगादि विशे विशेष माहिती मेळवी शकाय।

प्रत परिचय

प्रस्तुत कृतिनुं संपादन २ हस्तप्रतोने आधारे करायुं छे। जेमांनी कृतिनी आदर्श प्रत आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर कोबाना स्केन विभाग अंतर्गत रहेल पं. श्रीभद्रंकरविजयजी ज्ञानभंडार (डीसा)ना गुटका विभागनी छे, ज्यारे पाठांतरनी प्रत श्रीलब्धिसूरिजी ज्ञानमंदिर(दादर)ना हस्तप्रत विभागनी छे। गुटकानी लेखनशैली जोता तेनुं लेखन अनुमाने १७मी सदीमां थयेलुं होय, दादर भंडारनी प्रत करतां ते वधु प्राचीन छे। जोके २-३ अशुद्धिने बाद करता बन्ने प्रतोनुं लेखन एक सरखुं ज लागे छे। खास संपादनार्थे प्रतोनी नकल आपवा बदल त्रणेय ज्ञानभंडारोना व्यवस्थापकोनो खूब-खूब आभार।

(जिनकवित्त चौवीसी

।। ।। श्री परमात्माने नमः ।।

आदिकरण अरिहंत संत मनिसूद्ध(ध)इ ध्यावउ,
करम भरम भव-सरम चरम गति [1]छ(झ)ति सु(सू)ध पावउ ।
सुर नर सेवइ इंद चंद राका जिम सीतल,
सोवन लहीय सुचंग रंग रीझइ कुण पीतल ।
जगनाथ साथ अविचल ग्रहउ, दूरि[त] हरण जामण मरण,
भणि सुमतिरंग सज्जन भणी, सु ऋषभ नाम अहिनिसि ग्रहण ।।१।।

प्रकृति अट्ठावन्न-सउ प्रबल सबल सेना [2]सिणगारी,
क्रोध ग्रही करवाल करम-राजा अहंकारी ।
राग द्वेष पायक जरह मिथ्यातनु कीनउ,
मदनतणउ सिर टोप१० कुबुधि(द्धि) सेनाधिप लीनउ ।
तप ग्यान ध्यान सुभ लेस [3]बलि, करम-कटक दह दिसि गम्यउ११ ।
तिणि[4] नाम अजितसामीतणउ, सो सुमतिरंग चितमइ रम्यउ ।।२।।

श्रीसंभव सुखकार सार समरण जगि साचउ,
पांमी निरमल 5[5]पां(पा)च काच१२ काचइ मत राचउ१३ ।
जाचउ१४ जिनवर एह नेह धरि प्रह सम निरखउं,
नव निधि हुवइ जसु नामि [6]सामि मुझ सुरतर सरिखउ ।
जितारी तात जांणइ जगत, सेना-राणी-सुत रतन ।
वीनती सुमति इण विधि करइ, आपि आपि अपणओ(उ?)१५ वतन ।।३।।

दुनीयामइ बहु देव सेव सहु कोई सारइ,
माया मच्छर१६ मोह लोह लीधा१७ रहइ लारइ१८ ।
रीस रोस वलि दोस सोस१९ तिण सेवइ सूधा२०,
बलि-बाकुल बहु रूप धूप-धाणइ२१ रहइ लूधा२२ ।
जग-तात मात जांण्यउ जिणइ, अभिनंदन चंदन सरिस ।
सब आल जाल पंपाल२३ तजि, ध्यान एक प्रभु हूं धरिस ।।४।।

भमीयउ हूं भवमांहि दुक्ख दीठां कहुं केता२४,
जेता जांणइ जीव चीत पिण नावइ तेता२५ ।
चउरासी लख जाति भांति भांतइ२६ करि भमीयउ,
रमीयउ रमणी रंग अफल मानवभव गमीयउ ।
जग-मीत चीत आयउ हिवइ, जनम सफल करिस्यउं२७ मुदा ।
7[7]कहइ [सु]मति सुमति अब ऊपनी, सुमतिनाथ सेविस सदा ।।५।।

सेव्या बहुला सामि काम पणि न सर्यउ२८ कोई,
काचउ२९ केम कथीर३० होड३१ क्युं रूपा होई ।
जगबंधव जिनराज लाज-राखण३२ हिव लाधउ,
सेवउ सूधइ भाव सिद्धमारग पिण साधउ ।
ए ईस सीस३३ राखउ सकल, मन-कामित चिंतामणी ।
कहइ सुमतिरंग कलि कलपतरु, पदमप्रभ प्रणमिसि३४ धणी ।।६।।

फोकट पडीयउ फंद३५ मंद मो मति करि मुसीयउ३६,
हसीयउ धसीयउ३७ हुंसि३८ रूप रामा-रसि रसीयउ३९ ।
वसीयउ भोग-विलास पास इण माहइ पडीयउ,
जडीयउ४० मोह-जंजीर निवड४१ बंधन करि नडीयउ४२ ।
सुपास पास-तोडण४३ सुण्यउ, चरण-सेव करिस्युं हठी ।
हिव सबल सामि कीधउ सुमति, करम तोडि नाखिसि कठी४४ ।।७।।

सीतल गुण सुविख्यात भविक-पंकज पडिबोहि(ह)क४५,
चित(त्त)-चकोर सुखकार सांत दांतादिक४६ सोहक ।
ज्ञान-अमीय-भंडार सामि तिहुं भवननां४७ दीपक,
काम क्रोध मद लोभ राग द्वेषादिक जीपक ।
8[8]चारित्त-कलाधारक चतुर, मुगतिमहु(ह)ल अनुपम लह्यउ ।
भणि सुमति पाप-तम-भयहरण, चंद्रप्रभ इण परि कह्यउ ।।८।।

जगनायक जिनचंद इंद सेवइ आनंदइ,
किन्नर सुर नर कोडि जोडि कर जगपति वंदइ ।
सुविधिनाथ सिव-साथ आथ४८ अविचल आपीजइ,
मया दया मुझ करी थिरी(र)४९ सेवक थापीजइ ।
सुग्रीव-सुतन जग-सोहकर, राति दिवस राखिसि हृदइ ।
एहु सरण-करण५० जामण मरण, सुमतिरंग इण परि वदइ ।।९।।

मनमथ मत्त गयंद छाक५१ आठे मद छायउ५२,
[9]ज(पा)यउ नही सु(सू)ध पंथ एक आलोच५३ उपायउ५४ ।
लंगर५५ चारित लाइ वयण चरखी५६ विचि छोडिसि,
आगम-अरथ अंधारि५७ आण अंकुस करि मोडिसि५८ ।
कहइ सुमति सेना सजसि, नरक करक५९ डर-भर६० परखि ।
सब दूठ झूठ छोड्यउ सकल, सीतलजिन नयणे निरखि ।।१०।।

समरीजइ सो सामि सुख सेवका समप्पइ६१,
समरीजइ सो सामि आथि अविचल घरि अप्पइ६२ ।
समरीजइ सो सामि दलिद६३ भय दूरि निवारइ,
समरीजइ सो सामि उदधि भव पार ऊतारइ ।
श्रेयांस सामि संकट-हरण त्रिकरण सुद्धइं हूं तविस६४ ।
कहइ सुमतिरंग आणंदभरि, मुगति-रमणि हिव हूं वरिस ।।११।।

जपीया बहुला जाप पाप पूरव-कृत पाया,
काया-माया काजिं लाज छंडे मन लाया६५ ।
ध्याया धरि धरि ध्यान गान बहुविधि(ध) गुण गाया,
10[10]भाख्या६६ मिथ्या-भरमि मरमि६७ इण मीठी माया ।
आयार६८ छा(छां)डि पडीयइ ऊमगि६९ वासपूज्य वीसारीयउ७०,
जिनराज जाप जपस्युं युगति७१भाग७२ माग७३ हिव आवीयउ ।।१२।।

उपसम धरि असमान७४ ध्यान सुभ चित्तमइ धारे,
क्रोध कपट दल दबटि७५ मोह माया मद छारे७६ ।
चारितसुं चित्त लाइ भाइ सु(सू)ध भावन भावे,
चढि गुणठाणइ चतुर लब्धि तिणिसुं७७ लय७८ लावे ।
तजि राग दोस भजि ग्यान-गुण, लोक-पंथ तिणसुं जूया७९ ।
कहि सुमतिरंग कविजन सुणउ, विमल८० विमल इणि परि हूया ।।१३।।

कुण पामइ कहउ पार कोडि रसना८१ करि कहीयइ,
लहीयइ सागर आयु गणिम८२ तो पिण गुण गहीयइ८३ ।
सुरगुरु सरिखा देव तासु पिण अंत न पायउ,
बीजा नर कुण मात८४ भाव गुण तवना आयउ ।
सिंहसेन तात जिनवरतणउ, सुजसा-सुत ल्यउं८५ भामणा८६ ।
कहि सुमति साध कलियुग प्रगट्ट, गुण अनंत अनंतहतणा ।।१४।।

लायक नायक लद्ध अगम८७ गुरु अकल अगोचर,
अव(वि)नासी अन-रूप८८ अतुलबल सगुण-सरोवर ।
भव-भावठि-भय-गमण रमण सिवरमणी सुंदर,
दरसणि नासइ दुक्ख जेम अहि८९ देखत ऊंदर ।
सब देव सेव सारइ सुपरि९०धरमनाथ अन्नाथ-धर९१ ।
कहइ सुमतिरंग सेव्यां सकल, सुखसंपति आणंदकर ।।१५।।

शांतिनाथ सुख-करण सकल सुखसंपति ऊपावण९२,
सेव्यां सिवसुख दीयण९३ पाप परतक्षि९४ विहंडण९५ ।
मोह-महा-दल हणण९६ वली गर्भवास निवारण,
सेवक सहु दुख-हरण घरे घण ऋद्धि वधारण९७ ।
संसार-जलधि तारण-तरण, भयभंजण जामण मरण ।
कहइ सुमतिरंग असरण-सरण, तूं शांति नाम जपि रे रसण ! ।।१६।।

करुणाकर९८ श्रीकुंथु सुपरि सेवकां सधारउ९९,
जामण मरण जंजाल तुरत भवसायर तारउ ।
करमतणउ सिर करज१०० अरज एही अवधारउ,
विषय-विनोद-विटंब१०१ विश्वपति वारउ वारउ ।
त्रिलोकतात वीनति सुणउ, हूं खूनी१०२ पगि पगि खरउ ।
कहइ सुमतिरंग करतारसुं, दास वास१०३ अपणउ करउ ।।१७।।

कुमति दमण किरमाल१०४ युगति जम-दाढ१०५ जिणेसर,

कुंत१०६ करिसि१०७ करतार सिद्धसी१०८ गणि साधिसि१०९ सर ।
भालउ करि भगवंत तुंबक११० त्रिभुवनपति तक्के१११,
अंगरखी११२ अरिहंत आठ अरि रहइ अटक्के११३ ।
पाखरे पवंग११४ परमेष्ट पिण, कोट११५ उट११६ त्रिकरण सुपर ।
क्रम-कटक११७ जीव जीपण११८ करइ तो, अर! अर११९ कर हथीयारधर ।।१८।।

पाली पूरव प्रीत रीत रूपक१२० जस राखे,
कंचण नारि कराय१२१ लाय धन बहुला लाखे१२२ ।
भोजन कवलां१२३ भरे करे दृष्टांत कायारउ१२४,
समझाया करि सान मान म करउ मायारउ ।
कारिमी असुचि काया कही, विषय थकी ते वारीया ।
भणि सुमतिरंग भगवंतजी, मल्लि मित्र इम तारीया ।।१९।।

मुनिसुव्रत महाराज आज कलिकालि अतुलबल,
सकल-देव-सिरताज गाज मृगराज गमति खल१२५ ।
लखविधि१२६ राखण लाज काज जिनराज करण-पर१२७,
पंचमगति-मति-पाज१२८ राज सिवराज दीयण वर ।
वड धीर वीर मोटी वडिम१२९, भाण जेम दीपइ भवण ।
कहइ सुमतिरंग वंछित-करण, वीसम जिण विण कहु कवण ।।२०।।

पुत्र लहइ परवीण१३० युवति भर-योवनवंती,
कंचण कूर१३१ कपूर महल१३२ परिमल महमंती१३३ ।
लछि१३४ लहइ लख कोडि जोडि कर जगपति चालइ,
हयवर गयवर हसम हुकम१३५ सहु कोई हालइ ।
विधि विधा१३६ वेस वागा१३७ वडिम, जण जण मुखि जस जंपजइ ।
नमिनाथ पाय नमतां थकां, सुख इता१३८ घर संपजइ ।।२१।।

ब्रह्मचारी वरीयाम१३९ काम१४० कुण कुण नही कलीया१४१,
इंद्र चंद्र नागेंद्र मान मदनइ तीयां१४२ मलीया१४३ ।
छलीया गलीया छयल१४४ बयल हूया था बलीया,
चलीया टलीया चित्त वित्त खोइ नहु वलीया ।
मनमत्थ१४५ सत्थ१४६ जीतउ मरद, नेमिनाथ निज बल करी ।
ब्रह्मचार सार सुमिता(सुमति)१४७ कहइ, युगति मुगति-वनिता वरी ।।२२।।

परता१४८-पूरणहार देव तिहु भवने दीपइ,
जात मिलइ सहु जगत नाम जसु पाप न छीपइ१४९ ।
धरामइ वड धीर एण सम अवर न दीसइ,
फलवधि(र्धि)मंडण पास पाप-दल परतखि पीसइ१५० ।
वामा-नंदन वखत१५१-वड, सेव करइ पय सत-फणी१५२ ।
कहइ सुमतिरंग कर जोडिनइ, तारि तारि तिहुयण-धणी ।।२३।।

कलि कलपतरु जांणि सजन-जन सुख संपूरण,
रोग सोग दुक्ख-दाह विघन-घन संकट चूरण ।
अडवडीया१५३– आधार सकल संसार सराहइ१५४,
जगत जुडइ तो जात एक चित्तइ आराहइ ।
जगदीस ईस ति(त्रि)भुवन-तिलक, कापडहेरइ दुक्खहर ।
सवि आस पास सफली करउ, कहइ सुमति इम जोडि कर ।।२३।।[11]*

कनक-वरण सुखकरण तरण भवजल-निधि तारण,
कमल-नयन सुख-सयण१५५ वयण१५६ सिवपुर-पथ कारण ।
अष्टकरम-मल-हरण धरण१५७ तिहूयणजन धारण,
सिद्धारथ-कुलरयण मयणदल-भंजण-वारण१५८ ।
असरण-सरण दुक्ख-तम-अरण१५९, मुगतिरमणि-संवर-वरण१६० ।
महावीर धीर गुणगण विमल, सो सुमतिरंग प्रणमति चरण ।।२४।।

श्रीजिनरतनसूरिंद गछ(च्छ) खरतर गुरु गर्जित,
दीपइ जिम दिनकार१६१ पाप-तम तप करि तर्जित१६२ ।
तास राजि जिन स्तवित१६३ कवित चउवीसी कीनी,
साखा वधती सुगुरु कि(की)त्तसूरीसरजीनी ।
वाचक्क(क) हरखकल्लोल वर, चंदकीरति गुरु गणिवरा ।
जिनराज युगति रंगइ भणइ, सुमतिरंग सवि सुखकरा ।।२५।।

।। इति श्रीकवित्त चउवीसी समाप्ता।।

शब्दार्थ

१. भवभ्रमणनी शरम, २. जल्दीथी, ३. चंद्र, ४. जन्म, ५. शणगारी (सज्ज करी), ६. तलवार, ७. सैन्य, ८. एक जातनुं बखतर, ९. कर्यो, १०. शिरस्त्राण, ११. चाल्यु गयुं, १२. ?, १३. आनंद पामो, १४. साचो, १५. पोतानुं, १६. अहंकार, १७. (थी) वशमां लेवायेला, १८. पाछळ, १९. खेद, चिंता, २०. पूरे पूरां, स्पष्ट, २१. धूपदानीमां (सुगंधमां?), २२. लुब्ध (मोहाएला), २३. प्रपंच, २४. केटला, २५. तेटला, २६. प्रकारे, २७. करीशुं, २८. सिद्ध थयुं, पूर्ण थयुं, २९. काच, ३०. सोनुं, ३१. शरत, ३२. राखनार, ३३. मस्तके, ३४. प्रणाम करीश, ३५. बंधन, ३६. लूंटायो, ३७. दोडी गयो, ३८. होंशथी, ३९. मुग्ध, ४०. बंधायो, ४१. गाढ, ४२. दुःखी थयो, ४३. बंधन तोडनार, ४४. कठिन, ४५. प्रतिबोध करनार, ४६. संयमी, ४७. भुवनना, ४८. संपत्ति, ४९. स्थिर, ५०. करवा योग्य, ५१. छाक-छकी जवुं, मदमस्त थवुं, नशो, ५२. व्याप्त थया छे, ५३. चिंतन, ५४. प्रगट्युं, ५५. वाहण थोभी राखवा जमीनमां भराय तेवुं वांका आंकडावाळुं साधन, ५६. सुकान फेरवानुं दोरडा बांधवानुं पैडुं,  ५७. ?, ५८. पाछो वाळीश, ५९. ?, ६०. ?, ६१. आपे छे, ६२. आपे छे, ६३. दारिद्र, ६४. स्तवना करीश, ६५. लाव्या(?), ६६. भावित थया, खुश थया(?), ६७. मर्ममां, ६८. आचार, ६९. उन्मार्ग पर, ७०. भूल्यो, ७१. युक्ति, ७२. भाग्य(थी?), ७३. मार्ग पर, ७४. अद्वितीय, ७५. दबावी, ७६. भस्म करे(?), ७७. तेनी साथे, ७८. एकतानता, ७९. जूदा, ८०. निर्मळ, ८१. जीभ, ८२. गणी शकाय तेवुं, ८३. ग्रहण करी शकीए, ८४. मात्र, ८५. लउं, ८६. ओवारणा, ८७. न जणाय तेवुं, ८८. रूपरहित, ८९. सर्प, ९०. सारी रीते, ९१. अनाथना आधार, ९२. उपजावनार,  ९३. देनार, ९४. प्रत्यक्ष, ९५. छेदनार, ९६. हणनार, ९७. वधारनार, ९८. करुणाना सागर, ९९. सहाय करो, १००. देवुं, १०१. दुख, १०२, पापी, १०३. स्थान, १०४. ?,  १०५. यमराजनी दाढा(?), १०६. भालो, १०७. करशे, १०८. ?, १०९. ताकशे, ११०. ?, १११. निशान लेशे, ११२. बख्तर, ११३. अटकीने, ११४. बख्तरादिथी सज्ज घोडा, ११५. ?, ११६. ?, ११७. कर्मरूपी सेना, ११८. जीतवानुं, ११९. ?, १२०. दृष्टांत(?), १२१. बनावी, १२२. लाखो (रूपीया) वडे, १२३. कोळियां, १२४. कायानो, १२५. ?, १२६. लाखो रीते(?), १२७. करवामां तत्पर, १२८. सेतु, १२९. मोटाई(?), १३०. प्रवीण, १३१. भात, १३२. महेल, १३३. मघमघे, १३४. लक्ष्मी, १३५. सैन्य, १३६. प्रकार, १३७. वस्त्रो, १३८. एटला, १३९. श्रेष्ठ (?), १४०. कामदेव, १४१. डूबाड्या, १४२. ?, १४३. मर्द्यां, १४४. रंगीला, १४५. कामदेव, १४६. शस्त्र, १४७. सुमति, १४८. परचा, १४९. स्पर्शे, १५०. चूरे, १५१. भाग्यथी मोटो, १५२. सात फणावाळो(सर्प), १५३. दुःखीजनोनां, १५४. वखाणे, १५५. ?, १५६. वचन, १५७. धरनार, १५८. ०हाथी, १५९. ०सूर्य, १६०. परणनार(?), १६१. सूर्य, १६२. तिरस्कार पामेल, १६३. स्तवना.

o O o

[1] 1. झति,

[2] 2. सिंगारी,

[3] 3. छलि,

[4] 4. तिण,

[5] 5. पाच,

[6] 6. स्वामि,

[7] 7. कहइ जुगति तुह्मारइ(?) हवडां [उ]पनी – आ पाठ आदर्श प्रतमा छे,

[8] 8. चारित्र,

[9] 9. पायउ,

[10] 10. भाव्या.

[11] *अहीं पार्श्वनाथ प्रभुना २ कवित्तोने एक सरखां बे नंबर अपायां छे।